Vindhaya Babu by Santosh Narain Nautial PDF

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Vindhaya Babu by Santosh Narain Nautial PDF
Vindhaya Babu (विन्ध्या बाबू)
Author- Santosh Narain Nautial (संतोष नारेन नौटियाल),
Book Type- A Hindi humorous novel
File Format- PDF,
Language- Hindi,
Pages- 146,
Size- 12Mb,
Quality- good, without any watermark

Vindhaya Babu by Santosh Narain Nautial pdf

यह एक हास्य उपन्यास है।
उपन्यास की कहानी

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बात सन् तरेपन की है। उन दिनों मै लखनऊ में नियुक्त था। दोपहर में इडिया कॉफ़ी हाउस मे एक प्याला कॉफ़ी पीने का नियम-जैसा बन गया था। हम लोगों की अपनी एक टोली थी और बैठने का स्थान निश्चित था। एक दिन एक सदस्य ने दूध की आलोचना की तो एक अन्य सदस्य बोले-
“अरे मियां, पी जामो चुपचाप । अच्छा दूध तो अब आँख मे डालने को भी नहीं मिलता।”
तीसरे सदस्य ने कहा कि अच्छा दूध तो तभी मिल सकता है जब अपने आप गाय या भैस पाली जाय । दूसरे सदस्य ने कहा कि गाय खरीदने से ही अच्छा दूध मिल जायगा, यह निश्चयपूर्वक नही कहा जा सकता। अच्छा दूध तो जब बछिया को पाल-पोसकर गाय किया जाय और उसे प्रारम्भ ही से उचित भोजन दिया जाय।
कॉफ़ी हाउस की बात तो आई-गई हो गई किन्तु यह बात मेरे मस्तिष्क में लगभग एक वर्ष तक घूमती रही और तब सन् चव्वन में श्री विन्ध्य बिहारी लाल उर्फ विन्ध्या बाबू, रिटायर्ड ऑफिस सुपरिटेण्डेण्ट’ का जन्म हुआ। जन्म के समय उनकी आयु लगभग साठ वर्ष थी।
विन्ध्या बाबू को लेकर मैने सबसे पहली कहानी ‘विटामिन-युक्त दूध’ लिखी जो ‘सरिता’ मे सन् चव्वन में छपी। तब से लेकर आज तक विन्ध्या बाबू की लगभग एक दर्जन कहानियां छप चुकी है। विन्ध्या बाबू जब कहानियों के नायक बन चुके तो उन्होंने उपन्यास का नायक बनना चाहा और वे अपनी इस भूमिका मे आपके सामने है। उपन्यास लिखने में कहानियों में प्रकाशित सामग्री का भी उपयोग किया गया है।

यों तो यह उपन्यास हास्य रस का है-कम से कम मुझे यही आशा हैकिन्तु इसमें जो समस्या अन्तजल की भॉति प्रवाहित होती रहती है वह हँसी में टालने योग्य अथवा टलने वाली नहीं है। वह समस्या है अवकाश-प्राप्त बूढ़ों की। अवकाश-प्राप्त से मेरा तात्पर्य केवल उन्ही बूढों से नही है जो एक निश्चित आयु के पश्चात् नौकरी अथवा व्यापार से अलग हो गये है बल्कि उन सब वृद्धोंजिनमें वृद्धाएँ भी सम्मिलित है-से है जिनके सामने काम कोई नही है किन्तु समय बहुत है।
बूढे व्यक्तियों की समस्या आज पूरे विश्व की समस्या बनी हुई है किन्तु पाश्चात्य देशों मे जहाँ परिवार की परिभाषा तथा प्राकार भिन्न है तथा पारिवारिक बन्धन उतने दृढ नही है, जितने कि पूर्व में, यह समस्या अत्यन्त उग्र रूप धारण किये हुए है इसीलिए वहाँ की सरकारे इस पर पूरी जागरूकता से ध्यान दे रही है और इसका समाधान ढूंढ रही है, फिर भी समस्या उग्रतर होती जा रही है। वहाँ बुढ़ापे की पेंशन है, वृद्धावास है, अनेक सार्वजनिक संस्थाएँ है जो वृद्धों की देख-रेख, चिकित्सा आदि करती हैं, फिर भी आए दिन समाचार-पत्रों में पढ़ा जाता है कि कोई अकेला बूढ़ा या वुढ़िया पन्द्रह-पन्द्रह दिन तक अपने कमरे में मरा पड़ा रहा या मरी पडी रही किन्तु लोगों को तब पता चला जब दुर्गन्ध आने लगी।
हाल ही मे कोपनहेगन में वृद्धावस्था की समस्याओं का अध्ययन करने वाले अन्तराष्ट्रिीय संघ की बैठक में इस समस्या पर विचार किया गया। पता चला कि ब्रिटेन मे पैसठ वर्ष से अधिक आयु वाले बीस प्रतिशत पुरुषों तथा तेंतीस प्रतिशत स्त्रियो को एकाकीपन का कष्ट है और ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती जाती है, एकाकीपन की भावना भी बढती जाती है।…

इस लेखक की अन्य रचनाएँ-
उपन्यास:
तीस दिन
हरिजन
कहानी:
चवन्नी वाले
तराजू और बट्टे
सॉझ हुई पंछी घर आ
रेडियो रूपक:
बेटी गाँव की
पंचायत का न्याय
नाटक:
चाय-पार्टियाँ (पुरस्कृत)
ज्ञान-विज्ञान:
चन्दामामा का देश (पुरस्कृत)
तुम्हारे पास-पास की दुनिया (दो भाग)

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