Kabir Sahab Ka Sakhi Sangrah (कबीर साहब का साखी संग्रह) by Mahabir Prasad Malbiya Hindi pdf file

e-book name- Kabir Sahab Ka Sakhi Sangrah (कबीर साहब का साखी संग्रह)
Author name- Mahabir Prasad Malbiya
Language- Hindi
File format- PDF
PDF size- 46mb
Pages- 203
कबीर साहिब की अति केामल और मनेाहर साखियाँ कई पुस्तकेाँ और फुटकर लिपियेाँ से चुनकर बड़ी सुद्धता के साथ ८४ अंगेाँ में छापी गई हैं ।
गुरु केा कीजै दंडवत, केाटि केटि परनाम ।
कीट न जानै भूङ्ग केा, वह कर ले आप समान ॥१॥
जगत जनाये जेहिं सकल, सेा गुरु प्रगटे आय।
जिन गुरु’ अखिन देखिया, से गुरु’ दिया लखाय ॥२॥
सतगुरु सम केा है सगा, साधू सम केा दांत ।
हरि समान केा हितू है, हरिजन सम केा जात ॥३॥
सतगुरु की महिमा अर्नेत, अर्नेत किया उपकार ।
लेाचन अनंत उघारिया, अनेंत दिखावनहार ॥४॥
जेहि खेाजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव ।
कहै कबीर सुन साधवा, कर सतगुरु की सेव ॥५॥
कबीर गुरु गरुआ मिला, रल गया आटे लेन ।
जाति पाँति कुल मिटिगया, नाम धरैगा कैन ॥६॥
ज्ञान-प्रकासी गुरु मिला, सेा जन बिसरि न जाय ।
जब साहिब किरपा करी, तब गुरु मिलिया आय ॥७॥
गुरु साहिब करि जानिये, रहिये सबद समाय ।
मिले ते दंडवत बंदगी, पल पल ध्यान लगाय ॥८॥
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