Hindi Vishvakosh vol- 1 by Dhirendra Verma free ebook pdf

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Hindi Vishvakosh (हिदी विश्वकोश) vol- 1 by Dhirendra Verma free ebook pdf file

Hindi Vishvakosh vol- 1 by Dhirendra Verma ebook
e-book name- Hindi Vishvakosh (हिदी विश्वकोश)
Author name- Dhirendra Verma
Category- Hindi encyclopedia
Language- Hindi
File format- PDF
PDF size- 72mb
Pages- 569

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भारतीय वाडमय मे सदर्भग्रयो, जैसे कोश, अनुक्रमणिका, निवध, ज्ञानसकलन आदि की परंपरा बहुत पुरानी हे। कितु भारतीय भाषाओ मे सभवत पहला आधुनिक विश्वकोश श्री नगेद्रनाथ वसु द्वारा सपादित वेंगला विश्वकोश था जो २२ खडो मे प्रस्तुत हुआ और जिसका प्रकाशन १९११ मे पूर्ण हुआ था। अनेक हिदी विद्वानो के सहयोग से श्री वसु ने १९१६-३२ के बीच २५ भागो मे हिंदी विश्वकोश का भी प्रणयन किया जिसका मूलाधार उनका वेंगला विश्वकोश था। प्रथम खड्ड की भूमिका मे इस प्रयास के उद्देश्य तथा उपयोगिता के सबध मे उन्होने लिखा था कि “जिस हिंदी भापा का प्रचार और विस्तार भारतवर्प मे उत्तरोत्तर वढता और जिसे राष्ट्रभाषा वनाने का उद्योग होता- ईश्वर यह प्रयास सफल करें-उसी भारत की भावी राष्ट्रभाषा मे ऐसे ग्रथ का न होना बडे दुख और लज्जा का विषय है। यद्यपि वहुत दिन से हमारी प्रवल इच्छा थी कि हिदी विश्वकोश के प्रकाशन मे हाथ लगाते, परतु कई कारण से वह सफल न हुई-हम हिंदीरसिको की आज्ञा पालन न कर सके। अब बार बार हिदीप्रेमियो से अनुरुद्ध होने पर हमने इस बहुपरिश्रम और विपुल-व्यय-साध्य कार्य को चलाया है।”
मराठी विश्वकोश की रचना २३खडो मे श्री श्रीधर व्यकटेश केतकर द्वारा हुई और उसका प्रकाशन महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश मडल लिमिटेड, पूना ने किया। इसके प्रारभिक पाँच खड्ड एक प्रकार से गैजेटियर स्वरूप है। खड ६ से २२ तक की सामग्री अकारादि क्रम से नियोजित है। खड्ड २३ मे सपूर्ण खड की अनुक्रमणिका है। महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश का एक गुजराती रूपातर भी डा० केतकर की देखरेख मे ही तैयार होकर प्रकाशित हुआ। इस कोश का हिदी रूपातर भी डा० केतकर प्रकाशित करना चाहते थे, कितु इसके एक या दो खड ही निकल सके। ये साहित्यिक एवं शास्त्रीय प्रयास वस्तुत १९वी सदी मे प्रवर्तित सास्कृतिक पुनरुत्थान के प्रवाह मे हुए।
१९४७ मे स्वराज्यप्राप्ति के अनतर भारतीय विद्वानो का ध्यान पुन आधुनिक भाषाओ के साहित्यो के समस्त अगो को पूर्ण करने की ओर गया और परिणामस्वरूप आधुनिकतम विश्वकोशो की रचना के लिये कई भारतीय भाषाओ मे योजनाएँ निर्मित हुई। उदाहरण के लिये, १९४७ मे ही एक तेलुगू भापासमिति सगठित की गई जिसका प्रमुख उद्देश्य तेलुगू भाषा के विश्वकोश का प्रकाशन था। इसके लिये एक हजार पृष्ठो के १२ खडो की योजना बनाई गई। तेलुगू विश्वकोश के प्रत्येक खड का सवध एक विशिष्ट विषय अथवा विषयसमूह से है। १९५९ तक, अर्थात् गत १२ वर्षों में, इसके चार खड प्रकाशित हुए है। तेलुगू विश्वकोश के साथ ही साथ एक तमिल विश्वकोश की भी योजना बनी थी। अब तक इसके पाँच खड निकल चुके है।
