Vedic Dincharya by Prateek Prajapati
Book Type- Hindu Religion related Books
File Format- PDF
Language- Hindi
Total Pages- 84
Size- 6.5Mb
Quality- HQ, without any watermark,

वैदिक दिनचर्या – प्रतीक प्रजापति द्वारा
प्रतीक प्रजापति की पुस्तक वैदिक दिनचर्या एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें आधुनिक जीवनशैली और प्राचीन वैदिक परंपराओं का सुंदर संगम प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक केवल दिनभर की गतिविधियों का वर्णन नहीं करती, बल्कि यह बताती है कि कैसे समय के सही उपयोग और अनुशासित जीवन से मनुष्य का शरीर, मन और आत्मा तीनों स्वस्थ और संतुलित रह सकते हैं।
पुस्तक का उद्देश्य
इसका उद्देश्य यह है कि आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में भी हम वैदिक परंपराओं को अपनाकर एक संतुलित, स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकें। इसमें बताया गया है कि आयुर्वेद, ज्योतिष और धर्मशास्त्र के अनुसार दिन के विभिन्न समय पर कौन से कार्य करने चाहिए और क्यों करने चाहिए।
दिनचर्या का विस्तार
पुस्तक में दिनचर्या का क्रमवार विवरण दिया गया है।
- प्रातःकाल (ब्राह्म मुहूर्त): सूर्योदय से पहले जागना स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह समय साधना और अध्ययन के लिए श्रेष्ठ है।
- उठने के बाद: जल का सेवन करना, शौचक्रिया और स्नान द्वारा शरीर की शुद्धि करना।
- संध्यावंदन और प्रार्थना: देवताओं का स्मरण और आभार व्यक्त करना।
- योग, प्राणायाम और ध्यान: श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण और ध्यान से मन को स्थिर करना।
- भोजन संबंधी नियम: कब और कितना भोजन करना चाहिए, भोजन करते समय क्या नियम अपनाने चाहिए और किन चीज़ों से बचना चाहिए – इन सबका विस्तृत उल्लेख है।
- दैनिक कार्य: परिवार, समाज और स्वयं की उन्नति के लिए जिम्मेदारियों का निर्वाह।
- संध्याकाल: दिनभर की थकान दूर करने के लिए संध्यावंदन, प्रार्थना और आत्मचिंतन।
- रात्रि: समय पर भोजन और पर्याप्त नींद का महत्व, ताकि शरीर अगले दिन फिर से ऊर्जावान हो सके।
शास्त्र और आधुनिकता का मेल
लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति पूरे विधि-विधान से वैदिक अनुशासन न निभा पाए, तो भी छोटे-छोटे उपाय करके वह अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। जैसे – संक्षिप्त प्रार्थना, कुछ मंत्रों का जप या थोड़े समय का ध्यान।
श्लोक और स्तोत्र
पुस्तक में उपयुक्त समय पर बोले जाने वाले वैदिक श्लोक और स्तोत्र भी दिए गए हैं। इनका प्रयोग केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि
यह पुस्तक व्यक्तिगत अनुशासन तक सीमित नहीं है। इसमें बताया गया है कि यदि परिवार और समाज वैदिक जीवनशैली अपनाते हैं, तो उनमें स्वास्थ्य, नैतिकता और सांस्कृतिक गौरव की वृद्धि होती है। इस प्रकार यह पुस्तक एक प्रकार से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी आह्वान करती है।
निष्कर्ष
वैदिक दिनचर्या केवल एक पुस्तक नहीं बल्कि एक जीवन मार्गदर्शिका है। इसमें वर्णित दिनचर्या अपनाकर कोई भी व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से संतुलित और आत्मिक रूप से प्रगतिशील हो सकता है। लेखक ने इसे सरल और व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया है ताकि कोई भी व्यक्ति इसे अपने जीवन में सहजता से उतार सके।
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