Bhagwaticharan Verma Rachanavali- 10 (drama part) Hindi ebook

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Bhagwaticharan Verma Rachanavali- 10 (drama part) (भगवतीचरण वर्मा रचनावली)-१० (नाटक खंड) Hindi ebook

Bhagwaticharan Verma Rachanavali drama ebook
e-book novel- Bhagwaticharan Verma Rachanavali- 10 (भगवतीचरण वर्मा रचनावली)-१० (नाटक खंड)
Author- Shri Bhagwaticharan Verma
Edited by- Dhirendra Varma
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 356
Size- 16mb
Quality- nice, without any watermark

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श्री भगवतीचरण वर्मा कवि, कहानीकार, उपन्यासकार के अलावा एक नाटककार भी थे। श्री वर्मा जी ने समय-समय पर नाटकों की रचना ही नहीं की वरन् एक कर्मठ रंगकर्मी की हैसियत से अपने नाटकों का निर्देशन और मंचन भी किया। रंगमंचीय नाटकों के अतिरिक्त श्री वमजिी ने रेडियो और टेलीविजन के लिए भी नाटकों की रचना की। हिन्दी फिल्म जगत में एक लम्बी अवधि तक उन्होंने अपनी कहानी पर बनी फिल्मों के संवाद और पटकथाएँ भी लिखीं जो कि उनकी नाट्यकला का ही एक विस्तार है। यही नहीं, उनके उपन्यासों में भी नाटकीयता, कथोपकथन और दृश्य का सविस्तार चित्रण मिलता है जो उनके साहित्यिक व्यक्तित्व में एक सशक्त नाटककार होने का परिचय देता है। गद्य नाटकों के अलावा उन्होंने अनेक काव्य नाटक या ओपेरा भी लिखे जी हिन्दी साहित्य में उनके लेखन की विविधता का परिचायक है। श्री भगवतीचरण वर्मा जब उच्च शिक्षा के लिए अपने मूल स्थान कानपुर छोड़ कर इलाहाबाद आए तब हिन्दी साहित्य में अपनी शैशव अवस्था में था। द्विवेदी युग के अन्त में युग के प्रारम्भ में अनेक नाटक लिखे जा रहे थे पर, शास्त्रीय पद्धति के होते थे और इनमें कई अंक और थे। अपनी क्लिष्ट भाषा और अपने नाटक केवल प्रबुद्ध वर्ग के बीच मंचित होते थे और इन में मुख्यतः ऐतिहासिक और दार्शनिक विषयों की प्रधानता हिन्दी साहित्य में एकांकी नाटकों की हुआ था। रंगमंच की लोकप्रियता के लिए एकां आवश्यकता थी और इसी कमी को पूरा करने में योगदान मुख्य रूप से भी भगवतीचरण वर्मा, डॉ. रामकुमार भुवनेश्वर जैसे नाटककारों ने एकांकी नाटकों की उठाया और आगे चलकर अनेक युवा नाटककारों ने इसमें अपना सक्रिय योगदान दिया। एकांकी नाटकों के इस अभाव को दूर करने के लिए श्री भगवतीचरण वमाँ ने दो ऐसे एकांकी नाटकों की रचना की जो आज भी रंगकर्मियों में लोकप्रिय हैं। इनमें पहली रचना है ‘दो कलाकार’ नामक एकांकी जिसमें एक कवि और एक चित्रकार दो प्रमुख पात्र हैं और इन दो पात्रों को केन्द्र में रखकर देश के कलाकारों के जीवन की विडम्बनाओं का वर्णन किया गया है। चुस्त और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग हास्य की व्यंगात्मक शैली में करते हुए यह नाटक जहाँ दर्शकों को ठहाके लगाने के लिए विवश करता है वहीं दूसरी ओर समाज को कलाकारों के संघर्ष और अभाव-ग्रस्त जीवन पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। इसी व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग करते हुए श्री वर्मा जी ने सन् उन्नीस सौ तीस या पैंतीस के दौरान एक दूसरा नाटक भी लिखा जिसका नाम ‘सबसे बड़ा आदमी’ है जिसके द्वारा उन्होंने तथाकथित आधुनिक बौद्धिकता के नाम पर समाज को छलने वाले एक ऐसे चरित्र की रचना की जो छल-कपट के सहारे समाज पर अपना सिक्का छोड़ जाता है। श्री वर्मा जी के