Artiyan Sangrah (आरती संग्रह) part-2 Hindi religion book pdf file
ebook name- Artiyan Sangrah (आरती संग्रह)
file format- PDF
size- 9mb
pages- 125
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आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये?
आरतीको ‘आरात्रिक’ अथवा ‘आरार्तिक’ और ‘नीराजन’ भी कहते हैं। पूजाके अन्तमें आरती की जाती है। पूजनमें जो त्रुटि रह जाती है, आरतीसे उसकी पूर्ति होती है। स्कन्दपुराणमें कहा गया है-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः।
सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे॥
‘पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होनेपर भी नीराजन (आरती) कर लेनेसे उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।” आरती करनेका ही नहीं, आरती देखनेका भी बड़ा पुण्य लिखा है। हरिभतिविलासमें एक श्लोक है-
नीराजनं च यः पश्येद् देवदेवस्य चक्रिणः।
सप्तजन्मनि विप्रः स्यादन्ते च परमं पदम्॥
‘जो देवदेव चक्रधारी श्रीविष्णुभगवान्की आरती (सदा) देखता है, वह सात जन्मॉतक ब्राह्मण होकर अन्तमें परमपदको प्राप्त होता है।’ विष्णुधर्मोत्तरमें आया है।
धूपं चारात्रिक पश्येत् कराभ्यां च प्रवन्दते।
कुलकोटिं समुदधृत्य याति विष्णोः परं पदम्॥
“जो धूप और आरतीको देखता है और दोनों हाथोंसे आरती लेता हैं, वह करोड़ पीढ़ियाँका उद्धार करता है और भगवान् विष्णुके परमपदको प्राप्त होता है।” आरतीमें पहले मूलमन्त्र (जिस देवताका जिस मन्त्रसे पूजन किया गया हो, उस मन्त्र) के द्वारा तीन बार पुष्पाञ्जलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे, शङ्क, घड़ियाल आदि महावाद्योंके तथा जय-जयकारके शब्दके साथ शुभ पात्रमें घृतसे या कपूरसे विषम संख्याकी अनेक बतियाँ जलाकर आरती करनी चाहिये।
ततश्च मूलमन्त्रेण दत्त्वा पुष्पाञ्जलित्रयम्।
महानीराजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनैः॥
साधारणत: पाँच बत्तियोंसे आरती की जाती है, इसे ‘पद्धप्रदीप’ भी कहते हैं। एक, सात या उससे भी अधिक बतियोंसे आरती की जाती है। कपूरसे भी आरती होती है। पद्मपुराणमें आया है।
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Hindi religion book pdf Artiyan Sangrah (आरती संग्रह)