Bhavishya Puran (भविष्य पुराण) by Babulal Upadhyay (All parts) PDF

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Bhavishya Puran by Babulal Upadhyay

Book Type- Hindu Purana related Books
File Format- PDF
Language- Hindi
Total Pages- 2393
Size- 124Mb
Quality- HQ, without any watermark,

Bhavishya Puran

भविष्य पुराण : एक परिचय

अठारह महापुराणों में भविष्य पुराण को एक अनोखी पहचान मिली है। इसका नाम ही इसकी विशेषता है – “भविष्य”, अर्थात् आने वाले समय का ज्ञान। सामान्यतः पुराणों में हमें सृष्टि की उत्पत्ति, देवताओं की कथाएँ, ऋषि-मुनियों के उपदेश और धर्म-आचरण की शिक्षाएँ मिलती हैं, परन्तु भविष्य पुराण इन सबके साथ-साथ भविष्य में घटने वाली घटनाओं, विभिन्न युगों के स्वरूप और राजवंशों के वर्णन को भी शामिल करता है।

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वेदव्यास रचित इस ग्रंथ में धर्म, नीति, इतिहास और भविष्यवाणी का अद्भुत संगम है। यही कारण है कि इसे केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।


बाबूलाल उपाध्याय की प्रस्तुति

संस्कृत भाषा में रचित मूल ग्रंथ आम जनमानस के लिए कठिन और जटिल है। बाबूलाल उपाध्याय ने भविष्य पुराण का अनुवाद एवं व्याख्या सरल हिंदी में प्रस्तुत की है, जिससे सामान्य पाठक भी इसकी गूढ़ शिक्षाओं और भविष्यसूचक कथाओं को आसानी से समझ सके। उनका संस्करण न केवल शुद्ध अनुवाद है, बल्कि एक व्याख्यात्मक रूप भी है।

उन्होंने इसमें उन विषयों को विशेष रूप से स्पष्ट किया है, जहाँ धर्म और जीवन के व्यवहारिक पक्ष एक साथ जुड़े दिखाई देते हैं। उपाध्याय का लेखन शैली प्रवाहपूर्ण है, जो गम्भीर अध्यात्मिक विषयों को भी सहज भाषा में प्रस्तुत करता है।


भविष्य पुराण की रचना संरचना

भविष्य पुराण को परंपरागत रूप से चार मुख्य पर्वों में विभाजित किया गया है :

  1. ब्रह्म पर्व
    • इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की महिमा का वर्णन है।
    • धर्म, संस्कार, व्रत और अनुष्ठानों के महत्व का विस्तृत विवरण मिलता है।
    • देवताओं और ऋषियों की कथाओं के माध्यम से भक्ति और सत्य की महिमा का प्रतिपादन किया गया है।
  2. मध्य पर्व
    • इस भाग में कई धार्मिक व्रत-उपवास जैसे एकादशी, व्रत-कथाएँ, स्नान और दान के महत्व का वर्णन है।
    • यहाँ हमें गृहस्थ जीवन के आचार-विचार, समाज में स्त्री-पुरुष की भूमिका और धर्मपालन के नियमों की शिक्षा मिलती है।
    • यह पर्व विशेष रूप से लोकजीवन से जुड़ा हुआ है।
  3. प्रत्युत्तर पर्व
    • इसमें आने वाले राजाओं, वंशों और युगों के परिवर्तन का वर्णन है।
    • कुछ स्थानों पर ऐसी भविष्यवाणियाँ मिलती हैं, जो आगे चलकर भारतीय इतिहास और संस्कृति से जुड़ी घटनाओं से मेल खाती हैं।
    • इसमें कलियुग की स्थिति, पापाचार, धर्म की गिरावट और अंत में धर्म के पुनः उत्थान का भी उल्लेख मिलता है।

विशेषताएँ और शिक्षाएँ

  • भविष्य पुराण में जीवन के हर पक्ष को छूने वाली शिक्षाएँ हैं – गृहस्थ धर्म, नीति, भक्ति, यज्ञ, दान, व्रत, साधना और भविष्य की सामाजिक परिस्थितियाँ
  • इसकी भविष्यवाणियाँ पाठक के मन में गहरी उत्सुकता जगाती हैं।
  • यह ग्रंथ स्पष्ट करता है कि समय चक्राकार है – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग बार-बार आते हैं।
  • इसमें यह संदेश निहित है कि धर्म और अधर्म का संघर्ष हर युग में चलता रहता है, लेकिन अंततः धर्म की विजय सुनिश्चित है।

बाबूलाल उपाध्याय की भूमिका

उपाध्याय जी ने इस पुराण को केवल ग्रंथ की तरह नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा की तरह प्रस्तुत किया है। उनकी सरल हिंदी शैली ने इसे हर वर्ग के पाठक तक पहुँचाया है। जो बातें संस्कृत में गूढ़ लगती थीं, वे उनके लेखन में सहज और स्पष्ट हो जाती हैं।


निष्कर्ष

बाबूलाल उपाध्याय का भविष्य पुराण संस्करण न केवल धार्मिक आस्था का स्रोत है, बल्कि इतिहास और भविष्य की समझ को भी गहराई देता है। यह ग्रंथ हमें बताता है कि भविष्य केवल अज्ञात नहीं है, बल्कि वर्तमान कर्म और धर्म के आधार पर उसका निर्माण होता है। धर्म, नीति और भक्ति ही वह आधार है, जिससे मानव जीवन और समाज का उत्थान संभव है।

इस प्रकार यह पुस्तक उन लोगों के लिए अमूल्य है, जो पुराणों की परंपरा, धर्मशास्त्र, संस्कृति और भविष्यवाणी में रुचि रखते हैं।

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