Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्रीता) Hindi pdf download

Advertisement

Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्रीता) Hindi pdf download
ebook name- Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्रीता)
Book type- Scripture, and Bhagavad Gita
File type- pdf
PDF size- 4mb
Pages- 991
Quality- HQ, no watermark

Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्रीता) Hindi

श्रीमत्कृष्णद्वैपायन-वेदव्यास द्वारा रचित
श्रीमद्भगवद्रीता
श्रीगौड़ीयवैष्णवाचार्य-मुकुटमणि श्रीमविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर विरचित
सारार्थवर्षिणी टीकासहित

Advertisement

महाभारत युद्धकी पृष्ठभूमि

महाराज शान्तनु कुरुवंशके एक प्रसिद्ध, प्रभावशाली, महापराक्रमी और धार्मिक सम्राट थे। इनकी पत्नी गङ्गादेवीके गर्भसे आठवें वसुके अंशसे भीष्मका जन्म हुआ था, किन्तु बालकके जन्मके अनन्तर किसी विशेष कारणसे वे अन्तर्हित हो गईं। महाराज शान्तनुने किसी समय आखेट करते हुए निषादोंके राजा दासराजके घर एक अपूर्व रूपवती राजकन्याको देखा। वस्तुतः वह राजकन्या उपरिचर वसुके वीर्य द्वारा एक मछलीके पेटसे पैदा हुई थी। निषादराज बेटीकी भाँति उसका पालन-पोषण करते थे। महाराजने निषादराजसे अपनी शादीके लिए उस राजकन्याको माँगा। किन्तु निषादराजने विवाहके लिए एक प्रतिबन्ध रखा, वह यह कि सत्यवतीकुमार ही राजा होगा महाराजने इसे स्वीकार नहीं किया और वे राजधानी लौट आए। यह बात किसी प्रकार युवराज भीष्मके कानोंमें पड़ी। उन्होंने पिताके मनोरथकी पूर्त्तिके लिए यह भीषण प्रतिज्ञाकी कि सत्यवतीकुमार ही राजा होगा तथा मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा। इस प्रकार सत्यवतीका विवाह पिता शान्तनुके साथ करवाया। इस भीषण प्रतिज्ञाके लिए इनके पिताजीने इनको इच्छामृत्युका वरदान दिया था। सत्यवतीके गर्भसे महाराज शान्तनुके दो पुत्र हुए-चित्राङ्गद और विचित्रवीर्य।
महाराज शान्तनुकी मृत्युके पश्चात् भीष्मने चित्राङ्गदको राजसिंहासन पर बैठाया, किन्तु इनकी असामयिक मृत्युसे विचित्रवीर्यको राज्यपद दिया गया। इनकी दो पत्नियाँ थीं-अम्बिका और अम्बालिका। किन्तु निःसन्तान दशामें विचित्रवीर्यकी भी असामायिक मृत्यु हो गई। पुत्रोंके निधनसे तथा वंशपरम्राके रुद्ध हो जानेके कारण माता सत्यवती बड़ी दुःखी हो गई। इन्होंने वंशकी रक्षाके लिए अपने प्रथम पुत्र महर्षि वेदव्यासका स्मरण किया। वेदव्यासजीने माता सत्यवतीकी आज्ञा तथा भीष्म पितामहका अनुमोदन जानकर विचित्रवीर्यकी पत्नी अम्बिकासे धृतराष्ट्र, अम्बालिकासे महाराज पाण्डु तथा उनकी दासीके गर्भसे महात्मा विदुरजीको उत्पन्न किया।
