Kriyatmak Kundolini Tantra (क्रियात्मक कुण्डलिनी तंत्र) by Maharishi Jatindra
e-book novel- Kriyatmak Kundolini Tantra (क्रियात्मक कुण्डलिनी तंत्र)
Author- Maharishi Jatindra (महर्षि यतीन्द्र)
File Format- PDF
Language- Hindi
Hindi spiritual book
Pages- 457
Size- 68mb
Quality- nice, without any watermark
[सहज अष्टांग योग सहित]
[आत्म तत्व ज्ञान के सिद्धान्त, अष्टांग योग की क्रियात्मक व्याख्या, कुण्डलिनी योग के आसन एवं प्राणायाम, बंध तथा मुद्रायें, सौन्दर्यवर्द्धक व्यायाम, ऋतुओं के आधार पर आहार, धारणा और ध्यान के विशेष त्राटक, कुण्डलिनी के षट् चक्रों से आगे के विशेष विवरण, कुण्डलिनी में सेक्स उपयोग, यौन चिकित्सा, काम-कला से योग विलास आदि विषयों का मनोवैज्ञानिक एवम् वैज्ञानिक विवरण, विभिन्न साधक साधिकाओं के अनुभवों सहित]
एक प्रश्न पाठकों के मन में उभर सकता है कि मेरे गुरु कौन हैं? वास्तविकता यह है कि मैं व्यक्तिगत रूप से किसी एक व्यक्ति को गुरुपन की गरिमा प्रदान नहीं कर सका हूँ क्योंकि मेरे चौखटे में अमीबा से ब्रह्मा तक सभी गुरु रूप में ही बैठे दृष्टिगोचर हो रहे हैं। लोग अपने से बड़ों से ज्ञान लेते हैं, मैंने अपने से छोटों से भी बहुत कुछ सीखा है, और अब भी सीखता जा रहा हूँ। बहुत से प्रयोगों के माध्यम ‘छोटे” ही रहे हैं। यदि वे अपने अनुभव न देते अथवा मुझे अनुभव न करने देते तो मेरा ज्ञान कहाँ से बढ़ता ? मैंने जिससे जो ज्ञान मिला, पाने का प्रयत्न किया; कभी सीधे-सीधे, तो कभी उल्टा बोल कर। पुराण में एक कथा आती है कि गणेश जी से जब कहा गया कि पृथ्वी का चक्कर लगाकर शीघ्रातिशीघ्र आओ तो उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर सारी परिक्रमाएँ उसमें समाहित कर दी थीं। मैं जब इस वक्तव्य पर विचार करता हूँ तो देखता हूँ कि गणेश जी के साथ यह घटित हुआ हो या न हुआ हो, मेरे साथ अवश्य घटित हो गया है कि मैं सभी गुरुओं को अपने माता-पिता में ही समाहित करता हूँ जिन्होंने मुझे इस आनन्दपूर्ण संसार में लाकर मेरी उचित परवरिश के साथ मुझे आगे बढ़ने का उन्मुक्त अवसर दिया। ऐ आदरणीय बाबूजी (पिता श्री) ने अपने निर्वाण से एक दिन पूर्व मुझे जो प्रेरणापूर्ण शुभाशीष दिया था, यह पुस्तकाकार उसी कृपा का परिणाम है। यह श्रद्धांजलि उन्हीं को समर्पित है। – ‘यतीन्द्र
‘महर्षि’ शब्द के साथ जो आश्रमवासी स्वामी की धारणा मानस कल्पना में उभरती है उस परम्परा को डॉ. वाईडी गहराना ने तोड़ कर सामान्य संसारिक कार्य व्यवहार में रत रहते ‘गृहस्थ-योगी’ से जोड़ दिया है।हमारे देश की परम गोपनीय विद्या ‘कुण्डलिनी-योग” को इतना सरल और वैज्ञानिक रूप देकर लेखक ने जीवन भर के अपने संचित ज्ञान को दाँव पर लगा दिया है। ऐसा करने की हिम्मत कुछ विशेष लोग ही जुटा पाते हैं। अष्टांग योग के सहज क्रियात्मक अभ्यास इस पुस्तक की विशेष निधि हैं। ‘भोग में योग’ की प्राचीन लुप्त प्राय: परिपाटी के प्रवर्तक महर्षि यतीन्द्र’ की ‘क्रियात्मक कुण्डलिनी तन्त्र (अष्टांग योग सहित) के रूप में प्रस्तुत पुस्तक आपके हाथ में है। आप इसका अध्ययन करके लाभ उठायेंगे यही आशा है। – प्रकाशक
Hindi ebook pdf Kriyatmak Kundolini Tantra (क्रियात्मक कुण्डलिनी तंत्र)
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