Ekagrata Or Divyashakti by Santaram Hindi ebook pdf

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Ekagrata Or Divyashakti (एकाग्रता ओर दिव्याशक्ति) by Santaram Hindi ebook pdf

Ekagrata Or Divyashakti by Santaram ebook
e-book name- Ekagrata Or Divyashakti (एकाग्रता ओर दिव्याशक्ति)
Author- Santaram
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 160
Size- 6mb
Quality- good, without any watermark

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यपि इस पुस्तकका विषय बढ़ रोचक और बिताकर्षक है फिर भी यह कोई उपन्यास या दिल बहलानेकी पुस्तक नहीं । जो लोग इसे केचल दिल बहलानेके लिए ही पढ़ना चाहते हों वे कृपया इसे हाध न लगावें । इसमें उनके मनोरजनकी कोई सामग्री नहीं है। परन्तु जो नर-नारी जीवनमें उन्नति करना चाहते हैं, जो अपनी गुप्त मानसिक शक्तियोंसे पूरा लाभ उठाना चाहते हैं, जो सुख और शाति प्राप्त किया चाहते है, जो आनन्द और तन्दुरुस्तीके अभिलापी हैं, जो अपनी दरिद्रतासे महा दुखी हैं, जो अपने संसारमें सफलता लाभ करनेके आकाक्षी हैं, और अन्तत’ जो परम देवकी साक्षात्कार करनेके लिए योगके रहेस्योंको समझना चाहते हैं उनके लिए यह एक वर-स्वरूप है । पर शर्त यह है कि वे इसमें बताई हुई शिक्षाओं पर अमल करें और इसमें वर्णित विधियोंका अभ्यास करें । विचार-विद्या एक नियम बद्ध शास्त्र है। इस लिए इसे एक शाक्त्रीय पुस्तक समझ कर ही पढ़ना. चाहिए । इसे समझनेके लिए जरा मस्तिष्ककी भी सोचनेका काम करना पडेगा। इस शाल्वके अध्ययनमे जितना परिश्रम और जितना समय जिज्ञासु लगायगा उतने ही चिरस्थायी उसके फल होंगे, और उतनी ही अधिक ऋद्धि तथा सिद्धि उसे प्राप्त होगी । इस लिए सची उन्नतिके अभिलाषियोंकी परिश्रम और उद्योगसे घबराना नहीं चाहिए। दिल बहलानेकी पुस्तकें तो आप सदा पड़ते ही हैं, विचार-शानिकी भी एक पुस्तक पढ़ देखिए। इसमें आपकी अनेक अद्भुत और नई वाते मिलेंगी। जो लोग अपने मनोवलको बढ़ानेकी इच्छा तो रखते हैं, पर जिन्हें यह विषय अभी नीरस प्रतीत होता है उन्हें सबसे पहले इस पुस्तकका परिशिष्ट पढ़ना चाहिए। यह परिशिष्ट हमने अपनी तरफसे जोड़ दिया है। इसके पाठसे पाठकोंके मनमें इस शात्रिके अध्ययनके लिए रुचि पैदा होगी। उन्हें मालूम हो जायगा कि मानसिक शक्सेि कैसे कैसे अद्भुत कार्य किये जा सकते है। सुननेको तो हम शताब्दियोंसे सुनते आ रहे हैं कि विचार में शक्ति है, पर हमने इस कथनका वैज्ञानिक अन्वेषण कभी नहीं किया, इस आर्प वाक्यकी परीक्षा द्वारा जाँचनेका कभी उद्योग नही किया । परन्तु पश्चिममें यह बात नहीं है। वहाँ विज्ञानकी कसौटी पर परखे विना कोई भी बात स्वीकार नही।
की जाती। विचार ही संसार में सवसे महान शक्ति है। इस कथनकी सत्यता इस पुस्तकमें वैज्ञानिक रीतिसे प्रमाणित की गई है। पुस्तककी लेखिका, श्रीमती ‘ओ हष्णु हारा’ ने इसे एक कल्पित तत्वज्ञान न रहने देकर एक सुनिक्षित शास्त्र सिद्ध कर दिया है। पश्चिमवालोंने इस शास्त्रका नाम ‘नव-विचार’ विद्या रक्खा है। पश्चिमकी भोगभूमिके लिए है भी यह नव-विचार, पर भारतकी प्राचीन ज्ञान-भूमिके लिए यह कोई नया विचार नहीं है। यहाँके मुनेि इस विद्याके पूर्ण ज्ञाता, नहीं नहीं, इस शान के अविष्कारक थे। उन्हींकी महती कृपासे ससारमें इसका प्रचार हुआ था। पर कालकी बाम गतिसे आज यह पवित्र विद्या उन जगद्धरुओंके वंशजोंमें नहीं रही। इसका भारतमें लीप-सा हो गया है। इसमें सन्देह नहीं कि महामुनि पतञ्जलिका योगदर्शन इस विद्याका सर्वोतम ग्रंथ है और उसका मिलना भी कुछ कठिन नहीं, परन्तु वह उच्च श्रेणीके