राष्ट्रभाषा हिदी मे भी विश्वकोशप्रणयन की आवश्यकता प्रतीत हुई । हिदी में एक मौलिक तथा प्रामाणिक विश्वकोश के प्रकाशन की योजना नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी ने १९५४ मे प्रस्तुत कर भारत सरकार के विचारार्थ तथा आर्पिक सहायता के लिये भेजी। सभा की योजना सपूर्ण कृति को लगभग एक एक हजार पृष्ठो के ३० खड़ी में प्रकाशित करने की थी। प्रस्तावित विश्वकोश के निर्माण तथा प्रकाशन मे दस वर्ष का समय तथा २२ लाख रुपया व्यय कूता गया था।
सभा के प्रस्ताव मे हिदी विश्वकोश के निर्माण के उद्देश्य निम्नलिखित शब्दो मे बताए गए थे-“कला और विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रो मे ज्ञान और वाडमय की सीमाएँ अब अत्यत विस्तृत हो गई है। नए अनुसधानो, वैज्ञानिक आविष्कारो तथा दूरगामी चितनो ने मानवज्ञान के क्षेत्र का विस्तार बहुत बढा दिया है। जीवन के विविध अगो में व्यावहारिक एव साहसपूर्ण प्रयोगो द्वारा विचारो और मान्यताओ मे असाधारण परिवर्तन हुए है। इस महती और वर्धनशील ज्ञानराशि को देश की शिक्षित तथा जिज्ञासु जनता के सामने राष्ट्रभापा के माध्यम से सक्षिप्त एवं सुबोध रूप मे रखने का हमारा विचार पुराना है। प्रस्तावित विश्वकोश का यही ध्येय है।”

इस प्रश्न पर विचार करने के लिये भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति नियुक्ति की जिसकी पहली बैठक ११ फरवरी, १९५६ को हुई । पर्याप्त विचारविनिमय के उपरात विशेषज्ञ समिति ने यह सुझाव दिया कि हिंदी विश्वकोश अभी १० खडो मे प्रकाशित किया जाय तथा प्रत्येक खड मे केवल ५०० पृष्ठ हो। सपूर्ण कार्य पाँच से सात वर्षों के भीतर सपन्न करने का अनुमान किया गया। विशेपज्ञ समिति ने यह भी प्रस्ताव किया कि एक परामर्शमडल नियुक्त किया जाय जिसके तत्वावधान में समस्त कार्य सपन्न हो, परामर्शमडल के निरीक्षण मे पाँच सदस्यो की सपादकसमिति विश्वकोश के कार्य का सञ्चालन करे तथा भिन्न भिन्न विषयो के सवध मे सहायता प्रदान करने के लिये लगभग ५० वर्गीय सपादक
भी नियुक्त किए जायें। विशेषज्ञ समिति की उपर्युक्त सस्तुति के परिणामस्वरूप केद्रीय शिक्षामत्रालय ने नागरीप्रचारिणी सभा को
२४ अगस्त, १९५६ को सूचना भेजी जिसका सार नीचे दिया जाता है
भारत सरकार ने यह निश्चय किया है कि नागरीप्रचारिणी सभा के तत्वावधान में हिदी विश्वकोश की योजना को कार्यान्वित किया जाय। योजना वही रहेगी जो विशेषज्ञ समिति द्वारा निश्चित की गई है, किंतु इसमे निम्नलिखित
१. यह कृति भारत सरकार का प्रकाशन होगी। २. इस योजना के लिये सभा को ६॥ लाख रुपए की सहायता दी जायगी। ३. पच्चीस सदस्यो के परामर्शमडल की रचना विशेषज्ञ समिति की सस्तुति के अनुसार होगी। ४. सपादकसमिति विश्वकोश के सपादन के लिये उत्तरदायी होगी। इस समिति के सदस्य प्रधान सपादक, दोनो सपादक, परामर्शमडल के अध्यक्ष तथा मत्री होगे। ५. सभा इस विश्वकोश मे साधारणतया उस पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग करेगी जो भारत सरकार द्वारा स्वीकृत हो चुकी है।
फलस्वरूप नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी मे हिंदी विश्वकोश के निर्माणकार्य का प्रारंभ जनवरी, १९५७ मे हुआ। प्रयम वर्ष मे कार्यालय सगठित हुआ, एक निर्देशपुस्तकालय बना तया समस्त उपलब्ध विश्वकोशो एव अन्य प्रमुख सदर्भग्रथो की सहायता से कार्डों पर शब्दसूची तैयार की गई। १९५८ में शब्दसूची तैयार करने का कार्य समाप्त हुया। प्रारंभिक शब्दसूची मे लगभग ७०,००० शब्द थे । इनकी सम्यक् परीक्षा करने के उपरात इनमे से केवल ३०,००० शव्दो को विचारार्थ रखा गया। साल भर केवल एक सपादक डा० भगवतशरण उपाध्याय द्वारा यह सारा कार्य सपन्न हुआ। वर्षात मे दूसरे सपादक डा० गोरखप्रसाद की नियुक्ति हुई और उन्होने विज्ञान तथा भूगोल के अनुभाग का कार्यभार सँभाला। १९५९ के मार्च मे प्रधान सपादक डा० धीरेद्र वर्मा की नियुक्ति हुई जिन्होने अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त भाषा और साहित्य अनुभाग के कार्य को भी सँभाला। इस प्रकार अत्यत थोडे समय मे, वस्तुत डेट साल में, कर्मचारियो की लघुतम सख्या द्वारा विश्वकोश का यह पहला खड प्रस्तुत हुआ है। इस काल के लगभग अत में सपादको के तीन सहायक भी नियुक्त हुए। कार्यालय में सपादको और उनके तीन सहायको के अतिरिक्त चार लिपिक भी है।
१९५९ के प्रारभ मे यह निश्चय किया गया कि पहले प्रथम खड्ड की पूरी तैयारी की जाय, अत स्वरो से प्रारभ होनेवाले १,४०० लेखो के शीर्षको को चुन लिया गया। ये समस्त शीर्षक लेखको को वितरित हो चके थे। इनमें से अधिकाश लेख हिंदी मे प्राप्त हुए, किंतु कुछ अत्यधिक प्राविधिक (टेकनिकल ) विषयो से सवधित लेख अग्रेजी में भी आए जिनका हिंदी रुपातर करना आवश्यक हुआ । विश्वकोश का सग्रथन हिदी वर्णमाला के अक्षरक्रम से हुआ है। विदेशी नामो मे जहो भ्रम की आशका है वहाँ उन्हे कोष्ठक में रोमन मे भी दे दिया गया है। विदेशी व्यक्तियो और मृतियो के नाम यथासभव सर्वाघत विदेशो में उच्चरित विधि से लिखे गए है। उस दिशा मे प्रमाण वेव्स्टर शब्दकोश को माना गया है। जो नाम इस देश मे व्यवहृत होते रहे है उनका व्यवहुत उच्चारण ही रखा गया है। वर्तनी साधारणत नागरीप्रचारणी सभा की स्वीकृत वर्तनी के अनुकूल है।
यहाँ इस बात का उल्लेख कर देना उचित होगा कि प्रस्तुत विश्वकोश के सामने एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका का आदर्श रहा है। अन्य विश्वकोशो से भी हम लोगो को सहायता मिली है। ब्रिटैनिका का प्रथम सस्करण केवल तीन भागो मे १७६८ मे प्रकानित हुआ था। गत २०० वर्षों मे धीरे धीरे इसने वृहत् रूप धारण कर लिया है। इसके
