Rajasthani Ranivas (राजस्थानी रनिवास) by Rahul Sankrityayan Hindi ebook pdf download
e-book name- Rajasthani Ranivas (राजस्थानी रनिवास)
Author name- Rahul Sankrityayan
Language- Hindi
File format- PDF
PDF size- 15mb
Pages- 352
Quality- good, no watermark
मेरी इस पुस्तक के बारे में कहा जा सकता है, कि यह देर से लिखी गई, क्योकि इसमें राजस्थान की सात पर्दे में रहनेवाली जिन रानियो और ठाकुरानियो की बेबसी, दुखगाथा और वहा के पुरुषो की स्वेच्छाचारिता का वर्णन किया गया है, वह अब अतीत की वस्तु होने लगी है, इसलिए इससे परतन्त्र असूर्यम्पश्याओ को अन्धकार में सहायता नही मिल सकती। इसका उत्तर यह भी हो सकता है, कि इतिहास से विस्मृत हो जानेवाली इस जीवन का लिपिबद्ध होना जरूरी है, ताकि असूर्यम्पश्याओं की अगली सन्ताने तथा इतिहास के प्रेमी भी उनके बारे में जान सके। साथ ही यह भी ध्यान में रखने की बात है, कि यद्यपि राजस्थान के तहखाने टूट रहे है और उनके भीतर पीडियो से पले प्राणी बाहर निकलते आ रहे है, लेकिन तो भी तहखानो के बिलकुल साफ और खतम होने में कुछ देर लगे बिना नही रहेगी, इसलिए हो सकता है, स्वेच्छा से मालिक के अस्तबल के किनारे फेरा लगानेवाली मुक्त-दासियो को इस पुस्तक से कुछ सहायता भी मिल जाये।
इस पुस्तक में सभी स्थानो और व्यक्तियो के नामो को बदल दिया गया है, इसका कारण स्पष्ट है-लेखक व्यक्ति को थोडा और सामन्त-समाज को ज्यादा दोषी मानता है, इसलिए व्यक्ति का नाम देकर उसको मानसिक कष्ट पहुचाने से कोई फायदा नही । हो सकता है, घटनाओ और व्यक्तियो के समीप रहनेवाले पाठक उन्हे पहचान जाय, लेकिन उन्हे भी हर एक व्यक्ति के सभी पहलुओ को मिलाकर अपनी राय देनी चाहिए। इस पुस्तक में स्थान-स्थान पर व्यक्तियो के गुणो का भी चित्रण हुआ है। हतभागिनी गौरी के दुखो का कारण आप ठाकुर साहब को कह सकते है, लेकिन साथ ही जब यह भी देखते है, कि कितनी ही बार वह गढ़े से बाहर निकलने की कोशिश करते है, लेकिन सफल नही होते। सौत के ऊपर आप गुस्सा कर सकते है, लेकिन वह भी क्या करे ? उसे अपने को सुखी रखना है। दाव-पेंच खेलती है, केवल इसीलिए कि कही उसके भाग्य का फैसला दूसरे के फेंके पासे द्वारा न हो जाय। माथ ही वह अपने वर्ग में इस तरह का शिप्ट-आचार देखती है, इसलिए उसे उसका अनुसरण करनाही लगना। सबसे अधिक दोपी आप सेठ को ठहरा सकते है। उसके चरित्र में सचमुच कही पर भी शुक्ल स्थान दिखलाई नही पडता, लेकिन वह भी सामन्ती ममाज का विधाना नही। हा, वह उस वर्ग का प्रतिनिधि जरूर है, जो कि पेड पर से गिरे आम की बीच में ही से अपने हाथ मे आज किये हुए है। उसके चरित्र में यही मालम होगा, कि सेठो का हृदय सामन्तो मे भी निकृष्ट है।
यह कोई उपन्यास नही है, इसे कहना शायद अनावश्यक है। यहा आई हुई घटनाए। १९१० ई० से ११५२ ई० तक की है । इस सीमा को एकाध ही जगह उल्लधन किया गया है। सारी घटनाए राजस्थान की है, एकाध जगह ही उन्होने बाहर पैर रक्खा है।- राहुल साकृत्यायन
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