Gyanganj (ज्ञानगंज) by Gopinath Kaviraj Hindi ebook pdf
e-book name- Gyanganj (ज्ञानगंज)
Author- Gopinath Kaviraj (महामहोपाध्याय पं० गोपीनाथ कविराज)
Book Type- travelogue
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 137
Size- 14mb
Quality- best, without any watermark
पुस्तक के लिए दो शब्द-
अनादिकाल से हिमालय का सम्पूर्ण क्षेत्र भारतीय सन्तों के लिए तपोभूमि रहा है। प्राचीनकाल के ऋषि-मुनि से लेकर आधुनिक काल के अनेक संत-योगी हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में तपस्या करते रहे । आधुनिक काल के संतों में महात्मा तैलंग स्वामी, लोकनाथ ब्रह्मचारी, हितलाल मिश्र, राम ठाकुर, सदानन्द सरस्वती, प्रभुपाद विजयकृष्ण गोस्वामी, स्वामी विशुद्धानन्द, श्यामाचरण लाहिड़ी, कुलदानन्द आदि हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में आध्यात्मिक साधना करते रहे।
श्रद्धेय कविराजजी ने अपने एक लेख में लिखा है कि सिद्ध पुरुष जिस स्थान पर बैठकर योग-साधना करते हैं वह स्थान सिद्धभूमि बन जाता है। सिद्धभूमि सिद्ध पुरुष के नाम के अनुसार अथवा अन्य किसी प्रकार के नियम के अधीन विभिन्न नाम और रूप लेकर श्री भगवान् की विश्वलीला में अपना-अपना काम करती हैं। प्रसिद्ध है, दत्तात्रेय, अगस्ति, वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि ऋषिवर्ग अपने-अपने सिद्धाश्रम स्थापित करके ज्ञान-विज्ञान का प्रचार करते रहे। जो महापुरुष सिद्धि प्राप्त कर आधिकारिक अवस्था-लाभ करते हैं, वे ही इन सभी सिद्धभूमियों के अधिष्ठाता होते हैं। जिनमें अधिकार-वासना नहीं है, वे सिद्धभूमि में रहते हुए भी न रहने के समान हैं अथवा वे सिद्धभूमि के ऊर्ध्व में रहते हैं। जिस प्रकार सिद्धपुरुष चित् और अचित्, कार्य और कारण, शुद्ध और अशुद्ध एवं स्थूल और सूक्ष्म सभी अवस्था में अव्याहत रहते हैं तथा अपने वैशिष्ट्य का संरक्षण कर सकते हैं, उसी प्रकार ये बातें सिद्धभूमि पर भी लागू होती हैं। देह सिद्ध करने के पश्चात् भूमि को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि देह-सिद्धि होने पर उसी प्रकार भूमि-सिद्धि हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि सिद्ध आत्मा की इच्छानुसार तथाकथित सिद्धभूमि का आविर्भाव होता है।
कविराजजी के कथनानुसार न केवल हिमालय में, बल्कि भारत के अनेक प्रान्तों में ऐसी सिद्ध भूमियाँ हैं, जहाँ साधक योग-साधना करते रहे। हिमालय में सिद्ध भूमियों की संख्या अधिक अवश्य है।
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