Ulta Darakht by Krishan Chander PDF

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Ulta Darakht by Krishan Chander PDF

Book Type- Hindu Hindi Teenager ebooks
File Format- PDF
Language- Hindi
Total Pages- 74
Size- 10mb
Quality- HQ, without any watermark,

Ulta Darakht
उल्टा दरख़्त

“उल्टा दरख़्त” मशहूर लेखक कृष्ण चंदर की एक व्यंग्यात्मक (satirical) और प्रतीकात्मक (symbolic) कहानी है, जो आधुनिक समाज की विडंबनाओं और नैतिक पतन को उजागर करती है। कृष्ण चंदर उर्दू और हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध प्रगतिशील लेखक थे, जिनकी रचनाओं में मानवीय करुणा, सामाजिक अन्याय के खिलाफ विद्रोह, और व्यंग्य की गहरी भावना दिखाई देती है। उन्होंने समाज के उस वर्ग की आवाज़ उठाई जो अक्सर अनदेखा रह जाता है — गरीब, मजदूर, किसान और आम इंसान।

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इस कहानी की शुरुआत एक अजीब घटना से होती है — लोगों को एक ऐसा पेड़ दिखाई देता है जो उल्टा उगता है। उसकी जड़ें आसमान की ओर हैं और शाखाएँ धरती के नीचे दबी हुई हैं। यह दृश्य सबको हैरान कर देता है, और हर व्यक्ति या वर्ग इसे अपनी सुविधा के अनुसार समझाने की कोशिश करता है। वैज्ञानिक इसे प्रकृति का चमत्कार बताते हैं, कुछ इसे विकास की नई दिशा कहते हैं। राजनेता इसे प्रगति का प्रतीक घोषित करते हैं, जबकि धर्मगुरु इसे ईश्वर का चमत्कार बताकर श्रद्धा का विषय बना देते हैं।

लेकिन आम जनता के लिए यह पेड़ किसी काम का नहीं है। उन्हें इससे न तो फल मिलता है, न छाया। बल्कि यह उल्टा पेड़ उनके जीवन की कठिनाइयों और असंतुलन का प्रतीक बन जाता है। समाज के ऊँचे तबके इस पेड़ की “महिमा” का गुणगान करते हैं, जबकि गरीब लोग इसकी बेकार छाया में पीड़ित रहते हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे सत्ता और व्यवस्था के लोग सत्य को तोड़-मरोड़ कर अपने हित में उपयोग करते हैं, जबकि साधारण इंसान इन झूठों के बोझ तले दबा रहता है।

कहानी का “उल्टा दरख़्त” वास्तव में उस व्यवस्था का प्रतीक है जहाँ सब कुछ उल्टा हो गया है — सच्चाई झूठ के नीचे दब चुकी है, ईमानदारी का मज़ाक उड़ाया जा रहा है, और भ्रष्टाचार को सामान्य मान लिया गया है। समाज में मूल्यों की जड़ें अब आकाश में हैं, जहाँ से कोई पोषण नहीं मिलता, और धरती — जो वास्तविकता और जीवन का आधार है — उससे सबका संबंध कट चुका है।

कृष्ण चंदर ने इस कहानी के माध्यम से गहराई से यह दिखाया है कि जब समाज में नैतिकता, न्याय और सच्चाई की जगह झूठ, लोभ और पाखंड ले लेते हैं, तो जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में इंसान का विवेक और सोच भी उल्टी दिशा में बढ़ने लगती है।

अंततः “उल्टा दरख़्त” केवल एक पेड़ की कहानी नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज का आईना है — एक ऐसा समाज जहाँ अच्छाई दबा दी गई है और बुराई को ऊँचा स्थान मिल गया है। कहानी यह सिखाती है कि जब तक समाज सच्चाई और ईमानदारी को उसका सही स्थान नहीं देता, तब तक यह संसार भी उसी उल्टे पेड़ की तरह बेमायने और निर्जीव बना रहेगा।

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