Laute Hue Musafir (लौटे हुए मुसाफिर) by Kamleshwar Hindi Novel PDF File
Laute Hue Musafir (लौटे हुए मुसाफिर) by Kamleshwar
e-book novel- Laute Hue Musafir (लौटे हुए मुसाफिर)
Author- Kamleshwar
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 138
Size- 8mb
Quality- nice, without any watermark
भूमिका-
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिन लेखकों ने कथा-साहित्य को नयी दिशा प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया उनमें कमलेश्वर भी एक नाम है। प्रेमचन्द के बाद हिन्दी-कथा-साहित्य जन-संस्पर्श से कट गया था। कल्पना और मनोविज्ञान की संकरी गली में भटक जाने के कारण अपने समकालीन समाज की सच्चाइयों से दूर पड़ गया था । जीवन-संघर्ष की मुख्यधारा से कट जाने के कारण निर्जीव और एकांतिक हो गया था। प्रेमचन्द की समाजोन्मुखी धारा से उसे फिर से जोड़ने और समकालीन जीवन-संदभ के कथानकों को मुख्य कथा-धारा में ले आने का कार्य स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नये लेखकों ने प्रारम्भ किया । प्रमुख बात यह हुई कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये लेखकों ने अपने स्थानीय कथानकों को कहानियों और उपन्यासों में स्थान दिया । इस तरह हिन्दी कथा-साहित्य में पहली बार कथा-वस्तु का विस्तार हुआ। कथा-वस्तु के विस्तार के साथ नये-नये अपरिचित चरित्र, उनका व्यक्तिगत जीवन, उनके अपने क्षेत्र की विशेष भाषिक शब्दावली और उनके विशिष्ट जीवनानुभवों से हिन्दी कथा-साहित्य में एक नयी साथ ही ऐसी ताजगी आयी जो इससे पहले के साहित्य में पहले कभी देखी नहीं गयी थी ।
कथोपकथनों द्वारा भाषा के क्षेत्र में इतने और ऐसे नये शब्द आये जिनसे हिन्दी भाषा का खजाना भर गया । जीवन के विभिन्न स्तरों से अपनी वर्गीय विशेषताओं वाले सर्वथा नये पात्रों से हिन्दी कथा-साहित्य का अगिन शोभित हो उठा । खेतों-खलिहानों में काम करने वाले मजदूर, अन्यायी सामन्त, सताये हुए भूमिहीन किसान, परम्पराग्रस्त बूढ़ी स्त्रियाँ, नयी-नयी आकांक्षाओं से भरे हुए युवक और समाज की धार्मिक कुंठाओं से ग्रस्त पुराने और बूढ़े चरित्र अपनी क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ इस कालखंड की कहानियों में सहज ही पहचाने जा सकते हैं। अशय, जैनेन्द्र आदि के कल्पना प्रसूत, आत्मज चरित्रों की पहचान इन चरित्रों के सामने भूमिल पड़ती गयी । परिदृश्यगत विशेषताओं के नाम पर जहाँ इसके पहले के कथानकों को किसी भी देश अथवा समाज से जोड़ लिये जाने की सुविधा थी, वह इस कालखंड में समाप्त हो गयी। ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से समकालीन सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों के संदर्भ में कथानकों के मूल्यांकन की परम्परा शुरू हुई। शासन कैसा है, वह किस वर्ग की सेवा करता है। शेष गरीब किसान-मजदूर शोषण की चक्की में किस तरह पिस रहे हैं, किस तरह जनतंत्र के नाम पर उन्हें दबाया जा रहा है और किस तरह गरीब और भी गरीब तथा अमीर और भी अमीर होता जा रहा है-इसे दर्शाने वाले कथानकों ने अपने समय के समाज का सांस्कृतिक इतिहास लिखना शुरू कर दिया । कुल मिलाकर हिन्दी का कथा-साहित्य सामाजिक यथार्थ की मान्यताओं का प्रतीक बन गया और प्रेमचन्द की परम्परा का एक नया और सशक्त विकास नये-सिरे से प्रारम्भ हुआ ।..
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