धृतराष्ट्रके जन्मान्ध होनेके कारण पाण्डु ही राजसिंहासनपर अधिष्ठित हुए। महाराज पाण्डु एक पराक्रमी प्रभावशाली और सर्वसद्गुणसम्पन्न सम्राट थे। इनके पाँच पुत्र हुए। जिनमें ज्येष्ठ पुत्रका नाम युधिष्ठिर था। धृतराष्ट्रके एक सौ पुत्रोंमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। कालकी गतिसे राजकुमारोंकी छोटी आयुमें ही महाराज पाण्डुकी मृत्यु हो गई। अतः भीष्म पितामहने राजकुमारोंके बड़े होने तक धृतराष्ट्रको ही राज्य-संरक्षकके रूपमें राजसिंहासनका दायित्व दिया। जब पाँचों पाण्डव और धृतराष्ट्रके दुर्योधन आदि पुत्र युवावस्थाको प्राप्त हुए, तब राजगद्दीका प्रश्न उठा। महाराज धृतराष्ट्र अपने पुत्रोंके प्रति पक्षपाती थे। वे छल-बलसे दुर्योधनको ही राज्यपदपर अभिसिक्त करना चाहते थे। किन्तु भीष्म पितामह जैसे परम धार्मिक, पूज्य व्यक्तियों तथा प्रजाओंके दबावके कारण ऐसा नहीं कर सके। दुर्योधन कलिके अंशसे पैदा हुआ था। वह बड़ा ही दुष्ट, दुराचारी और अधार्मिक व्यक्ति था। वह नाना प्रकारके षडयन्त्रोंके द्वारा पाण्डवोंको मारकर निष्कण्टक राजसिंहासन चाहता था। महाराज धृतराष्ट्र भी मन-ही-मन उसके बुरे कृत्योंका अनुमोदन करते थे।
महर्षि व्यास, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, महात्मा विदुर आदिके पुनः पुनः अनुरोध करनेपर भी धृतराष्ट्रने पाण्डुवोंको उनका प्राप्य आधा राज्य नहीं दिया। उन्होंने बाह्यरूपसे युवराज युधिष्ठिरको आधे राज्यके राजाके रूपमें अभिषेककर नव-निर्मित वारणावत नगरमें भेज दिया। दुर्योधन उस नये राजभवनको जलाकर पाण्डवोंको मार डालना चाहता था। धृतराष्ट्रका भी इसमें अनुमोदन था। किन्तु, भगवत्-इच्छासे पाण्डव लोग किसी प्रकार बच निकले।
इसके कुछ समयके बाद द्रौपदीसे पाण्डवोंका विवाह हुआ। पाण्डव अभी जीवित हैं, यह पता लगनेपर दुर्योधनने पितासे परामर्श कर पाण्डवोंको पुनः हस्तिनापुरमें बुलवाया। इधर भीष्म पितामह आदि गुरुजनके आदेश एवं प्रजाके अनुरोधसे पाँचों पाण्डवोंको खाण्डवप्रस्थ अथवा इन्द्रप्रस्थ नामक स्थानका राजत्व सौंप दिया। पाण्डवोंने वहाँ श्रीकृष्णकी सहायतासे मयदानव द्वारा एक अद्भुत सुन्दर नगरी और राजभवनका निर्माण करवाया। कुछ ही दिनोंमें पाण्डवोंने भारतवर्षके बड़े-बड़े राजाओंको जीतकर एक महाराजसूय यज्ञका अनुष्ठान किया।
महाराज धृतराष्ट्र एवं दुर्योधन आदि पाण्डवोंके राजसूय यज्ञको देखसुनकर ईर्ष्यासे जल उठे। उन्होंने पुनः षडयन्त्रकर कपटतापूर्वक द्यूत क्रीड़ामें पाण्डवोंका राज्य ले लिया तथा उन्हें बारह वर्षके लिए वनवास और एक वर्षके अज्ञातवासके लिए बाध्य किया। किन्तु, वह समय पूरा होनेपर भी पाण्डवोंको उनका राज्य नहीं लौटाया गया। औरोंकी तो बात ही क्या श्रीकृष्ण भी पाण्डवोंका दूत बनकर हस्तिनापुरमें गए, किन्तु दुर्योधन अपनी हठ पर अड़ा रहा। उसने पाँच गाँवकी तो बात ही क्या, बिना युद्धके सुईकी नोक भर भी जमीन देना स्वीकार नहीं किया। धर्मकी प्रतिष्ठा, साधुओंकी रक्षा तथा दुष्टोंके निग्रहके लिए भगवान् श्रीकृष्णका आविर्भाव हुआ था। उन्होंने इस महाभारत युद्धके द्वारा अर्जुन और भीमको निमित्त बनाकर पृथ्वीका भार बहुत-कुछ अंशोमें हरण किया।

प्रिय पाठकों!, इस ‘Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्रीता)’ को पीडीऍफ़ में डाउनलोड करें।

Collect the pdf of this Hindi scripture or Read online
इस पुस्तक के मूल स्त्रोत के बारे में जान सकते हैं, यहां से

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *