शरत रचनाबली (Sharat Rachanabali) भाग- ३ Hindi ebook pdf

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शरत रचनाबली (Sharat Rachanabali) भाग- ३ Hindi ebook pdf file
e-book novel- शरत रचनाबली (Sharat Rachanabali) भाग- ३
Author- Sharat Chandra Chattopadhyay (शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय)
संपादक- डॉ. सुशील त्रिवेदी
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 233
Quality- nice, without any watermark

शरत रचनाबली (Sharat Rachanabali)

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श्री शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय (सन् 1876-1936) बांग्ला भाषा के एक बड़े साहित्यकार थे, जिनका साहित्य भाषा की सभी सीमाएँ लांघकर अखिल भारतीय हो गया है। उन्हें अपने जीवन काल में जितनी प्रतिष्ठा और ख्याति बंगाल में मिली उतनी ही लोकप्रियता हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के क्षेत्रों में मिलनी प्रारम्भ हो गई थी। उनके निधन के पश्चात् आज 60 वर्ष बीतने पर भी उनकी रचनाओं के अनुवाद सभी प्रतिष्ठित भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है तथा विश्व की अन्य प्रमुख भाषाओं में हो रहे हैं।
शरतचन्द्र का जन्म बंगाल के हुगली जिले के एक छोटे से गांव देवानन्दपुर में 15 सितम्बर सन् 1876 में हुआ। इनके पिता श्री मोती लाल साहित्यानुरागी तो थे लेकिन साहित्यानुशीलन से बढ़कर कल्पनाशील थे। शरत् को अपने पिता से मिली यह विरासत उनके साहित्य में पूरी तरह से फलीभूत हुई । शरत् का निजी जीवन एक घुमक्कड़ का लापरवाह जीवन था। इसी कारण शरत्-साहित्य में उनके निजी जीवन की अद्भुत झलकियां मिलती हैं।
शरत् को बाल्यकाल और किशोरावस्था का समय सुखी नहीं था। जिसके कारण उनकी दृष्टि और चितन जीवन को यथतिः से अनुभव करने में सक्षम हुआ। उनकी रचनाओं के पात्र पिछले 100 वर्षों के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिवर्तनों के होते हुए आज भी जीवित से लगते हैं। इस नाते शरत् वस्तुतः प्रथम कोटि के कथाकार थे।
शरत् गांव की मिट्टी से जुड़े कथाकार थे, यही कारण है कि उनके अधिकांश उपन्यासों और कहानियों में गांव-समाज की घटनाएँ चित्रित हैं। उनके साहित्य में वे संवेदना भरपूर है जो पाठक को रस से अभिभूत कर देती है। समाज की निर्मम क्रूरता, विद्रूपता, रूढ़िवादिता को झेलने का उनका निजी अनुभव ही उनके साहित्य में यथार्थता से व्यक्त हुआ है। उनके द्वारा विभिन्न चरित्रों का चरित्रांकन तथा मन को छू लेने वाली कथाओं का गठन उनकी यशस्वी प्रतिभा का परिचय है। जीवन में शरत् ने जो कुछ देखा था, सुना था, अनुभव किया था, उसे ही उन्होंने अपने साहित्य में चित्रित किया है।
शरत ने अपने साहित्य में तत्कालीन सामाजिक मूल्यों के आगे प्रश्न चिन्ह लगाये। सदाचार के प्रचलित मानदंडों, विधिविधान तथा अन्य विसंगतियों पर उन्होंने परपूर चोट की । शरत् के पुरुष पात्रों से बढ़कर उनकी नायिकाएं ह्रदय पर प्रभाव डालने वाली हैं, उनके साहित्य में उपेक्षित नारीत्व के प्रति विशेष सहानुभूति है। शरत् मूलतः नारी-संवेदना के लेखक थे । दलित, अपमानित, पतित भारतीय नारी के साथ शरत् ने व्यवहारिक हमदर्दी का परिचय दिया है जो कि भारतीय साहित्य की अमर वस्तु है।
शरत् प्रसिद्धि से सदा विमुख रहे। अपने लेखन के लिए उन्होंने प्रकाशन का आग्रह कभी नहीं कया। जीवन काल में वह अपनी संभावित ख्याति से कतराते हे । यह उन के वैरागी मन की अंतर्मुखी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। बड़ी दीदी (107) जब धारावाहिक प्रकाशित हुई तो लेखक का नाम नहीं छपा था। परंतु गठे कथानक सुन्दर परिपाटी और मनोत्र भाषा के कारण लोग हैरान हो गये कि यह लेखक कौन है ?