अभ्यासियोंके कामकी चीज है, नये छात्र उससे बहुत कम फायदा उठा सकते हैं। जिन लोगोंको पूर्वसे इस शाखका कुछ भी ज्ञान या अभ्यास नहीं, उन्हें इसका क, ख, आरम्भ करनेके लिए योगसूत्रकी अपेक्षा किसी और सुगम पुस्तककी जरूरत है। वे केवल योगदर्शनके पाठसे ही इसका अभ्यास नहीं कर सकते । यही कारण है कि उस पुस्तकके प्राप्त होते हुए भी आज हम योग नहीं सीख रहे हैं। हमारा खयाल है कि प्राचीन कालमें भी पतञ्जलिकी पुस्तकके अतिरिक्त नये छात्रोंके लिए और कई सुगम सुगम पुस्तकें मौजूद होंगी जो कि अब कालकी गतिसे विनष्ट हो चुकी हैं । नये अभ्यासी पहले उन्हें ही शुरू करते होंगे, और वादमें कुछ उन्नति कर लेने पर योगदर्शनसे सहायता लेते होंगे। या इन सरल और प्राथमिक पुस्तकों के अभावको गुरुकी मौखिक शिक्षा दूर कर देती होगी। 1 वर्तमान पुस्तक भी वैसी ही प्राथमिक पुस्तक है। इस विद्याके नये छात्रोंके लिए इसे एक प्रकारसे योगदर्शनकी वैज्ञानिक व्याख्या ही समझिए। अलवता, इतनी बात जरूर है कि यह व्याख्या किसी भारतीय पडित द्वारा नहीं, बल्कि एक पश्चिमी देवी द्वारा की गई है। इसका इंग्लीश नाम हे “Concentration and the Acquirement of Personal Magnetism.” पदार्त-विज्ञानकी भूमि पश्चिम मे मानतिक विज्ञानकी इस पुस्तकका लिखा जाना कोई कम आश्चर्थकी बात नहीं है। सच तो यह है कि हमारी कोई भी उत्तम विद्या ऐसी नहीं जिसे पश्चिमवाले न ले गये हों। पश्चिममें इसके जानेसे एक फायदा अवश्य हुआ है। और वह यह है कि जहाँ हमारे पंडितोंकी व्याख्याओंने इस विद्याको केवल एक खयाली ढकोसला और असम्भव कथा ही घना रक्खा था वहाँ अब यह विज्ञान-भक्त पाथात्योंके परिश्रमसे एक सत्य विज्ञान बन गई है। इसकी सचाईमें अव किसीको भी सन्देह नहीं हो सकता । यह समझना भारी भूल है कि मनोबल या मानसिक एकाग्रता केवल ईश्वर प्रातिके लिए ही उपयोगी है। नहीं नहीं, मानसिक एकाग्रतासे मनुष्यके अन्दर एक विशेप प्रकारका बल पैदा ही जाता है । इस बलकी चाहे सम्मोहिनी शक्कि कहो, चाहे व्यकिगत आकर्पण शक्ति, और चाहे मनुष्यकी चुम्बकीय शक्ति, वात एक ही है। परन्तु इसके लिए सबसे उत्तम नाम ‘ औज ‘ या ‘ औजस ‘ शक्ति है। इसका प्रयोग ईश्वर-प्राप्ति और धन-प्राप्ति दोनोंके लिए, समान रूपसे हो सकता है। भारतीय योगी जहाँ इसे आध्यात्मिक विकासके लिए प्राप्त किया करते थे, वहाँ आधुनिक या पाश्चात्य लोग इसे धन कमानेका साधन वना रहे हैं। कहनेका तात्पर्य यह कि अभ्यासी जैसा चाहे वैसा ही काम इस शक्तिसे ले सकता है। इस लिए गृहस्थ और वानप्रस्थ दोनोंके लिए इसका प्राप्त करना परम प्रयोजनीय है। श्रीमती ओ हष्णु हाराकी बताई हुई प्राणायाम-विधि कुछ कठिनसी प्रतीत होनेसे हमने पुस्तकके अन्तमें ‘ प्राणायामकी एक सरल विधि ‘ और लगा दी है। यह विधि हमें पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यानन्दजी महाराजकी कृपासे प्राप्त हुई है। इसके लिए हम स्वामीजी महाराजके अत्यन्त ही कृतज्ञ हैं। स्वामीजी महाराज कहते हैं कि जितना कुछ उन्होंने अपनी इस विधि में लिख दिया है उससे अधिक पुस्तकों द्वारा सर्व-साधारण को बताया नहीं जा सकता । क्योंकि इससे अधिक लिखनेसे जनताको लाभके स्थानमें हानि होनेका डर है । जो अभ्यासी प्राणायामकी अधिक जटिल कियाओंकी जानना चाहते हैं उन्हें किसी प्राणायाम करनेवाले सच्चे गुरुकी शरण लेनी चाहिए। पुस्तकें इस विपयमें उनकी अधिक सहायता नहीं कर सकतीं।-सन्तराम बी० ए०

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Hindi ebook pdf Ekagrata Or Divyashakti

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