वर्तमान सस्करण मे २४ भाग है जिनमे से प्रत्येक मे लगभग १००० पृष्ठ है। इसकी तुलना मे हिदी विश्वकोश अभी एक प्रारभिक प्रयास है। वास्तव मे विश्वकोश एक सस्था वन जाता है और इसके समुचित विकास के लिये समय तथा स्थायी साधन अपेक्षित है। तो भी एक अर्थ में यह विश्वकोश एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका से अपने प्रयत्न में अधिक आस्थावान् सिद्ध होगा। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में प्राच्य ज्ञान उपेक्षित है, व्यास जैसे महापुरुषो के नाम तक उसमें नही है। इसका यथासभव निराकरण नई सामग्री द्वारा कर दिया गया है। उस महाकोश की अनेक भ्रातियाँ भी शुद्ध कर दी गई है। उदाहरणार्थ कराची के प्राय आठ वर्षों तक नवराष्ट्र पाकिस्तान की राजधानी बने रहने पर भी उस महाकोश मे उसे ‘भारतीय पश्चिमी तट का नगर’ बताया गया है। सक्षिप्त आकार के कारण हमारी कठिनाई बहुत बढ़ गई है। विषयो के चुनाव का प्रश्न बडा विकट था। इस परिस्थिति में प्रमुख विपय ही विश्वकोश के इस सस्करण के लिये चुने जा सके। यद्यपि प्रथम खड्ड का प्रारभिक अश मई, १९५९ में ही प्रेस भेज दिया गया था, कितु गणित और भौतिकी के विशेष टाइप तथा कागज आदि की अनेक कठिनाइयो के कारण प्रारभ मे मुद्रण का कार्य तीव्र गति से नही चल सका। १९६० के प्रारभ से मुद्रणकार्य मे प्रगति हुई और हिदी विश्वकोश का प्रथम खड्ड अब प्रकाशित हो रहा है। साथ ही शेष खडो की सामग्री के चयन और सपादन का कार्य भी चल रहा है। आशा है, प्रथम खड की तैयारी और मुद्रण के अनुभवो के बाद आगे के खडी के प्रकाशन का कार्य अधिक शीघ्रता से हो सकेगा। प्रारभ से ही नागरीप्रचारिणी सभा के सभापति और विश्वकोश की सपादकसमिति तथा परामर्शमडल के भी अध्यक्ष महामाननीय प० गोविदवल्लभ पंत का इस योजना मे व्यक्तिगत रूप से अत्यत अनुराग रहा है तथा उनसे निरतर प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता रहा ह। भारत सरकार के शिक्षामत्री डा० कालूलाल श्रीमाली ने भी योजना मे वरावर रुचि रखी हेतथा सुझाव दिए है। शिक्षामत्रालय ने योजना की प्रगति से अपने को निरतर अवगत रखा है और यथासमय सहायता दी है। नागरीप्रचारिणी सभा के पदाधिकारी, विशेष रूप से इसके अवैतनिक मत्री डा० राजबली पाडेय इस योजना की प्रगति मे सक्रिय योग देते रहे है। भिन्न भिन्न विषयो के विद्वानो ने अपने अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी हमारे अनुरोध से समय निकालकर हिदी विश्वकोश के लिये लेख लिखने की कृपा की। इन सबके प्रति हम आभारी है। प्रथम खड के मुद्रण में भार्गव भूषण प्रेस ने पूर्ण सहयोग प्रदान किया है जिसके लिये हम उसके सचालक श्री पृथ्वीनाथ भार्गव के विशेष कृतज्ञ है।
अनेक अधिकारियो तथा सस्थाओ के माध्यम से होनेवाले विश्वकोश जैसे कार्य से सबधित कठिनाइयो का अनुभव हम लोगो को गत तीन वर्षों मे हुआ। हमे सतोष है कि ये कठिनाइयाँ सफलतापूर्वक पार की जा सकी और विश्वकोश का मुद्रण और प्रकाशन प्रारभ हो गया है। राष्ट्रभाषा हिदी के इस शालीन प्रयास का प्रथम खड्ड पाठको को प्रदान करने मे हमे अतीव प्रसन्नता है। इस प्रथम प्रयास की त्रुटियो का ज्ञान हम लोगो को सवसे अधिक है। यह सव होते हुए भी हमारा विश्वास है कि हिदी भापा और साहित्य के एक विशेष अभाव की पूर्ति इस ग्रथ से हो सकेगी। इसके आगे के सस्करण निरतर अधिक पूर्ण और सतोषजनक होते जायगे, ऐसी हमारी आशा और कामना है। -संपादकगण
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