Madhya Asia Ka Itihas (मध्य एशिया का इतिहास) by Rahul Sankrityayan, Part- 1 and 2 Hindi book pdf file
e-book name- Madhya Asia Ka Itihas (मध्य एशिया का इतिहास) part-1 and 2
Author name- Rahul Sankrityayan
Language- Hindi
File format- PDF
PDF size- 42mb
Pages- 674
Quality- good, no watermark
पुस्तकके अतिम खडकी पाठकोके हाथ मे जाते देखकर, मालूम होता है, एक बडा भार सिर से उतर गया। इस सारे समयमे कई वार आशा और निराशा के बीच में भटकना पडा था । बाधाये कभी प्रकाशकका औरसे और कभी प्रेसकी औरस आ जाती थी। एक प्रेसमें प्रथम खडके आठ-दस फार्म कपोज हो जाने के बाद काम रुक गया, और अतमे प्रकाशक बदलने पर ही गाडी आगे चली । द्वितीय खटको मैने स्वय कागजद कर अपनी जिम्मेवारीपर प्रेसमें दे दिया, पर प्रेसकी गडबडी इतनी हो गई, कि आशा नही थी, नैया पार होगी। खैर, ‘कुफ़ टूटा खुदा-खुदा करके” । ऐसी वाघायें उपस्थित न हुई होती, तो प्रथ तीन साल पहले ही प्रकाशित हो गया होता।
मध्य-एसिया के इतिहासपर किसी भी भापामे कोई विस्तुत ग्रथ नही है। जो एकाध है भी, वह वहुत सक्षिप्त तथा कालमें बहुत दूरतक हमें नही ले जाते, और न वह आधुनिकतम सामग्रीपर आधारित है। मध्य-एसियाके इतिहासकी सामग्रीकी गवेषणा सोवियत रूसमे वहुत हुई है। किसी-किसी कालपर ग्रथ भी लिखे गये, परसपूर्ण कालके ऊपर लिखनेको आगेके लिये छोड दिया गया। इन वातो से लेखककी कठिनाई मालूम होगी। इस ग्रथमे अनेक त्रुटिया होनी विल्कुल सभव है। १९४७ के वाद की उपलब्ध सामग्रीका बहुत कम उपयोग मैंने कर पाया है। भारत में सोवियतमे प्रकाशित ग्रथ और अनुसधान-पत्रिकायें सुलभ नही है।
मध्य-एसियामें चीनी मध्य-एसिया भी शामिल है। जिसके किसी-किसी कालपर इस ग्रथमें काफी विवेचन हुआ हैं, पर पूरी तौरसे लिखना वाकी हैं। मेरी इच्छा तिब्बत को लेते चीनके इतिहासपर एक विस्तृत ग्रथ लिखनेकी है। यदि उसके लिखने में सफल हुआ, तो यह कमी पूरी हो जायगी। पर, इसमें आयु और भौतिक बाधायें ही रास्ता रोके नही है, वल्कि हमारे स्वतत्र देशकी नौकरशाही भी पूरी तौरसे रोडा अटकाने के लिये तैयार है। अग्रेजी शासनमे सिर्फ पहली बार मुझे छिपकर तिब्बत जानेकी जरूरत पडी थी। मेरे राजनीतिक विचार उस वक्त भी वही थे, जो आज है। पर, अग्रेजी सरकार और अग्रेज नीकरशाहोने सांस्कृतिक कार्यके महत्वको समझते बाधा नही दी।
१९३४ ई० में मै दूसरी बार तिब्बत जानेके लिये ब्रिटिश पोलेटिकल एजेट के पास गतोकमे आज्ञापत्र लेने गया। नाम मालूम होते ही वह बडे हर्षके साथ मिले । और आज्ञापत्र ही नही दिया, वल्कि अधिक आत्मीयता दिखलाने के लिये तिब्बत में अपने लिय हुए फोटो दिखलायें, कितनी ही बातें पूछी। उसीके स्थानपर १९५० में जो भारतीय सज्जन थे, वह मिलनेपर विलकुल दूसरे ही सावित हुए। उन्हे तिब्बतके बारेमें कोई जिज्ञासा नही थी, और शिष्टाचारके नाते ही एक-दो मिनटके लिये मिले। नौकरशाही ने एकबार पासपोर्ट देने से इन्कार किया, खैर, दूसरी बार कोशिश करने पर वह मिल गया । उसके लिये वडी उत्सुकता इसी कारण हैं, कि तिब्मत में भारतीय सस्कृत-ग्रयोकी नई तालप्रतियोके मिलने की सभावना है।ग्रथके प्रकाशित होने का नवमे अधिक श्रेय श्रीजगदीशचद्र माधुर (तत्कालीन शिक्षा-सचिव,विहार) और श्री शिवपूजन महाय की है। शिवपूजन वावृ तो ग्रथको प्रकाशित देखने के लिये मुनसे भी अधिक उतावले थे।- राहुल सांकृत्यायन
Madhya Asia Ka Itihas Part – 1
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Madhya Asia Ka Itihas Part – 2
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