Bhagwaticharan Verma Rachanavali- 1 (uponyas) Hindi ebook to pdf

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Bhagwaticharan Verma Rachanavali- 1 (uponyas) (भगवतीचरण वर्मा रचनावली) (उपन्यास) Hindi ebook to pdf.

Bhagwaticharan Verma Rachanavali (uponyas) ebook
e-book novel- Bhagwaticharan Verma Rachanavali- 1 (भगवतीचरण वर्मा रचनावली) (उपन्यास)
Author- Shri Bhagwaticharan Verma
Edited by- Dhirendra Varma
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 487
Size- 16mb
Quality- nice, without any watermark

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श्री भगवतीचरण वमाँ जन्मजात कवि थे। उन्होंने अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा का प्रारम्भ एक कवि के रूप में किया था और ‘मधुकण’ उनका पहला काव्य संग्रह था जिसके बाद ‘प्रेम संगीत’ और ‘मानव’ नामक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। सन 1930 तक बाबूजी एक छायावादी कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। अपने साहित्यिक जीवन के अन्तिम पड़ाव तक वे कविता से अपना मोह नहीं छोड़ सके और उनकी अन्तिम कृतियों में ‘सविनय’ नाम का खंडकाव्य प्रकाशित हुआ। कवि होते हुए भी श्री भगवती बाबू में एक ‘गद्यकार’ भी मौजूद था और उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान कानपुर से प्रकाशित ‘प्रताप’ पत्र में अनेक सामाजिक और राजनीतिक निबन्ध लिखे। इसी दौरान उन्होंने अपने प्रथम उपन्यास “पतन’ की रचना की जो बाद में गंगा पुस्तक माला द्वारा प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास को बाबूजी ने अपनी रचनाओं में शामिल नहीं किया और यह पुस्तक वर्षों तक अप्रकाशित ही रही। विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान अपने हॉस्टल हालैंड हॉल में बाबूजी को विश्व साहित्य पढ़ने का अवसर मिला और यहीं उन्हें एक उपन्यासकार बनने की प्रेरणा मिली। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हालैंड हॉल नाम के हॉस्टल में बाबूजी के रूम पार्टनर थे श्री भगवान सहाय, और उन्हें भी विश्व साहित्य पढ़ने का शौक था। उनका मत था कि इंग्लिश-फ्रेंच और रशियन लिटरेचर में जिस स्तर के क्लासिकल उपन्यास लिखे जा रहे हैं, वह स्तर हिन्दी के कथा साहित्य में नहीं हो सकता। बाबूजी बोले, ‘है तो नहीं, पर लिखा जा सकता है।” बात आई गई हो गई, पर बाबूजी के मन में यह चुनौती बस गई और यह अवसर तब आया जब वे अट्ठाईस वर्ष की उम्र में हमीरपुर कचहरी में वकालत करने पहुँचे। वकालत तो नहीं चली पर, इसी दौरान उन्होंने पाप और पुण्य के विषय में अपना प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्रलेखा’ लिख डाला जो हिन्दी का पहला क्लासिकल उपन्यास है। श्री भगवतीचरण वमf ने ‘चित्रलेखा’ को कभी अपना सर्वश्रेष्ठ उपन्यास नहीं माना। हाँ, उसे अपना सबसे लोकप्रिय उपन्यास मानते हुए अपनी ‘भाग्य लक्ष्मी’ माना। ‘चित्रलेखा’ की लोकप्रियता का कीर्तिमान उस पर बनी सन् 1940 की वह फीचर फिल्म है, जिसे दुबारा उसके निर्देशक श्री केदार शर्मा ने सन् 1960 में बनाई। बाबूजी का दूसरा उपन्यास ‘तीन वर्ष’ था जो एक सामाजिक उपन्यास है, और उसके बाद आया उनका प्रथम वृहद उपन्यास ‘टेढे मेढे रास्ते” जिसे हिन्दी साहित्य का प्रथम राजनीतिक उपन्यास कहा जा सकता है। ‘टेढ़े मेढ़े रास्ते’ एक उपन्यास था जिसके बाद वृहत उपन्यासों की रचना अनेक लेखकों ने की। श्री भगवतीचरण वर्मा ने राजनीतिक उपन्यासों की एक श्रृंखला की रचना की जिनमें ‘भूले बिसरे चित्र, ‘सीधी सच्ची बातें, सीमा’ प्रमुख हैं। इन उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दौर से बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दौर तक के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अवस्थाओं का मूल्यांकन ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में किया है। श्री भगवतीचरण वमf के उपन्यासों में विविधता पाई जाती है। अनेक विषयों को विभिन्न उपन्यासों में अपना विषय रखा है। ‘युवराज पॉव,” “अपने खिलौने’ आदि उनके अनेक उपन्यास हैं जिन्हें हम उनकी रचनाक्रम की विविधता के लिए उल्लेख कर सकते हैं। एक कवि और एक कथाकार होने के संयोग ने बाबूजी के रचनाकार को एक भावनात्मक और एक बौद्धिक दृष्टि दी। उन्होंने कभी कहा है कि वे कब कवि से कथाकार बन गए इसका उन्हें पता ही नहीं चला। ‘चित्रलेखा’ को वह अपना शुद्ध गद्य नहीं मानते थे, उसे वे एक मुक्तछन्द की कविता मानते थे जो उनके छायावादी कवि से प्रेरित थी। वह ‘टेढ़े मेढ़े रास्ते’ को अपनी प्रथम गद्य रचना मानते थे। श्री भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों को पढ़ते समय यह सदा ध्यान में रखना चाहिए कि वे मूलतः एक छायावादी और प्रगतिवादी कवि हैं और उनके कथा साहित्य में कविता की भावना की प्रधानता बौद्धिक” यथार्थ से कभी अलग नहीं होती।- धीरेन्द्र बर्मा
Hindi ebook to pdf Bhagwaticharan Verma Rachanavali (uponyas)

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