Kadambari (कादम्बरी) by Banbhatta pdf

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Kadambari (कादम्बरी) by Banbhatta, Hindi ancient book pdf
Book name- ‘Kadambari (कादम्बरी)’
Author- Banbhatta (बाणभट्ट)
Translator- Shri Harishchandravidhyalankar (श्रीहरिश्चन्द्रविद्यालङ्कार)
Book Type- Translated Hindi Book
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 784Size- 27 Mb
Quality- good, without any watermark

Kadambari (कादम्बरी) by Banbhatta pdf

श्रीमद्बारणभट्टप्रणीता कादम्बरी (पूर्वार्द्धम्)

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संस्कृत से परिचित विरला ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसने बाणभट्ट का नाम न सुना हो । काव्यनाटक-क्षेत्र मे जिस तरह कालिदास सर्व-श्रेष्ठ माने जाते हैं, वैसे ही गद्यकाव्य-क्षेत्र मे बाण भी अद्वितीय कलाकार हैं। उनकी सर्वोत्तम रचना कादम्बरी है, जो एक उच्चकोटि का उपन्यास है। ऐसा कोई भी विश्वविद्यालय, विद्यापीठ अथवा शिक्षा-सस्था न होगी, जहाँ बाण की कादम्बरी पाठय-पुस्तक के रूप मे नियत न हो। कहीं सारी कादम्बरी है, कही उसका पूर्वार्ध है, कही शुकनासोपदेश तक है, तो कहीं कथामुख तक अथवा कही इसके चुने हुए स्थल हैं-अभिप्राय यह कि किसी न किसी रूप मे कादम्बरी पाठ्यक्रम मे नियत होती अवश्य है।
कहना न होगा कि कादम्बरी एक शैली-प्रधान उपन्यास है, जिसमे वर्णनों को अधिक महत्व दिया जाता है, घटना को कम। यही कारण है कि बाण की कादम्बरी अपने वर्णनों के लिए प्रसिद्ध है। कई स्थलो मे ऐसे लम्बे-लम्बे समास-बहुल, पौराणिक सकेतों से भरे और मलकारों का ताँता लिये हुए वाक्य चल पडते हैं कि साधारण सस्कृतज्ञ को अर्थ समझने में कठिनाई आ जाती है । प्रसिद्ध टीकाकार श्रीकाले महोदय ने कादम्बरी के सम्बन्ध मे ठीक ही

बोधैक गम्या रसभाव-पूर्णा जीर्णापि नित्यं धृतचारुवर्णा ।
अचिन्तनीय-प्रभवापि निर्जरैर्दुरावबोधा किमु बोधविक्लवैः ।।
पाठकों की इस कठिनाई को दूर करने के लिए विद्वानों ने कादम्बरी पर कितनी ही टीकायें कर रखी हैं। कुछ टीकाओं के नाम है-कादम्बरीपदार्थदर्पण, विषमपदविवृति, आमोद, चषक इत्यादि । वे अधिकतर पूर्वार्ध तक हैं। हरिदास, शिवराम और धनश्याम ने भी कादम्बरी पर टीकार्य कर रखी हैं, पर इनमें अधिकतर इतनी सक्षित हैं कि उनसे साधारण पाठकों-विशेषत छात्रों को अच्छी तरह अर्थ समझने मे अपेक्षित सहायता नहीं मिल सकती। कादम्बरी के सर्व प्रसिद्ध टीकाकार जैन-पडित श्रीभानुचन्द्र हैं, परन्तु उन्होंने पूर्वाद्ध तक ही टीका की है। उत्तरार्ध भाग की टीका उनके शिष्य सिद्धचन्द्र ने की है। इन्हीं भानुचन्द्र की टीका हमने इस सस्करण में अपनायी है। प्रस्तुत सस्करण हमने अभी पूर्वार्ध तक ही निकाला है। थोड़े ही समय में उत्तरार्ध को भी प्रकाशित करके इसके साथ जोड दिया जाएगा। ५० भानुचन्द्र ही ऐसे व्याख्याकार हैं, जो मूल की कोई बात नहीं छोड़ते हैं, समासों का अच्छी तरह विश्लेषण कर देते हैं और प्रत्येक शब्द का पर्याय भी दे देते हैं । अत हमारे विचार में इनकी टीका ही एक ऐसी टीका है, जो साधारणत कादम्बरी के सभी पाठकों-विशेषत छात्रों की सभी आवश्यकताओं को पूरा कर देती है।

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