Shrimadbhagvad Gita (श्रीमद भगवद गीता) Hindi ebook in pdf

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Shrimadbhagvad Gita (श्रीमद भगवद गीता) परिशिष्टसहित, हिन्दी-टीका, Hindi ebook in pdf
e-book name- श्रीमद भगवद गीता
Author- Unknown
Book Type- धर्म-ग्रंथ
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 1299
Size- 7Mb
Original uploader- maanavta dot com
Quality- HQ, without any watermark, clickable table of contents

Shrimad Bhagvad Gita (श्रीमद भगवद गीता) pdf

Shrimad Bhagvad Gita: भगवद गीता एक प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथ होने के साथ-साथ एक त्रुटिहीन दर्शन है जो हिंदू परंपरा की एक महत्वपूर्ण रचना है। भगवद गीता 400 ईसा पूर्व और 200 सीई के बीच लिखी गई थी। वेदों और उपनिषदों की तरह, भगवद गीता का लेखकत्व भी अज्ञात है।

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विश्व-साहित्यमें श्रीमद्भगवद्गीताका अद्वितीय स्थान है। यह साक्षात् भगवान्के श्रीमुखसे नि:सृत परम रहस्यमयी दिव्य वाणी है। इसमें स्वयं भगवान्ने अर्जुनको निमित्त बनाकर मनुष्यमात्रके कल्याणके लिये उपदेश दिया है। इस छोटे-से ग्रन्थमें भगवान्ने अपने हृदयके बहुत ही विलक्षण भाव भर दिये हैं, जिनका आजतक कोई पार नहीं पा सका और न पा ही सकता है।
हमारे परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने इस अगाध गीतार्णवमें गहरे उतरकर अनेक गुह्यतम अमूल्य रत्न ढूंढ़ निकाले हैं, जिन्हें उन्होंने इस ‘साधक-संजीवनी’ हिन्दी-टीकाके माध्यमसे साधकोंके कल्याणार्थ उदारहृदयसे वितरित किया है। गीताकी यह टीका हमें अपनी धारणासे दूसरी टीकाओंकी अपेक्षा बहुत विलक्षण प्रतीत होती है। हमारा गीताकी दूसरी सब टीकाओंका इतना अध्ययन नहीं है, फिर भी इस टीकामें हमें अनेक श्लोकोंके भाव नये और विलक्षण लगे; जैसे- पहले अध्यायका दसवाँ, उन्नीसवाँ-बीसवाँ और पचीसवाँ श्लोक; दूसरे अध्यायका उनतालीसवाँ-चालीसवाँ श्लोक; तीसरे अध्यायका तीसरा, दसवी, बारहवाँ-तेरहवाँ और तैंतालीसवाँ श्लोक; चौथे अध्यायका अठारहवाँ और अड़तीसवाँ श्लोक, पाँचवें अध्यायका तेरहवाँ-चौदहवाँ श्लोक छठे अध्यायका बीसवाँ और अड़तीसवाँ श्लोक; सातवें अध्यायका पाँचवाँ और उन्नीसवाँ श्लोक; आठवें अध्यायका छठा श्लोक; नवें अध्यायका तीसरा और इकतीसवाँ श्लोक; दसवें अध्यायका इकतालीसवाँ श्लोक; ग्यारहवें अध्यायका छब्बीसवाँ-सत्ताईसवाँ और पैंतालीसवाँ-छियालीसवाँ श्लोक; बारहवें अध्यायका बारहवाँ श्लोक; तेरहवें अध्यायका पहला और उन्नीसवाँ-बीसवाँ-इक्कीसवाँ श्लोक, चौदहवें अध्यायका तीसरा, बारहवाँ, सत्रहवाँ और बाईसवाँ श्लोक; पन्द्रहवें अध्यायका सातवाँ और ग्यारहवाँ श्लोक; सोलहवें अध्यायका पाँचवाँ और बीसवाँ श्लोक; सत्रहवें अध्यायका सातवाँ, आठवाँ, नवाँ, दसवाँ श्लोक; अठारहवें अध्यायका सैंतीसवा और तिहत्तरवाँ श्लोक आदिआदि। अगर पाठक गम्भीर अध्ययन करें तो उसे और भी कई श्लोकोंमें आंशिक नये-नये भाव मिल सकते हैं।
वर्तमान समयमें साधनका तत्त्व सरलतापूर्वक बतानेवाले ग्रन्थोंका प्रायः अभाव-सा दीखता है, जिससे साधकोंको सही मार्ग-दर्शनके बिना बहुत कठिनाई होती है। ऐसी स्थितिमें परमात्मप्राप्तिके अनेक सरल उपायोंसे युक्त, साधकोपयोगी अनेक विशेष और मार्मिक बातोंसे अलंकृत तथा बहुत ही सरल एवं सुबोध भाषा-शैलीमें लिखित प्रस्तुत ग्रन्थका प्रकाशन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। | परमश्रद्धेय स्वामीजीने गीताकी यह टीका किसी दार्शनिक विचारकी दृष्टिसे अथवा अपनी विद्वत्ताका प्रदर्शन करनेके लिये नहीं लिखी है, अपित साधकोंका हित कैसे हो-इसी दृष्टिसे लिखी है। परमशान्तिकी प्राप्ति चाहनेवाले प्रत्येक साधकके लिये, चाहे वह किसी भी देश, वेश, भाषा, मत, सम्प्रदाय आदिका क्यों न हो, यह टीका संजीवनी बूटीके समान है। इस टीकाका अध्ययन करनेसे हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई, मुसलमान आदि सभी धर्मोके अनुयायियोंको अपने-अपने मतके अनुसार ही उद्धारके उपाय मिल जायेंगे। इस टीकामें साधकोंको अपने उद्देश्यकी सिद्धिके लिये पूरी सामग्री मिलेगी।
परमशान्तिकी प्राप्तिके इच्छुक सभी भाई-बहनोंसे विनम्र निवेदन है कि वे इस ग्रन्थ-रत्नको अवश्य ही मनोयोगपूर्वक पढ़ें, समझें और यथासाध्य आचरणमें लानेका प्रयत्न करें। -प्रकाशक

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