शरत् के साहित्य की एक विशेषता है कि लेखक सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक समस्याओं के कथानक का ताना-बाना बुनते हुए भी अपनी रोमानी प्रकृति की छाप अवश्य छोड़ता रहता है, ताकि कथारस की मर्यादा निभती रहे । उनके साहित्य की अन्य प्रभावी विशेषता है कथोपकथन का ढंग, सधड वर्णन-शैली, मंझी भाषा तथा रचना की सौष्ठवता।
शरत् अपनी सभी रचनाओं में सामाजिक तथा अन्य समस्याओं वस्तुस्थिति के अनुरुप प्रस्तुत करते हैं लेकिन कई पुष्ठ समाधान पेश नहीं करते। वह मानवीय संवेदनाओं के प्रति जागरूक होते हुए भी एक प्रचारक के समान नहीं थे, वह केवल सुधारवादी थे। यह होते हुए भी उनकी सभी रचनाओं में एक्रसता का नाम नहीं, यही बात उनको सर्वश्रेष्ठ कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित करती है।
शरत् की प्रारंभिक रचनाओं में बंकिम का प्रभाव साफ दिखाई देता है। देवदास (1901) लिखित तथा 1917 में प्रकाशित) परिणीता, बिराजबहू (1914) तथा देहाती समाज (1916) इसके उदाहरण हैं। इसी प्रकार टैगोर का प्रभाव भी कुछ कहानियों और उप-मसों में लक्षित किया जा सकता है।
शरत् का सर्वोत्तम रूप वहां व्यक्त होता है जब वह निजी अनुभव से कथाओं का अवतरण करते हैं। ऐसी कृतियों में महत्वपूर्ण हैं—श्रीकांत (चार भाग : सन् 1917, 1918, 1927 तथा 1933) चरित्रहीन (1917) बिराज बहू, देवदास तथा देहाती समाज (उपन्यास) तथा मंदिर नामक कहानी (1904)। यह सभी रचनाएं शरत् के पहले दौर की है जब उन्हें एक सशक्त लेखक के रूप में मान्यता मिली थी।
शरत् नियमित रूप में सन् 1913 में सामने आये जब उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचनाएं प्रकाशित हुई। उन दिनों वह बर्मा में किरानी की नौकरी कर रहे थे तथा उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं चल रहा था। इन रचनाओं की सफलता से वह बांग्ला साहित्य के सबसे
ते साहित्यकार बने जिन्होंने केवल अपने लेखन के बल पर स्वालम्बन पाया और पश्चात् कोठी और कार के मालिक बने । वह नौकरी छोड़ भारत लौट आए और कलकता के एक उपनगर में लेखन को व्यवसाय के रूप में अपनाकर बस गए। उनकी तात्कालिक प्रसिद्धि और बढ़ती लोकप्रियता का हमारे साहित्यिक इतिहास में जोड़ नहीं मिलता। सामान्य पाठक ने उनकी कृतियों को ललक और उत्साह से अपनाया।
‘चरित्रहीन’ की रचना के साथ उन्हें जहाँ एक ओर भरपूर बदनामी मिली वहीं दूसरी ओर वह राष्ट्रीय महत्व के लेखकों में गिने जाने लगे। तभी वह श्रेष्ठ उपन्यासकार के नाते भी प्रतिष्ठित हुए।
