Punarjeevan (पुनर्जीवन) Hindi ebook pdf

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Punarjeevan (पुनर्जीवन) Hindi ebook pdf
Author- Leo Tolstoy
Translated by- Sheetala Sahay
Book Type- Translated book
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 499
Size- 14mb
Quality- best, without any watermark

Punarjeevan Hindi ebook pdf


पुनर्जीवन
मूल लेखक- महात्मा टाल्स्टाय
अनुवादक- शीतला सहाय

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पुस्तक के पाठ के कुछ नमूने-

यद्यपि लाखों आदमियोंने पृथ्वीके उस छोटे भागको जिसपर वे सघनतासे बसे हुए थे, कुरूप बना देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, जमीनपर जहाँ तहाँ पत्थरोंका ढेर लगा दिया था, पेड़ों को काटकर बनस्पतिका नामोनिशान मिटा दिया था, पशु-पक्षियों को भगा दिया था, कोयले और तेलके धुएँसे हवाको कलुपित कर डाला था-फिर भी वसन्त ऋतु वसन्त ऋतु ही थी, आस पासके क्षेत्रमें ही नहीं, शहर में भी ।
सूरज चमक रहा था और दुनियाको गर्मी पहुँचा रहा था । वायुमें मुगंधि थी, घास जहाँ-जहाँसे छोल नहीं डाली गयी थी, वहाँ-वहाँ फिरसे जग उठी थी और सभी जगह निकल आयी थी-पथरीले फर्शके बीच में भी और चौड़ी छायादार सड़क पतले रास्तेपर भी। बर्च, चम्पा और जंगली चेरी के पेड़ों की खशबदार और चमकीली पत्तियाँ लहरा रही थीं; नीबूकी कलियाँ फूटने के लिए फूली हुई थीं; कौवे, गौरैया और कबूतर वसन्तके आनन्दसे परिपूर्ण अपनी झोझें तैयार कर रहे थे; सूरजकी किरोसे गर्मी पाकर मक्खियाँ दीवारोंपर भिनभिना रही थीं। सभी आनन्दमें थे: पेड़-पल्लव, चिडियाँ, कीड़े-मकोड़े और बच्चे। लेकिन आदमी, प्रौढ़ स्त्री और पुरुष एक दूसरेको और अपने आपको धोखा देने और क्लेश पहुँचानेके काममें लगे हुए थे। वसन्त ऋतुके ऐसे प्रातः कालको मनुष्यने पवित्र और मननयोग्य नहीं समझा। उसने ऐसे अवसरपर ईश्वरीय संसारके सौन्दर्यपर विचार नहीं किया। उसने यह बात नहीं समझी कि यह संसार समस्त प्राणी मात्र आनन्दके लिए बनाया गया है और न उसने यह देखा कि इस सौन्दर्यसे हृदयमें शान्ति, मैत्रीभाव और प्रेम पैदा होता है। यह तो इस बातकी तरकीब सोचने में लगा था कि एक दूसरेको दासताकी बेड़ी में कैसे जकड़ा जाय ।….

प्रिय पाठकों!, टॉल्स्टॉय की अनुवादित पुस्तक को इकट्ठा करें और पढ़ने का आनंद लें।
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