Chand Bola (चाँद बोला) । Hindi ebook pdf

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Chand Bola (चाँद बोला) । Hindi ebook pdf
Edited by- Srikrishna Das
Writer- Dwijendranath Mistra (श्री द्विजेन्द्रनाथ मिश्र)
Book Type- मौलिक क्रान्तिकारी उपन्यास
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 92
Size- 4mb
Quality- best, without any watermark

Chand Bola (चाँद बोला) pdf

उपन्यार के सम्बन्ध में श्री द्विजेन्द्रनाथ मिश्र (निर्गुण) हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठ एवं लोकप्रिय कथाकार हैं। घरेलू कहानियों की रचना में वह बिल्कुल बेजोड़ हैं । कहानी कहने की कला उनकी निजी विशेषता है । वह कुछ इस प्रकार घटनाओं का ताना-बारा बुनते हैं और उनके पात्रों का कार्यव्यापार कुछ इस प्रकार होता है कि सर्वत्र सदैव एक सहज स्वाभाविकता का दातावरण बना रहता है। न तो पात्र ही अपरिचित होते हैं, न घटनायें ही अप्रत्याशित होती हैं। शैली की स्वाभाविकता
और रचना कौशल के कारण सब कुछ परिचित, घनिष्ट, स्वानुभूति परक मालूम पड़ता है । भोली-भाली महादेवी, क्रान्तिकारी गिरीश के व्यक्तित्व से अभिभूत होकर मंत्रमुग्ध सी उसके पीछे-पीछे चलने लगती है । गिरीश, जो कि चट्टान की तरह अटल और अडिग है, इस मासूम, बेजबान लड़की से इतना भर कह पाता है-“महादेवी, जिस राह पर तुम्हें खींच रहा हूँ यह राह बीहड़ जरूर है। इस राह में सुख नहीं है, आराम नहीं है, पर यह शुद्ध मानवता का पथ अश्वय है। अपना यह देश, अपने देश की यह पवित्र मिट्टी और ये तुम्हारे चारों ओर सूखे करुण मुख लिये अपलक ताकते खड़े, बेसहारे, ये सब तुम्हारे भाई-बन्धु-इन्हीं के लिए जिन्दा रहो महादेवी. कि तुम नरक की जिन्दगी पसन्द करोगी? बल न हो. कुछ त्याग न कर सको तो मत आओ मेरे साथ, लेकिन अच्छी तरह समझ लो कि तुम अमीरों का यह ऐश गरीबों की नंगी लाश पर होता है, उनकी छातियों का रक्त निचोड़ कर पलता है। तो तुम यही पसन्द करोगी? पर मैंने तो तुम्हें उसी दिन पहिचान लिया था और मैं अच्छी तरह जानता था कि तुम आज जरूर आमोगी। तुम ही तो इस मातृ-भूमि की लाज हो, तुम ही इस महान् भारत देश की बेटी हो, माँ-हो इस विशाल देश की । तुम्हीं साथ न दोगी तो हम सब कैसे आगे बढ़ने ‘पायेंगे, कैसे हमारा लक्ष्य पूरा होगा, साथ दोगी न महादेवी ?”
और, महादेवी ने चुपके से कह दिया था-“दूंगी।”
महादेवी ने साथ दिया और इन दोनों के जीवन में वे सारी घटनायें घटी जो कि गुलाम देश के उन बेटे-बेटियों के जीवन में घट सकती थीं जिन्होंने बलिदान का अग्निपथ अपने लिए चुन लिया था।
और अन्त में, कहानी के बिल्कुल अन्त में, जब नये, स्नेहिल वातावरण में दोनों मिले तो चाँदनी के आवरण से झाँककर चाँद ने सत्य और शिव के इस सुन्दर जोड़े को देख लिया और बोल उठा-“महादेवी, तेरी कहानी मेरे लिए नयी नहीं है । तेरी ही तरह तेरी कितनी ही बहिनें वही कर चुकी हैं, जो कुछ तूने किया है । तेरी उन बहिनों ने भी अपना दुख कलेजे में दाब लेकर, माँ होकर, हजार- हजार सन्तानों की रक्षा की है । और, बदले में कुछ नहीं माँगा है, तेरी तरह ! बस,काल की इतिहास-भूमि पर लिखी उन कहानियों में एक कहानी और जुड़ रही है-एक नया पृष्ठ ।”
और अश्रु-स्वेद-रक्त से सनी दो क्रान्तिकारी एवं प्रेमविह्वल हृदयों की यह कहानी स्नेहिल पाठकों को इस आशा एवं विश्वास से अर्पित की जा रही है कि इसमें वे स्वयं अपने हृदय की धड़कन और प्राणों का स्पन्दन पायेंगे। -श्रीकृष्ण दास

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