शरत् की रचना का दूसरा दौर एक सजग प्रयास के समान प्रारंभ हुआ। उनकी प्रतिभा उच्च कोटि की थी साथ ही लेखन शक्ति भी लाजवाब थी। वह एक साथ कई पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं धारावाहिक चलाते थे। इस प्रकार एक के बाद एक उनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगीं। बड़ी दीदी के प्रकाशन के छ: वर्ष पश्चात पंडित मशाई’, ‘वैकुठेर विल’, मेज दिदि दर्पचूर्ण, पल्ली-समाज, श्रीमंत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, गृहदाह, वनविधान, हरिलक्षमी, एकादशी वैरागी, विलासी, अभागीर स्वर्ग, अनुराधा, सती ओ परेश, शेष प्रश्न प्रकाशित हुए।
अन्य रचनाओं में विराज बहू, विन्दुर छेले, कशीनाथ, अनुपमार प्रेम, करेल घाम, चन्द्र नाथ, देवदास, हरिचरण, बाल्यस्मृति भी यथाबत प्रकाशित हुई।
एक चिंतक के नाते भी उनका नाम चमक। सभी प्रकार के साहित्यक सामाजिक तथा सामयिक लेख भी वह लिखते थे परंतु सबसे अधिक यश तथा नाम उन्हें ‘नारीर मूल्य’ नामक लेख से मिला।
शुभदा उनका आरम्भिक काल का उपन्यास है लेकिन उपन्यास में जिन लोगों का । वर्णन था वे तब जीवित थे, इसलिए शरत् ने इस उपन्यास को अपने जीवित रहते प्रकाशित नहीं होने दिया। यह उपन्यास उनकी मृत्यु के पश्चात छपा । उनका अंतिम उपन्यास जागरण जो कि अपूर्ण है।
भी दीदी उपन्यास के पश्चात रामे सुमति (राम बने सुमति) का प्रमोशन के साथ शरत् का नाम नीकर के नाते भी चमका । जब यह कहानी पत्रिका में छपी तो समकालीन याति नामा स्थापित साहित्यकार भी चमत्कृत हो उठे। पथ निर्देश, महेश, सती आदि इनकी अन्य प्रसिद्ध कहानियां हैं। शरत् की सभी कहानियां सुदीर्घ प्रौढ साधना का फल हैं। महेश विश्व की श्रेष्ठतम कहानियों में से एक है।
शरत् ने अपने तीन उपन्यासों का नाट्य रूपांतर स्वयं किया था। इन में ‘रमा’ का मचंन तो पहले हुआ तथा सफल रहा। वह बाह्मण की बेटी का नाट्य रूपांतर करना चाहते थे लेकिन पूर्ण नहीं कर सके।
शरत् के सभी उपन्यासों तथा कलानियों पर सफल फिल्में भी बनी हैं, जो मुखयतः बांग्ला भाषा में हैं। हिन्दी में भी उनके उपन्यासों पर सफल फिल्में बनी हैं। उनके उपन्यासों पर आधारित दूरदर्शन सीरियल भी बने जिनमें चरित्रहीन पूरा तथा श्रीकांत अपूर्ण है। अब भी उनकी कहानी पर आधारित बांग्ला भाषा में फिल्म तैयार हो रही है। अतः सभी माधयमों द्वारा शरत् के साहित्यकार क यश फैला है। शरत् रचनाबली में उनके सभी उपन्यास, नाटक और कहानियाँ प्रकाशित हो रही हैं। मूल बांग्ला में पुस्तक रूप में प्रकाशन वर्ष के अनुसार उनका क्रम रखा है। केवल कहानियों में इस क्रम का पालन नहीं हो सका। प्रत्येक उपन्यास के प्रारंभ में पुस्तक का मूल बांग्ला नाम तथा प्रकाशन वर्ष दिया जा रहा है ताकि पाठक रचनाकाल की सामयिक परिस्थितियों के अनुसार रसस्वादन करें। – डॉ. सुशील त्रिवेदी

इस पुस्तक में तीन उपन्यास हैं, य़े हैं-
देवदास
छुटकारा
चरित्रहीन
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