Nakshatra Jyotish (नक्षत्र ज्योतिष) । Hindi ebook नक्षत्र फल ज्योतिष pdf

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Nakshatra Jyotish (नक्षत्र ज्योतिष) । Hindi ebook नक्षत्र फल ज्योतिष pdf
Book name- Nakshatra Jyotish (नक्षत्र ज्योतिष)
Author- Raghunandan Prasad Gaud (रघुनन्दन प्रसाद गौड़)
Book Type- Hindi Astrology related book
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 227
Size- 33mb
Quality- good, without any watermark

Nakshatra Jyotish (नक्षत्र ज्योतिष) pdf

मानव को आदिकाल से अपना शुभाशुभ भविष्य जानने की उत्कंठा रही है। इस उद्देश्य से उसने आकाश का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया। अनन्त आकाश में फैले हुए देदीप्यमान पिण्डों से प्रसारित रश्मियों द्वारा मानव पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव का अध्ययन ज्योतिर्विज्ञान अथवा ज्योतिष विज्ञान (Astrological Science) है। असंख्य देदीप्यमान आकाशीय पिण्डों (तारों व नक्षत्रों) से प्रसारित रश्मियों का सीधा प्रभाव तो मानव पर पड़ता ही है, साथ ही उनके क्षेत्र में भ्रमणरत विभिन्न ग्रहों द्वारा परावर्तित रश्मियों का शुभाशुभ प्रभाव भी मानव के विभिन्न क्रियाकलापों पर पड़ता है। तीव्रता तथा कोणात्मक भिन्नता के कारण ये रश्मियां भिन्न-भिन्न जातकों को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं अर्थात् किसी जातक के लिए शुभ होती हैं तो दूसरे जातक के लिए अशुभ एवं हानिकारक हो सकती हैं।प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने अपनी दिव्य दृष्टि एवं सूझबूझ द्वारा क्रान्तिपथ (Ecliptic) के इर्द-गिर्द फैले हुए उन नक्षत्र-समूहों (Constellations) का उच्च-स्तरीय ज्ञान प्राप्त कर लिया था जो मानव को प्रभावित करते हैं। वैदिक तथा महाभारत काल तक भारतीय ज्योतिष में राशियों का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था। उस समय ज्योतिष विज्ञान केवल नक्षत्र विज्ञान ही था। नक्षत्रों के आधार पर ही विभिन्न ग्रहों का शुभाशुभ फलकथन किया जाता था।
ईसा की प्रारम्भिक सदियों में जब बेबीलोन तथा खल्दियाई ज्योतिष जगत से भारत में राशियों का आगमन हुआ तब धीरे-धीरे नक्षत्र-विज्ञान का स्थान राशि विज्ञान ने ले लिया। आज अधिकांश ज्योतिर्विद केवल राशियों के आधार पर ही फलकथन करते हैं, नक्षत्रों का ध्यान नहीं रखते। इसी कारण अनेक फलकथन केवल राशि-संदर्भ में सही प्रतीत होते हुए भी सत्य घटित नहीं हो पाते क्योंकि राशि तो भचक्र का एक स्थूल विभाग है जबकि नक्षत्र एक सूक्ष्म विभाग है। एक राशि का एक स्वामी ग्रह होता है परन्तु एक राशि में पूर्ण एवं आंशिक रूप से तीन नक्षत्रों का समावेश होता है। जिनमें से प्रत्येक का स्वामी अलग-अलग ग्रह होता है। जैसे वृषभ राशि का स्वामी शुक्र है जबकि वृषभ राशि में कृतिका, रोहिणी तथा मृगशिर नक्षत्र सम्मिलित हैं, जिनके स्वामी क्रमशः सूर्य, चन्द्र तथा मंगल हैं। अतः वृषभ राशि के जातक पर न केवल शुक्र का प्रभाव पड़ेगा वरन् सूर्य, चन्द्र अथवा मंगल का प्रभाव भी पड़े बिना नहीं रह सकता। . आज हम नक्षत्र के आधार पर फलकथन की विधा को भूल से गए हैं। हां, फलकथन के अतिरिक्त अधिकांश ज्योतिषीय कार्य नक्षत्रों के आधार पर ही करते आ रहे हैं । जन्म नक्षत्र के आधार पर ही जातक का नामकरण किया जाता है। जातक की योनि, तारा, गण, नाड़ी, युजा, पाया आदि का आधार भी नक्षत्र ही है। सभी प्रकार की महादशाओं का निर्धारण चन्द्र नक्षत्र के आधार पर ही किया जाता है। मुहूर्त, शुभाशुभ योग, विवाह एवं संस्कारादि भी नक्षत्रों के आधार पर ही होते हैं। परन्तु फलकथन में नक्षत्रों का महत्व समाप्त सा हो गया है। फलकथन में राशियां प्रमुख और नक्षत्र गौण हो गए।
