Kamandkiya Nitisar (कामन्दकीय नीतिसार) pdf

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Kamandkiya Nitisar (कामन्दकीय नीतिसार), Hindi ebook pdf
Book name- Kamandkiya Nitisar (कामन्दकीय नीतिसार)
Author- Jwalaprasad Mishra (ज्वालाप्रसाद मिश्र) and Ram Singh Tomar (रामसिंह तोमर)
Book Type- Hindi book
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 205
Size- 8 Mb
Quality- good, without any watermark

Kamandkiya Nitisar (कामन्दकीय नीतिसार)

यस्य प्रभावाद्धवनं शाश्वते पथि तिष्ठति ।
देवः स जयति श्रीमान् दण्डधारो महीपतिः ॥ १॥
दोहा-जिनकी कृपाकटाक्षसे, सिद्ध होत सब काम ।
जन ज्वालाप्रसादपर, द्रवहुराम घनश्याम॥१॥
जिसके प्रभावसे यह त्रिभुवन सनातन मर्यादा नीतिमार्गमें निरन्तर स्थिति करताहै उस परात्पर दण्डधारी परमेश्वरकी सदा जय हो, अथवा जिसके प्रतापसे यह भूमण्डल निरन्तर धर्ममार्ग में प्रवर्तित होताहै, उस प्रबल प्रतापी राजाकी सदा जय हो ॥ १ ॥
वंशे विशालवेश्यानायुषीणाणिव भूयसाम् ।
अप्रतिमाहकाणां यो बभूव भुवि विभुतः ॥ २॥
जिसने अप्रतिग्रहशील विशालकुलमें बड़े महर्षियोंकी समान प्रसिद्धवंशमें जन्म ग्रहण कियाहै जो पृथ्वीमें विख्यातहै ॥ २ ॥
जातवेदा इवार्चिष्मान वेदान् वेदविदां वरः।
योऽधीतवान् सुचतुरश्चतुरोऽप्येकवेदवत् ॥ ३ ॥
जो अग्निके समान तेजस्वी जिसने एक बेदके समान ऋक्, यजुः, साम, अथर्व, चारों वेदोंका अध्ययन कियाहै ॥ ३ ॥
यस्याभिचारवजेण बजज्वलनतेजसः ।
पपात मूलतः श्रीमान् सुपर्वा नन्दपर्वतः ॥४॥
जा बत्र और आमिके ममान तनम्बी निमकं मवाभिचारम्प पत्रमहारम जर पर्वपाला श्रीमान नन्दवशम्प पर्वत समूल नष्ट होगया ॥४॥
एकाकी मन्त्रशच्या यः शक्त्या शक्तिधरोपमः। .
आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम् ॥५॥
जो पराकमम साक्षात कार्तिकयके समान जिसने इन्टही मग्रम्प शक्ति के प्रभास चन्द्रगुप्तरानाको मामान्य दिया ॥ ५॥
नीतिशास्त्रामृतं धीमानर्थशास्त्रमहोदधेः।
समुद्दधे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेवसे ॥६॥
निसने अर्थशास्त्ररुप महासमुद्रस नानिशालम्प अमृत निकाटा उस अमीमगुणसम्पन्न विष्णुगुप्त (चाणाय)क निमित्त नमस्कारह ॥ ६ ॥
दर्शनात् तस्य सुदृशो विद्यानां पारदृश्वनः।
राजविद्यानियतया संक्षिप्तग्रन्थमर्थवत् ॥ ७॥
आन्वीक्षिकी, त्रयी, बानी और दण्डनीति मभृति सर्वशास्त्रविशारद निर्मलजानमपन्न उस गुन्वर विष्णुगुप्तपणीत शासका अनुशीलन करके
मन जो ज्ञान माप्तकिया उसके अनुमार राजनीतिषियताकै कारण सक्षपसे – यह “नीतियथ” मकान करताह ॥७॥
उपार्जन पालने च भूमे मीश्वरं प्रति ।
यत्किञ्चिदुपदेश्यामो राजविद्याविदां मतम् ॥८॥
राज्यलाभ और राज्यमतिपालनसम्बन्धमे राजाको जो उपाय अवलम्बन करने उचितहे, हम इस ग्रथम वह नर्णन करतेहे ॥ ८॥….

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