Pratikraman by Dada Bhagwan PDF

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Pratikraman by Dada Bhagwan PDF

Book Type- Hindu Hindi Philosophical ebooks
File Format- PDF
Language- Hindi
Total Pages- 114
Size- 700Kb
Quality- HQ, without any watermark,

Pratikraman

पुस्तक के बारे में

प्रत्याख्यान दादा भगवान द्वारा रचित एक अत्यंत गहन और आत्ममंथन कराने वाली पुस्तक है। यह ग्रंथ आत्मा की शुद्धि, क्षमा, विनम्रता और आत्मबोध का संदेश देता है। इसमें बताया गया है कि मनुष्य अपने जीवन में अनेक बार ऐसी भूलें कर बैठता है जो दूसरों को पीड़ा देती हैं — कभी शब्दों से, कभी व्यवहार से, तो कभी विचारों से। इन भूलों को पहचानना, उनका पश्चाताप करना और भविष्य में वैसी गलती न करने का संकल्प लेना ही प्रत्याख्यान कहलाता है।

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दादा भगवान का दृष्टिकोण बहुत मानवीय और सहज है। वे यह नहीं कहते कि गलती न हो, बल्कि यह बताते हैं कि गलती होने पर मनुष्य कैसे अपने भीतर झाँककर उसे सुधार सकता है। उनका कहना था कि यदि मनुष्य सच्चे मन से अपनी गलती स्वीकार कर ले, तो वह अपने भीतर की शुद्ध आत्मा के करीब पहुँच जाता है।

पुस्तक में अनेक संवाद और उदाहरणों के माध्यम से यह बताया गया है कि प्रत्याख्यान केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि एक जीवनशैली है। यह व्यक्ति को दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाता है, अहंकार को कम करता है और आत्मा को हल्का करता है। दादा भगवान यह भी बताते हैं कि हर छोटा प्रत्याख्यान — चाहे वह किसी से रूखा बोलने के लिए हो या मन में किसी के प्रति नकारात्मक सोच रखने के लिए — हमारी आत्मा को शुद्ध करने की दिशा में एक कदम है।

लेखक के बारे में

दादा भगवान, जिनका वास्तविक नाम अंबालाल मुलजीभाई पटेल था, का जन्म 1908 में गुजरात के एक सामान्य परिवार में हुआ था। वे एक साधारण गृहस्थ जीवन जीते हुए भी आत्मबोध प्राप्त करने वाले अद्वितीय संत थे। उन्होंने “अक्रम विज्ञान” नामक एक विशिष्ट आध्यात्मिक पथ की स्थापना की — जो बिना तप, त्याग या कठोर साधना के सीधे आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग है।

दादा भगवान का मानना था कि हर व्यक्ति के भीतर परमात्मा विद्यमान है, बस उसे पहचानने की आवश्यकता है। उन्होंने धर्म को किसी संप्रदाय या परंपरा तक सीमित नहीं किया, बल्कि उसे एक मानवीय अनुभूति के रूप में प्रस्तुत किया। उनका संदेश था — “गलती मनुष्य से होती है, लेकिन उसे सुधारने की शक्ति भी मनुष्य में ही है।”

उन्होंने अपने जीवन में हमेशा करुणा, सादगी और क्षमा का मार्ग अपनाया। उन्होंने लोगों को सिखाया कि जीवन की सच्ची शांति बाहर नहीं, बल्कि अपने भीतर के दिव्य आत्मा को पहचानने में है।

निष्कर्ष

प्रत्याख्यान केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक आत्मपरिवर्तन की यात्रा है। यह मनुष्य को सिखाता है कि सच्चा सुख और मुक्ति तभी संभव है जब हम अपनी भूलों को पहचानकर, क्षमा मांगकर, और प्रेमपूर्वक आगे बढ़ना सीखें।

यह पुस्तक उन सभी के लिए उपयोगी है जो अपने भीतर शांति, सच्चाई और आध्यात्मिक संतुलन की खोज में हैं।

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