अधिकांश ज्योतिर्विद नक्षत्रों के आधार पर ज्योतिषीय कार्य तो कर रहे हैं परन्तु वे शायद ही इस बात से भिज्ञ हों कि अमुक नक्षत्र आकाश में कहां है? उस नक्षत्र समूह में कितने तारे हैं? ये तारे किस कांतिमान के हैं? इनसे क्या आकृति बनती है तथा ये किस माह रात्रि में आकाश में दिखाई दे सकते हैं? नक्षत्र किस क्रम में उदय होते हैं? आदि। यद्यपि यह जानकारी खगोलशास्त्र (Astronomy) से सम्बन्धित है तथापि एक ज्योतिर्विद को इसका सामान्य ज्ञान होना आवश्यक है ताकि उसका उद्देश्य ‘रटने’ तक ही सीमित न रहे।
प्रस्तुत पुस्तक में नक्षत्रों से सम्बन्धित सामान्य जानकारी के साथ-साथ आकाश में नक्षत्र समूहों की वास्तविक स्थिति खगोल-शास्त्र के परिपेक्ष्य में मानचित्रों व रेखाचित्रों की सहायता से समझाई गई है तथा नक्षत्रों के आधार पर राशि-सापेक्ष फल में परिवर्तन को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। अनेक उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है कि राशि के आधार पर जो ग्रह शुभ फलदायक माना जा रहा है, किस प्रकार नक्षत्र एवं इसके स्वामी की अशुभता के आधार पर अशुभ फलदायक हो जाता है तथा इसके विपरीत एक अशुभ फलदायक ग्रह नक्षत्र-स्वामी की शुभता के कारण शुभ फल प्रदान कर देता है। संक्षेप में कृष्णमूर्ति पद्धति को भी व्यावहारिक रूप से समझाने का प्रयास किया गया है।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक नक्षत्रों के आधार पर सही फलादेश करने का मार्ग प्रशस्त कर सकेगी।
मैं मैसर्स मनोज पॉकेट बुक्स, दरीबा कलां, दिल्ली का आभारी हूं जिन्होंने इस पुस्तक का प्रकाशन त्वरित गति से किया।
मेरी पूर्व प्रकाशित पुस्तक ‘जन्मपत्री रचना में त्रुटियां क्यों?’ को पाठको स आशीर्वाद एवं संरक्षण प्राप्त हुआ है उसी आशीर्वाद एवं संरक्षण की आशा करता हुआ… रघुनन्दन प्रसाद गौड़

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(कृष्णमूर्ति पद्धति सहित)
ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में भारतीय ज्योतिष द्वाश राशियों को अंगीकृत करने के पश्चात धीरे-धीरे राशियों की फलकथन के क्षेत्र में नक्षत्रों का स्थान ले लिया। तब से ही नक्षत्रों के आधार पर फलकथन की विधा को भूल से गए हैं।
गणित एवं फलित ज्योतिष के साथ-साथ खगोल शास्त के ज्ञाता.एवं अनेक ज्योतिष ग्रन्थों के रचयिता श्री रघुनन्त
पुनन्दन प्रसादं गौड़ ने इस ग्रन्थ में न केवल मानचित्रों-रेखालिस ” द्वारा आकाश में नक्षत्रों की स्थिति, आकृति एवं पहचा प्रस्तुत की है वरन् अपनी सशक्त लेखनी द्वारा नक्षन्नाधान फलकथन की बारीकियों को भी उजागर किया है।
आशा है नाक्षत्र ज्योतिष पर लिखा यह अद्वितीय गान फलकथन में नक्षत्रे की महती भूमिका को पुनस्थापित करने में सक्षम होगा।

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