Bhavan Bhaskar (भवन भास्कर) Hindi Vastu Shastra Book PDF

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Bhavan Bhaskar (भवन भास्कर) Hindi Vastu Shastra Book PDF
(वास्तुशास्त्रकी मुख्य बातें)
Author- राजेन्द्रकुमार धवन
Book Type- Vastu Shastra
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 80
Size- 6mb
Quality- best, without any watermark

Bhavan Bhaskar Hindi Vastu Shastra pdf

हिन्दू-संस्कृति बहुत विलक्षण है। इसके सभी सिद्धान्त पूर्णतः वैज्ञानिक हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य मनुष्यमात्रका कल्याण करना है। मनुष्यमात्रका सुगमतासे एवं शीघ्रतासे कल्याण कैसे हो इसका जितना गम्भीर विचार हिन्दू-संस्कृतिमें किया गया है, उतना अन्यत्र नहीं मिलता। जन्मसे लेकर मृत्युपर्यन्त मनुष्य जिन-जिन वस्तुओं एवं व्यक्तियोंके सम्पर्क में आता है और जो-जो क्रियाएँ करता है, उन सबको हमारे क्रान्तदर्शी ऋषिमुनियोंने बड़े वैज्ञानिक ढंगसे सुनियोजित, मर्यादित एवं सुसंस्कृत किया है और उन सबका पर्यवसान परम श्रेयकी प्राप्तिमें किया है। इतना ही नहीं, मनुष्य अपने निवासके लिये भवन-निर्माण करता है तो उसको भी वास्तुशास्त्रके द्वारा मर्यादित किया है! वास्तुशास्त्रका उद्देश्य भी मनुष्यको कल्याण-मार्गमें लगाना है’वास्तुशास्त्र प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया’ (विश्वकर्मप्रकाश)। शास्त्रकी मर्यादाके अनुसार चलनेसे अन्तःकरण शुद्ध होता है और शुद्ध अन्त:करणमें ही कल्याणकी इच्छा जाग्रत् होती है।….

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…..वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट तो दूर हो जाते हैं, पर प्रारब्धजनित कष्ट तो भोगने ही पड़ते हैं। जैसे- औषध लेनेसे कुपथ्यजन्य रोग तो मिट जाता है, पर प्रारब्धजन्य रोग नहीं मिटता। वह तो प्रारब्धका भोग पूरा होनेपर ही मिटता है। परन्तु इस बातका ज्ञान होना कठिन है कि कौनसा रोग कुपथ्यजन्य है और कौन-सा प्रारब्धजन्य? इसलिये हमारा कर्तव्य यही है कि रोग होनेपर हम उसकी चिकित्सा करें, उसको मिटानेका उपाय करें। इसी तरह कुवास्तुजनित दोषको दूर करना भी हमारा कर्तव्य है। 1. वास्तुविद्या बहुत प्राचीन विद्या है। विश्वके प्राचीनतम ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में भी इसका उल्लेख मिलता है। इस विद्याके अधिकांश ग्रन्थ लुप्त हो चुके हैं और जो मिलते हैं, उनमें भी परस्पर मतभेद है। वास्तुविद्याके गृह-वास्तु, प्रासाद-वास्तु, नगर-वास्तु, पुरवास्तु, दुर्ग-वास्तु आदि अनेक भेद हैं। प्रस्तुत ‘भवनभास्कर’ पुस्तकमें पुराणादि विभिन्न प्राचीन ग्रन्थोंमें विकीर्ण गृह-वास्तुविद्याकी सार-सार बातोंसे पाठकोंको अवगत करानेकी चेष्टा की गयी है। वास्तुविद्या बहुत विशाल है। प्रस्तुत पुस्तकमें वास्तुविद्याका बहुत संक्षिप्तरूपसे दिग्दर्शन कराया गया है। इसको लिखनेमें हमारे परमश्रद्धास्पद स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी ही सत्प्रेरणा रही है और उन्हींकी कृपाशक्तिसे यह कार्य सम्पन्न हो सका है। आशा है, जिज्ञासु पाठकगण इस पुस्तकसे लाभान्वित होंगे।- राजेन्द्रकुमार धवन

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