Aag Ka Daria (आग का दरिया) by Qurratulain Haider Hindi Book pdf
e-book novel- Aag Ka Daria (आग का दरिया)
Author- Qurratulain Haider
Translated by- Nand Kishor Bikram
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 508
Size- 24mb
Quality- good, without any watermark
उपमहाद्वीप का वैटवारा एक ऐसी त्रासदी थी जिसके कारण एक करोड़ से अधिक आबादी को अपना घर-बार छोड़कर हिज़त (प्रवास) के कष्ट और पीड़ाएँ सहने पर विवश होना पड़ा और हज़ारों मासूम और निर्दोप व्यक्तियों को धार्मिक पक्षपात का शिकार होकर ज़िंदगी से हाथ के निर्मम हाथों से लुट जाने का सदमा बर्टाश्त करना पड़ा। इन शोकजनक और लज्जाजनक घटनाओं से महाद्वीप के अन्य वासियों के साथ-साथ लेखक भी बुरी तरह से प्रभावित हुए और उन्होंने इन रक्तरंजित घटनाओं को अपनी-अपनी भाषा में कहानी और उपन्यास की सूरत में ने “बूँद और समुद्र, यशपाल ने ‘झूठा सच’, भीष्म साहनी ने ‘तमस, द्रोणवीर कोहली ने ‘वाह कैंप, हरदर्शन सहगल ने “टूटी हुई ज़मीन’, कमलेश्वर ने ‘लूटे हुए मुसाफिर, राही मासूम रज़ा ने ‘आधा गाँव” जैसे उपन्यासों की रचना की तो पंजावी में करतार सिंह दुग्गल ने ‘आंद्रां, ‘नृह ते मास’ और ‘चोली दामन’, अमृता प्रीतम ने ‘डाक्टर देव’, ‘आल्हना’ और ‘पिजर, सुरेन्द्र सिंह जरूला ने ‘दीन ते दुनिया और दिल दरिया, नरेंद्र पाल सिंह ने ‘अमन टे राह ‘जदों स्वेर होई और बंगला में प्रबोध कुमार सान्याल ने ‘आशो बानो’, प्रतिमा बसु ने ‘आलो अंग्रेजी में चमन लाल ने ‘आजादी’, गुरुचरन दास ने “ए फ़ाईन फैमिली’ इत्यादि प्रस्तुत किए। इसी तरह उर्दू में अब्दुल्ता हुसैन का ‘उदास नसलें, शौकत सिद्दीकी का ‘खुदा की बस्ती, खटीजा मस्तूर का ‘आँगन और जमीला हाशमी का “तलाश-ए-बहारॉ का भी यही विषय था। इनके अतिरिक्त सिंधी और अन्य भाषाओं में भी इन हृदयभेदी घटनाओं को प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई लेकिन जो प्रसिद्धि और लोकप्रियता कुर्रतुलऐन हैदर के उर्दू उपन्यास ‘आग का दरिया’ को मिली वह किसी अन्य साहित्यिक कृति को शायट नसीव नहीं हुई। इस उपन्यास में लगभग दाई हजार वर्ष के लम्बे समय की पृष्ठ-भूमि को उपन्यास के विस्तृत कैनवस पर फैलाकर उपमहाद्वीप की हजारों वर्ष की सभ्यता-संस्कृति, इतिहास, दर्शन और रीति-रिवाज के विभिन्न रंगों से एक ऐसी तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत की गई जो हमारी चेतना और अंतरात्मा को झंझोड़ कर रख देती है।
‘आग का टरिया’ की कहानी बौद्धमत के उत्यान और ब्राह्मणमत के पतन से शुरू होती है और यह तीन काल में बँटी हुई है मगर इसके कुछ चरित्र गौतम, चम्पा, हरिशंकर और निर्मला तीनों कालों में मौजूद हैं और वही इन तीनों कालों में संपर्क और क्रमबद्धता स्थापित करने के माध्यम हैं वरन् तीनों काल एक अलग-अलग फानी हैं जो बौद्धमत और ब्राह्मण मत के टकराव से शुरू होकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के टकराव तक पहुँचते हैं और अंततः बँटवारे जैसी त्रासदी पर समाप्त होते हैं। मगर लेखिका ने इस महान त्रासदी को यों प्रस्तुत किया है कि ये किसी व्यक्ति, राष्ट्र या देश की त्रासदी बनने की बजाय एक मानव-त्रासदी का रूप धारण कर लेती है। गौतम बुद्ध के जन्म से ब.. जयंती तक के दीर्घ काल तक फैले इस उपन्यास में उपमहाद्वीप के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन को बड़ी सुंदर और रोचक शैली में प्रस्तुत किया गया है।
