Srimad Bhagavad Mahapuranam (श्रीमद्भागवतमहापुराणम्) Hindi scripture ebook pdf file
ebook name- Srimad Bhagavad Mahapuranam (श्रीमद्भागवतमहापुराणम्) with Hindi Anubad
File type- pdf
PDF size- 16mb
Pages- 434
Quality- good, no watermark
भक्त पाठकों
भक्त, भक्ति, भगवान् और भागवत-इन शब्दों में एक ही भज् धातु उसी प्रकार ओत-प्रोत है जिस प्रकार एक ही सूत्र पुष्पादि की लंबी माला में अनुस्यूत रहता है। भज् धातु का अर्थ है- सेवा (भज् सेवायाम-पाणिनि धातुपाठ) । अतएव भक्त का अर्थ हुआ ‘सेवक’ । भक्ति का अर्थ है- ‘संवा’ । भगवान् का अर्थ है-‘सेव्य (षडैश्वर्य सम्पन्न)’। और भागवत का अर्थ है-“भगवान् का स्वरूप या विग्रह । तभी तो पद्मपुराणान्तर्गत श्रीमद्भागवत के माहात्म्य-अध्याय- ३, श्लोक ६१-६२ में स्पष्ट रूप से श्रीमद्भागवत को भगवान् का श्रीविग्रह घोषित किया है
‘स्वकीयं यद्भवेत्तेजस्तच्च भागवतेऽदघात् ।
तिरोधाय प्रविष्टोऽयं श्रीमद्भागवतार्णवम् ॥
तेनेयं वाङ्मयी मूतिः प्रत्यक्षा वर्तते हरेः ।
सेवनाच्छवणात्पाठाद्दर्शनात्पापनाशिनी ॥’
(दे० हमारे संस्करण प्र० ख० पृ० ११०)
यही कारण है कि आस्तिक समाज में श्रीमद्भागवत पुस्तक की पूजा के बाद ही उसका पारायण होता है। यों तो विष्णु भक्ति से सम्बद्ध होने के कारण विष्णु, नारद, भागवत, गरुड, पप और वाराह ये ६ पुराण सात्विक माने गये हैं। किन्तु इनमें भागवत पुराण सबसे अग्रणी है। क्योंकि इसके विषय में पाणिनि के सूत्र ‘यावदवधारण’ २१८ के उदाहरण में ‘यावच्छलोकम्’ प्रयोग आया है। इसका अर्थ प्राचीन परम्परा से यह किया जाता है-यावन्तः श्लोकास्तावन्तोऽच्युतप्रणामा:- भागवत के जितने श्लोक हैं, उतने विष्णु के प्रणाम के द्योतक हैं अर्थात् भागवत के सभी श्लोकों से प्रकट होता है कि विष्णु प्रणम्य हैं।
ऐसे भागवत ग्रन्थ पर अनेकानेक टीकायें लिखी गई हैं। किन्तु वे सब विद्वानों के लिए ही उपादेय हैं, सर्वसाधारण के लिए नहीं। इसलिए सर्वसाधारण भी भागवत के अर्थों का हृदयंगम करे इस विचार की आदर्श मानकर मैं इस महापुराण के टीका-लेखन कार्य में प्रवृत हुई हूँ। आठ खण्डों में प्रकाशित होने वाले संस्करणों का प्रथम खण्ड संवत् २०४१ में प्रकाशित हो चुका है, जिसमें श्रीमद्भागवत-माहात्म्य सहित प्रथम स्कन्ध मुद्रित है। उस संस्करण का सहृदय पाठकों ने स्वागत किया है। उससे प्रोत्साहित होकर मैं यह द्वितीय खण्ड भी पाठकों के हाथ में समर्पित कर रही हूँ। इस खण्ड में द्वितीय तथा तृतीय स्कन्ध मुद्रित हैं। द्वितीय स्कन्ध में भगवान् के विराट् स्वरूप से लेकर भागवत के दश लक्षण तक वर्णित हैं। तृतीय स्कन्ध में उद्धव और विदुर को भेंट वार्ता से लेकर कर्दम ऋषि की पत्ना देवहूति के मोक्षपद प्राप्ति का वृतान्त कहा गया है।
प्रथम स्त्रण्ट में पूजन सामग्री, हवन सामग्रों तथा श्रीमद्भागवत महापुराण के पूजन एवं पाठ की संक्षित विधि आदि विषय लिखे जा चुके हैं। इसके लिए जिज्ञासु को प्रथम खण्ड देखना चाहिए।
अन्त में मैं इस विशड के प्रकाशन में सहयोग करने वाले पं० श्री आजाद मिश्र, श्री कमलनयन शर्मा तथा आचार्य श्री तारिणीश झा जी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यत करती हूँ।- निवेदिका, दयाकान्ति देवी अग्रवाल
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