Jwala Mukhi Ke Phool (ज्वालामुखी के फूल) by Sushil Kumar Hindi ebook pdf
e-book novel- Jvala Mukhi Ke Phool (ज्वालामुखी के फूल)
Author- Sushil Kumar
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 180
Size- 8mb
Quality- nice, without any watermark
कहानी का कुछ हिस्सा-
उस दिन मगध की प्रजा ने आंख खोलते ही जो समाचार सुना, उससे केबल पाटलिपुत्र ही नही, सीमाओं के उस पार की राजधानियों में भी
हलचल मञ्च गई । सम्राट् महापद्म नन्द उग्रसेन ने महामात्य शकटार को पूरे परिवार सहित कारावास में डाल दिया।
मन्त्रि-परिषद् के कई सदस्य मूढ़ों की तरह रथों और घोड़ों पर बैठकर इधर-उधर भाग-दौड़ करने लगे । इस हलचल का सबसे बड़ा केन्द्र था अमात्य राक्षस का भवन । कितने ही लोग बाहर भीड़ लगाकर खड़े थे। सारे पाटलिपुत्र में रक्षकों और सैनिकों के दल सशस्त्र घूम रहे थे, तब भी प्रजा की हलचल कम नहीं थी। कई व्यक्ति बन्दी बना लिए गए, फिर भी कोई अन्तर न पड़ा । अमात्य राक्षस के भवन में दक्षिण की ओर एक कक्ष था, जिसके बाहर कई विदेशी स्त्रियाँ और सैनिक पहरा दे रहे थे। भीतर प्रमात्य राक्षस, अमात्य कल्पक, दुरन्त, नागसेन आदि कितने ही गिने-माने व्यक्ति बैठकर गम्भीरता से विचार कर रहे थे। अमात्य कल्पक ने कहा, ‘यह घोर अत्याचार है। आर्य शकटार जैसे महान् व्यक्ति को कारावास में डालने का अर्थ यह है कि सम्राट् की दृष्टि में किसी का भी कोई मूल्य नहीं है।”
कमरे में चारों ओर से गहरी साँसों के साथ-साथ हुंकार सुनाई पड़ा। नगरसेठ सुदत्त ने कहा, ‘यह सीमा है, इससे अधिक और क्या होगा ?”
अमात्य दुरन्त ने उनकी ओर देखकर व्यंग्य से हँसते हुए कहा, ‘हमें लज्जा आनी चाहिए। ऐसे अवसर पर भी हमारे नगरसेठ इतने धीमे स्वर और मधुर शब्दों में बोल रहे हैं।” फिर एक बार वहाँ बैठे हर व्यक्ति की ओर ध्यान से देखकर वह बोले, ‘तुरन्त ही निर्णय लेना है ! प्रजा अपने प्रिय महामात्य के बन्दी बनाए जाने से इतनी दुखी है कि यदि उचित संकेत न मिले तो किसी भी क्षण विद्रोह हो सकता है। भयानक रक्तपात होगा ।”
‘और कोई आश्चर्य नहीं कि राजभवन को घेरकर खड़े विद्रोही किसी भी क्षण सैनिकों पर टूट पड़े।” अमात्य कल्पक ने कहा।… आगे पुस्तक से परे।
Hindi ebook pdf Jwala Mukhi Ke Phool (ज्वालामुखी के फूल)