आरंभिक काल में हम गौतम नीलाम्बर और उसके अतीत के भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक काल और विचारधारा से परिचित होते हैं। गौतम एक चिंतक और प्रतिभाशाली कलाकार ही नहीं बल्कि एक मानव प्रेमी भी है। और उसका मित्र हरिशंकर अपनी यथार्थवादी प्रकृति का मालिक युवा है। तीसरा चरित्र चम्पा का है जो गौतम की तरह हर युग में मौजूद है। संभवतः यह एक प्रतीकात्मक नारी है जो हर युग में मौजूट है। पहले काल में वह चम्पक, दूसरे में चम्पा फिर थम्पा बाई और अतिम युग में चम्पा अहमद की सूरत में हमारे सामने प्रकट होती है। और यह बहुत सशक्त और ज़ोरदार चरित्र हे जो हमें असाधारण रूप से प्रभावित करता है। चम्पा में इतनी शक्ति और वल है कि कष्टों और विपत्तियो की प्रचंडता से टूटने और विखरने की बजाय वह हर स्थिति में अपने अस्तित्व को जीवित और संपूर्ण रखने का प्रयत्न करती है और प्रतिकूल हालात का मुकावला वड़े साहस और हिम्मत से करती है, जिसका मुकावना करने की हिम्मत न जुटा पाने पर कमाल रज़ा जैसा राष्ट्रवादी युवक निराशा और मायूसी में न चाहते हुए भी अंतत: हिज़त करके पाकिस्तान में शरण ढूंढ़ता है। जवकेि चम्पा अपने देश में ही रहने का निश्चय करती है और पाकिस्तान जाने से इंकार कर देती हैं हालाँकि वह लटन की पढ़ी-लिखी लड़की है और उसे यहाँ आच्छी से अच्छी नौकरी मिल सकती है । जैसा कि उसने पाकिस्तान प्रवारा करने वाले कमाल रज़ा को वताया था–
“मैं आखिरकार बनारस वापस जा रही हूँ। मैंने एक बार लंदन में गौतम से कहा था-‘‘मैं वापस जाना चाहती हूँ। कोई साथ ले जाने वाला नहीं मिलता। अब मैंने देखा कि किसी दूसरे का सहारा ढूँढना किस कदर ज़बरदस्त हिमाकत थी ! मैं खुद ही बनारस लौटती हूँ। जानते हो, मेरे पुरखों के शहर का नाम क्या है।” “शिवपुरी।” “हाँ-आनन्द नगर। वह भी एक न एक दिन सचमुच आनन्द नगर बनेगा, देश के सारे नगरों की तरह। इस देश को दु:ख का गढ़ या आनन्द का घर बनाना मेरे हाथ में है। मुझे दूसरों से क्या मतलब?” उसने अपने हाथ खोल कर गौर से उन्हें देखा-“डांसर के हाय-लेखक या कलाकार के हाय-नहीं-ये सिर्फ एक साधारण, औसत दरजे की समझदार लड़की के हाथ हैं, जो अब काम करना चाहती है।” वह खामोश हो गई। कुछ देर बाद मस्जिद से जोहर (तीसरा पहर) की अज़ान की आवाज़ ऊँची हुई। चम्पा ने अनजाने तौर पर दुपट्टे से सिर ढंक लिया। “कमाल !” कुछ देर बाद उसने कहा, ‘मुसलमानों को यहाँ से नहीं जाना चाहिए। तुम क्यों नहीं देखते कि यह तुम्हारा अपना वतन है।” उसने विवशता से उँगलियाँ मरोड़ीं। “और तुम क्यों चले गए? मैं तुम्हारे यहाँ आ जाऊँ तो क्या मुझे एक से एक बढ़िया ओहदा न मिल जाएगा? देखो मैं पेरिस और केम्ब्रिज और लंदन से कितनी डिग्रियाँ लाई हूँ।” चम्पा का हिन्दुस्तान में रहने का निर्णय एक बहुत ही सराहनीय कदम है जो उसकी दृढ़ता और साहस का प्रदर्शन करता है। हालाँकि वह जानती है कि उसे यहाँ वहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। जसाकि उसने प्रोफेसर वैनर्जी से वातलिाप के दौरान कहा था‘जब मैं बनारस में पढ़ती थी तो मैंने कभी दो कौमों के सिद्धांत पर गौर न किया। काशी की गलियाँ, शिवालय और घाट मेरे भी इतने ही थे जितने मेरी दोस्त लीला मार्गव के। फिर बह क्या हुआ कि जब मैं बड़ी हुई तो मुझे पता लगा कि…नद किशोर विक्रम
Hindi Book pdf Aag Ka Daria (आग का दरिया)
very nice books