Jivan Moran Rahasya (जीवन मरन रहस्य) by Prasiddhnarayan Singh Hindi book pdf
e-book novel- Jivan Maran Rahasya (जीवन मरन रहस्य)
Author- Prasiddhnarayan Singh
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 99
Size- 3mb
Quality- nice, without any watermark
जय से भारतयर्ष का पतन हुआ है, तभी से आर्य-जाति के समस्त गुणों फा दिन-पर-दिन हास होता जा रहा है। उसमें अव न तो वह पूर्व-वीरता है, न वल-बुद्धि, न धैर्य, न साहस और न निभीकता ही है । जिस देश के ऋपियों ने ‘एकोई द्वितीयोनास्ति’ की अरलैंड और अंतिम शंख-ध्वनि की थी, तथा जिस अपने प्रात्म-स्वरूप के विषय में ‘नैन छिदति शस्राणि नैन दहति पावक: ; न चैन क्लेदयन्यापी न शोपयति मारुतः ।’ का अद्वितीय उपदेश दिया था, अग्र उसी देश के निवासियों को मृत्यु की भयंकर मूर्ति पग-पग पर दिखाई देती हैं। यदि कही धोके में अपनी परछाई दिखाई पढी, तो यस, उन्हें भूत पकड़ा, और वे चीमार पड़े। लाल पगड़ी-धारी पुलिस के सिपाहियों ने ज़रा डॉटा, और काटो तो उनके शरीर में प्रून नहीं। आज राष्ट्रीय महासभा का अधिवेशन है, वहाँ प्रार्य-जाति के उद्धार पर विचार होनेवाला है, किंतु वे वहाँ नहीं जा सकते, क्योंकि दिशाशूल और भद्रा के पहाड़ सामने ही छाती अड़ाए खड़े हैं, पितृ-घातक का भयफर समुद्र उमद्ध रधा है.। इसी प्रकार इस मिथ्या-मृत्यु के भय ने हमारा आर्य-जाति के ऊपर ऐसा कुठाराघात किया, जिससे वह अपने फर्तव्य से नितांत विमुख हो गई, उसमें अकर्मण्यता का भाव कृष्ट-कृष्टकर भर गया । ऐसी दशा में देश के प्रत्येक विचारशील पुरुप का हृदय दु:ख से ब्याकुञ्ज हुए विना कदापि नही रह सकता। अस्तु । मैंने भी इसी विचार से कि जिस मृत्यु के भय ने हमारे समाज को अकर्मण्य बनाया, देश को इस शोचनीय अवस्था में ला दिया, वह मृत्यु है क्या वस्तु १
अपने प्राचीन ऋषियों के सिद्धांतों पर इस छोटी-सी (जीवन-मरणरहस्य) पुस्तक की रचना की। यदि देशवासियों का इससे कुछ भी उपकार हुआ, तो मैं अपने परिश्रम को सफल समगूँगा। पुस्तक में पहले हाद, मांस, रुधिर के लोथड़े ( शरीर) की बनावट और उस्याळी भीतरी क्रियाश्यों जैसे अन्नपचन, रुधिग्संचारण, श्वसन, वेदना और कर्म-संचानन आदि तथा क्रियाओं के उइश का घर्णन किया गया हैं । आगे चलकर बतलाया गया है कि इन उद्देशों की पूर्ति देहाणु-समूह किस प्रकार करते हैं, और उनके द्वारा (प्राकृतिक रूप से) हमारे समस्त रोग कैसे अच्छे हो जाते हैं । फिर मानस की प्रेरणा, उसका विकास तथा धात्मा के ऊपरी पद्श्ग्रावरणों (भ स्थूषाशरीर, २ क्तिगशरीर, ३ प्राणशक्ति, भ्र प्रवृत्ति-मानस, ४ बुद्धि. ६ यात्म-मानस थ्रौर ७ श्रास्मा) का विवेचन करते हुए योग की विभूतियों का दिग्दर्शन कराया गया है। अंत में यह प्रत्यक्ष दिखला दिया गया है कि ‘मनुष्य सर्वदा रहा है और सर्वदा रहेगा। जिसे हम मृत्यु कहते हैं, वह निद्रा है, जिससे अगले दिन जागना पडेगा।” मैं यहाँ पर श्रीमान् माननीय राजा विश्वनाथशरणसिंहजूदेव बयादुर तिलोई-नरेश को धन्यवाद दिए विना नहीं रह सकता, जिनकी अपूर्व कृपा से मुझे ‘देश-सुधार ग्रंथमाला’ के तीन पुष्प (संसार-रहस्य, सीधे पंडित और यह जीवन-मरण-रहस्य ) अपने सहृदय पाठकों के भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । अपनी अल्पाघस्था में ही श्रीमान् की ऐसी देश-हितकर साहित्य की अभिरुचि तथा उसकी उन्नति में तन, मन, धन से प्रयवशील होनेवाली प्रवृत्ति को देखकर किसका हृदय आर्नद से प्रफुल्लित न हो उठेगा ? – प्रसिद्धनारायण सिद्द
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Hindi book pdf Jivan Moran Rahasya (जीवन मरन रहस्य)