Assi Kahaniya (अस्सी कहानियाँ) by Vinodshankar Vyas । Hindi ebook pdf

Advertisement

Assi Kahaniya (अस्सी कहानियाँ) by Vinodshankar Vyas, Hindi ebook pdf
Author- विनोदशंकर व्यास
Book Type- Hindi story collection (व्यासजी की समस्त कहानियाँ)
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 417
Size- 23mb
Quality- best, without any watermark

Assi Kahaniya (अस्सी कहानियाँ) by Vinodshankar Vyas pdf

प्रस्तावना
सृष्टि के प्रारंभ से मनुष्य स्वप्न देखता आ रहा है। वह कल्पना और स्वप्न चित्रों के आधार पर कुछ रेखाएँ अंकित करता है। अपने उद्योग और परिश्रम से वह उसे पूरा करने का प्रयत्न करता है। वह अपनी लगन में दृढ़ रहता है। सफलता में प्रसन्नता और असफलता में दुख का प्रादुर्भाव हुआ है। इस हर्ष और शोक में उसके हृदय की वीणा बज उठती है और वह कुछ गुनगुनाने लगता है। इस तरह संगीत की उत्पत्ति हुई। संगीत की ध्वनि के साथ भाव शब्दों का रूप धारण कर प्रकट हुश्रा ।

Advertisement

संसार में मनुष्य उत्पत्ति के साथ ही वाणी के साथ पद्य की प्रधानता हुई। पद्य कंठस्थ करने में अधिक सहायक हये, इसलिए संसार की सभी जातियों ने सर्वप्रथम पद्य को ही अपनाया। वैदिक साहित्य में ऋचायें प्रारंभ में थीं। पाश्चात्य देशों के इतिहास में होमर और उसके पहले के महापुरुषों ने भी पद्य को ही प्रचलित किया।

इस पद्य के साथ ध्वनि का मेल शरीर और आत्मा की भाँति था। स्वनि प्रेरणा देती और शब्द भाव व्यक्त करते । इस तरह गीत काव्य बढ़े प्रभावशाली प्रमाणित हुये हैं और प्रारंभ से लेकर आज तक उनकी परंपरा सुरचित है।
भावनात्मक छोटी कहानियाँ उसी गीत काव्य की एक शाखा है। इसका गय छंदोबद्ध न होकर अलग एक धारा में बहता है। उसमें संगीत का ताल और लय भले ही न हो; किंतु उसकी ध्वनि बढ़े वेग से बहती रहती है।

गायक की स्वर लहरियों की भांति इसके प्रभाव भी बहुत ही प्रबल होते हैं। लेखक ठीक गायक की भाँति अनुभव करता है। उसकी श्रात्मा अपनी आकांक्षाओं को पूर्ण देख कर प्रसन्नता और निराशा के प्रति दुख प्रकट करती है। यह सुख दुख सदैव उद्गार के रूप में उसके मस्तिष्क में छाये रहते हैं। प्रकृति के विलक्षण दृश्यों में तन्मय होकर वह अपने को भूल जाता है। उसकी श्रावश्यकता और अभाव अपनी अस्पष्ट आकृति बनाकर उसके सम्मुख खड़े हो जाते हैं। विदग्ध हृदय के श्राघात-प्रतिघात ही एक टीस उत्पन्न करते हैं। वही टीस इन भावनात्मक कहानियों की जननी है। लेखक अपनी भावना, रुदन, क्रंदन और प्रसन्नता द्वारा उन स्वप्न चित्रों को अंकित करता है।

पाठक ऐसी भावनात्मक कहानियाँ पढ़ते समय उसके पात्र पात्रियों के चरित्र और घटनाओं के संबंध में और कुछ जानना चाहते हैं। उसका विस्तृत वर्णन चाहते हैं, किंतु वह भूल जाते हैं कि ऐसी कहानियाँ केवल स्वप्न चित्रों की भाँति होती हैं। विशेष रंगामेजी उनके सौंदर्य को विकृत कर देती है।

भावनात्मक कहानियाँ कोई सीख कर नहीं लिख सकता है। यह देवी शक्ति अपने भाप लेखक में उत्पन्न होती है। उसकी रचना में चमत्कार और प्रेरणा जो झलकती है, वही उसकी अपनी मौलिकता होती है।

चेखाब अपनी एक कहानी के अंत में पूछता है-क्या यह गुस्सा मनुष्य से है। दरिद्रता से है अथवा वसंत की रात से है ?

यहीं कहानी समाप्त हो जाती है। इसके आगे लेखक एक शब्द भी. लिखना पसंद नहीं करता । यही कहानी की विशेषता है।

महाकवि रविंद्रनाथ की अधिकांश कहानियाँ इसी कोटि की हैं। हिंदी में प्रसादजी तो इस कला के प्राचार्य थे। उनकी कहानियों का अंत बड़ा मार्मिक हुआ है।

भावनात्मक कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता उनके प्रारंभ और अंत में ही होती है।

हिंदी में जो कुछ है उसकी श्रादर करने की ही जय प्रवृत्ति नहीं है तो आगे कुछ हो कर ही क्या होगा? यही भावना सदैव कलाकार के चारों ओर मॅडराया करती है।

मेरा प्रथम कहानी संग्रह नवपल्लव, फिर लिका, भूली बात इसके बाद धूपदीप, इन सभी संग्रहों की कहानियाँ संमिलित कर ‘विनोदशंकर ध्यास की कहानियाँ’ का संग्रह प्रकाशित हुआ था। इसका पहला संस्करण एक्कीस सौ प्रतियों का हुआ था। इसके पश्चात् उसकी कहानी और मणिदीप छपी। अंत में सभी कहानियों को एकत्र करने पर पचास कहानियाँ हुई जिसका लीडर प्रेस से दो संस्करण समाप्त हुआ। इस तरह उन कहानियों का काफी प्रचार हुआ था।

‘पचास कहानियाँ’ के बाद मेरा एक कहानी संग्रह नक्षत्रलोक निकला । उसके पश्चात् १९५६ तक मैंने १२ कहानियाँ और लिखीं मेरी इन नवीन कहानियों की अलग कोई पुस्तक नहीं प्रकाशित हुई।

अंत में अपनी सभी कहानियों के साथ अपनी १२ नवीन कहानियाँ -संमिलित कर अस्सी कहानियाँ सब मिला कर हुई। अब तक लिखी मेरी सभी कहानियों का यह संग्रह पूर्ण हुआ है।

काशी नागरी प्रचारणी सभा से प्रथम बार कथा साहित्य की मेरी ‘अस्सी कहानियाँ प्रकाशित हो रही है। इसका श्रेय डाक्टर जगन्नाथ शर्मा, चि. सुधाकर पांडेय एवं श्री मुरारीलाल केडिया को है। समय पर मुद्रित करने की सफलता श्री महताबराय को है।

मेरे ५८ वें जन्म दिवस के अवसर पर इसे प्रकाशित देख कर मुझे भी संतोष है।- विनोदशंकर व्यास

प्रिय पाठकों!, व्यासजी की समस्त कहानियाँ संग्रह हिंदी बुक को इकट्ठा करें और पढ़ने का आनंद लें।
Collect the pdf or Read online
इस पुस्तक के मूल स्त्रोत के बारे में जान सकते हैं, यहां से
दिए गए लिंक से ‘Assi Kahaniya (अस्सी कहानियाँ)’ हिंदी पुस्तक को पीडीएफ फ़ाइल संग्रह कर सकते हैं या ऑनलाइन पढ़ें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *