Brahmacharya-Vigyan (ब्रह्मचर्य-विज्ञान) free ebook download pdf file
e-book name- Brahmacharya-Vigyan (ब्रह्मचर्य-विज्ञान)
Author- पं० जगन्नारायण देवशर्मा
Book Type- Hindi Religion
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 379
Size- 9mb
Quality- best, without any watermark
भूमिका-
ब्रह्मचर्य से लाभ और उसके न होने से हानि, प्रत्येक मनुष्य के अल्पाधिक अनुभव की बात है। इस विपय में पूर्ण अनुभव साधारणतः किसी को नहीं होता, क्योंकि जहाँ ब्रह्मचर्य की पूर्ण हानि होती है, वहाँ जीवन ही संभव नहीं है और जहाँ ब्रह्मचर्य को अखंड पालन होता हो, ऐसे ऊर्ध्वरेता महापुरुष के दर्शन दुर्लम हैं। परंतु जो थोड़ा सा अनुभव प्रत्येक मनुष्य को इस विषय में होता है, उससे वह इस सत्य को जान सकता है कि “मरण बिन्दु-पातेम, जीवनं विन्दु-धारणातू ”-चीये से ही जीवन है और उसके अभाब से मृत्यु । (यह वात वैयक्तिक जीवन में जितनी सत्य है, उतनी ही समाज के जीवन में भी, क्योंकि व्यक्तियों के समूह का ही नाम समाज है।)
केवल भौतिक मृत्यु ही नहीं, सव प्रकार की मृत्यु “बिन्दु पात” से ही होती है-विन्दुपात से बुद्धिभ्रंश होता है, धैर्य नष्ट हो जाता है, सब प्रकार के उद्योग करने की शक्ति आती रहती है। “विन्दु-पात” ही सब प्रकार की अवनति का मूल है और इसीसे यह समझ लेना चाहिये-“विन्दु-धारण” ही सब प्रकार की उन्नति का साधन है। “सिद्धे विन्दौ महायन्ते, किं न सिध्यति भूतले १” ब्रह्मचर्य का साधन अत्यंत कठिन है; विशेष कर ऐसे समाज में, जहाँ लोगों का नित्य का कार्यक्रम प्रहाचर्य-पालन के अनुकूल नहीं है। पर यह कठिन साधने जो साध सकता है, संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो उसे सिद्ध न हो।
हमारे समाज के सामने इस समय अनेक ऐसी कठिनाइयाँ उपस्थित हैं, जिन्हें हल करना मनुष्य को बुद्धि और शक्ति के बाहर का काम हो रहा है। कहते हैं, हिन्दू-जाति के सामने जीवनमंरण का प्रश्न उपस्थित है । पर जीवन या मरण का निर्णायक ब्रह्मचर्य है। मरणासन्न समाज के लिये ब्रह्मचर्य ही संजीवनी विद्या है ! इसको आवश्यकता और उपयोगिता के सन्बन्ध में दो मत हो ही नहीं सकते। बहुत से प्रश्न जो हल नहीं, हो रहे हैं, वे समाज में ब्रह्मचर्य धारण करने वालों की संख्या के बढ़ने से आप ही हल हो जायेंगे । शारीरिक तथा वौद्धिक बल का यही आधार है।
हम लोग इस विद्या को भूल गये हैं। इसलिये इसकी ओर ध्यान दिलाने के सच प्रयत्नों का होना नितान्त आवश्यक है । पं० जगन्नारायण देवशर्माजी की इस पुस्तक का इसीलिये हम स्वागत करते हैं। इसमें लेखक ने ब्रह्मचर्य की महिमा और विधि के विषय में बहुत अच्छा संग्रह किया है, जो सर्वसाधारण तथा विद्यार्थी-युवकों के लिये तो बहुत उपकारक होगा । प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने ब्रह्मचर्य का विवेचन करते हुए, ब्रह्मचर्य के प्राचीन आदर्श को सामने ‘ रखा है, जिसमें वीर्य-रक्षा और उसके परम पुरुषार्थ की सिद्धि ‘ से उपयोग-दोनों का अन्वश्व होता है। ब्रह्मचर्य का पदार्थ और भावार्थ भी ऐसा हा है। ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करने में लेखक ने बहुत विस्तार किया है, परंतु हमारीसमझ से वह व्यर्थ न होगा । इस विस्तार में प्राचीन ग्रन्थों से जो अवतरण उन्होंने दिये हैं, वे बहुत ही स्फूर्तिदायक और समय पर काम देनेवाले हैं। प्रस्तुत विपय के संबंध में सभी विचारणीय चांतों का समावेश इस पुरतक में किया गया है, जिससे पुरतक सब के लिये बड़े काम की हुई है। ऐसी पुस्तकों का देश में जितना प्रचार हो, उतना अच्छा है। हमारे समाज में जितने अधिक लोग ब्रह्मचर्य के महत्व को समझेगे, जितने अधिक लोग उसका पालन करेंगे, हमारे समाज का भौतिक और बौद्धिक बल उतना ही अधिक बढ़ेगा । ब्रह्मचर्य का बल ही हमारी सबसमस्याओं को हल करेगा ।- लक्ष्मणनारायण गर्दै
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