Chkramaha Bigyan Granth (Parmatma Ka Darshan)- Kundalini Yog Sadhna Hindi eBook pdf

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Chkramaha Bigyan Granth (Parmatma Ka Darshan)- Kundalini Yog Sadhna Hindi eBook pdf file

Chkramaha Bigyan Granth ebook
चक्र महा विज्ञानं ग्रन्थ (परमात्मा का दर्शन) – कुण्डलिनी योग साधना
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 288
Size- 11mb
Quality- nice, without any watermark

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इस चक्र महाविज्ञान ग्रन्थ की रचना प्राचीन सद्ग्रंथों एवं संतो के विभिन्न अनुभवों एवं आधुनिक साधन के अनुभव से की गई है। लेखक ने विशेषकर अपने हृदय का अनुभव प्रकट किया है। अपने ही इस शरीर के भीतर छिपे हुए स्तरों का अनुभव मनुष्य कसे कर सकता है इसका संकेत सामान्य स्पष्ट भाषा में किया गया है। ग्रन्थ तो बहुत सज्जन लिखते हैं किन्तु उसके अनुसार साधन करने वाले बहुत कम लेखक होते हैं किन्तु घनेश्वरानन्द ने साधन करके अपने संकल्प को सबल एवं सशक्त बनाकर ही लिखने का प्रयास किया है। जो-जो साधक आन्तरिक अनुभूति की ओर रूचि रखने वाले, इस ग्रन्थ से सहर्ष सहयोग ले सकते हैं ओर जिनके भीतर सीखने को उत्सुकता हो वे सीख भी सकते हैं।
अधिकांश स्रा पुरूषों का एकांगो विकास होता है क्योंकि भौतिक शिक्षा बाहर से सोखी जाती है कितु दीक्षा भीतर से प्रत्यक्ष होती है उसी का परिणाम रूप दक्षता है जसे नर्तकियों बाहर से सीखकर नाचती गाती हैं परन्तु मीरा का नाच और गीत भीतर से उमड़ता है जैसे कहींकहीं पृथ्वी एवं पहाड़ों में से झरने स्वभाविक झरते हैं, ठीक इसी प्रकार साधकों के भीतर से ज्ञान-ध्यान-विज्ञान भक्ति रूप शक्ति के झरने सहज रूप से ही फूट निकलते हैं। उनका अपना जीवन तो आनन्द एवं पर मात्मा में विभोर ही हो जाता है आस पास रहने वाले स्त्री पुरूषों को भी उनका ५ह भाव एवं चाव लाभान्वित करता रहता है इस लिए कहा गया है कि ज्ञानी से ज्ञान बढ़ता है ध्यानो से ध्यान, दानी से दान, अभिमानी से अभिमान उसी प्रकार योगी से योग भोगी से भोग एवं रोगी से रोग अपने आप विकसित होता रहता है। भक से भक्ति सात से शक्ति, प्रेमी से प्रेम, नेमी से नेम और विद्वान से विद्वता, धर्मात्मा से धर्म और कर्मठ से कम बढ़ता ही रहता है।
‘जिसका जैसा कर्म स्वाभाविक, उसमें दोष नहीं है।
दोष नियत में रहे बराबर, सच्ची बात यही है।।
है सार गीता का यही, अभिमान करना छोड़ दे।
अपने स्वाभाविक कर्म का नाता, प्रभु से जोड़ दे ।।
श्रद्धा द्वार है मोक्ष का, अभिमान बंधन के लिए।
यह विश्व मेरी वाटिका है, भ्रमण करने के लिए।।
मेरे लगाए बाग से, होता तुम्हें क्यों क्लेश है।
सब रुप मेरे जानिए, ये गीता का संदेश हैं।।”
लेखक ने इस ग्रन्थ में अपनी भावना को ठुस-टुस कर अपनी सदर्ष
मोटी भाषा को भर दिया है जिन साधकों की श्रद्धा हो वे इसका माध्यम
लेकर अपने यथार्थ स्वरूप को जानने का अभ्यास कर सकते हैं।
– शिवानन्द तीर्थ, ( बाबा गीता घाट)
Hindi eBook pdf Chkramaha Bigyan Granth

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