ये दोनों नाटक इस बात के लिए भी अलग हटकर थे कि इनमें कोई स्त्री पात्र नहीं है। सन् तीस के दशक में हिन्दी रंगमंच में स्त्रियों का प्रवेश नहीं के बराबर था और रगकर्मी ऐसे नाटको की तलाश में रहते थे जिनमें कोई भी नारी पात्र नहीं हो। बड़े और सम्पूर्ण नाटक के रूप में ‘रुपया तुम्हें खा गया’ नामक नाटक श्री भगवतीचरण वर्मा की पहली कृति है। इस नाटक का प्रथम मचन सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री अमृतलाल नागर के निर्देशन में और स्वयं श्री भगवती बाबू की देखरेख में सन् 1955 में लखनऊ के बनारसी बाग के प्रांगण में किया गया था। इस नाटक की सबसे बड़ी उपलब्धि मंच संचालन की थी और एक रिवाल्चिंग स्टेज के द्वारा दृश्य परिवर्तन के व्यवधान को दूर करते हुए दर्शकों के समय को बचाया गया और एक दो घण्टे के नाटक को दुतगति से प्रस्तुत किया गया। यह नाटक अनेक शहरों में मंचित किया जाता रहा है क्योंकि इसकी विषयवस्तु कालजयी है।
‘बुझता दीपक’ श्री भगवतीचरण वर्मा का दूसरा सम्पूर्ण नाटक है जिसमें भारत की स्वतंत्रता के बाद देश की आज़ादी पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले एक आदर्शवादी गांधीवादी नैता को नयी ब्याबस्ता में भ्रष्टाचार का विरोध करते हुए संघर्षरत दिखलाया गया है और इस नाटक का अन्त दुखान्त है। श्री भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित तीसरा नाटक ‘वसीयत’ है जो हास्य व्यंगात्मक शैली में लिखा गया है और इसमें आधुनिक समाज के दोहरे मापदंडों का मखौल उड़ाया गया है। ‘वसीयत’ नामक नाटक मंच पर मंचित होने के अलावा दूरदर्शन पर भी प्रसारित किया गया है। श्री भगवतीचरण वर्मा ने आकाशवाणी के लिए भी अनेक रेडियो नाटकों की रचना की जिनमें ‘अन्तिम झन्कार’, ‘चलते चलते’, ‘आई गवनवा की बेला’ आदि अनेक प्रमुख नाटक हैं। यह सभी नाटक श्रव्य विधा पर आधारित हैं और इनका प्रसारण आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों द्वारा हो चुका है। श्री वर्माजी के इन नाटकों का प्रसारण ड्रामा के अखिल भारतीय कार्यक्रमों में राष्ट्रीय स्तर पर भी हो चुका है। रेडियो नाटकों के इस प्रसंग में ही अभी कुछ वर्ष पहले ही आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम में उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्रलेखा’ का नाटकीय प्रसारण लगभग पचास एपीसोडों में किया गया जिसमें उपन्यास के मूल संवादों का ही उपयोग किया गया और जिसमें आकाशवाणी के प्रमुख रेडियो आर्टिस्टों ने अपनी आवाज़ का कलात्मक उपयोग किया है। श्री भगवतीचरण वर्मा ने गद्य नाटकों के अलावा अनेक काव्य नाटकों की रचना भी की और उनका प्रथम काव्य नाटक ‘तारा’ है जो उनके काव्य संग्रह ‘मधुकण’ में प्रकाशित हुआ था। ‘द्रौपदी’, ‘कर्ण’ और “महाकाल’ नामक तीन और काव्य नाटकों की उन्होंने रचना की जिनका संकलन उनकी पुस्तक ‘त्रिपथगा’ में किया गया और इन सभी पद्य नाटकों का प्रसारण ओपेरा के रूप में आकाशवाणी के लखनऊ और दिल्ली केन्द्रों से श्री सूर्य नारायण बाली के संगीत निर्देशन में किया गया। श्री भगवतीचरण वमाँ के काव्य नाटकों की विशेषता उनकी सरल भाषा और छन्द में नाटकीयता का होना है। हिन्दी साहित्य श्री भगवतीचरण वर्मा को एक ऐसे नाटककार के रूप में सदैव याद किया जाएगा जिन्होंने नाट्यकला के विकास में योगदान दिया और नाटकों के विभिन्न स्वरूपों में रचना की।  -धीरेन्द्र बर्मा

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