Prani Shastra (प्राणी शास्त्र) Hindi ebook pdf

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Prani Shastra (प्राणी शास्त्र) by V. Shalayev, N. Rikav, Hindi ebook pdf
Author- V. Shalayev, N. Rikav
Book Type- Science Book
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 373
Size- 51Mb
Quality- good, without any watermark

Prani Shastra (प्राणी शास्त्र)

भूमिका
(अध्यापक के लिए)
इस पाठ्य पुस्तक में प्रोटोजोत्रा से लेकर प्राइमेट तक प्राणि-जगत् के मुख्य समूहों की प्रणालीबद्ध रूप-रेखा दी गयी है। प्राणि-शास्त्र के निम्नलिखित विविध क्षेत्रों की सामग्री का उपयोग करते हुए इस पुस्तक की रचना की गयी हैबाह्याकारिकी (morphology), कायिकी (physiology), पारिस्थितिकी (ecology), भ्रूण-विज्ञान (embryology), लुप्त-जीव-विज्ञान (paleontology) और प्राणियों का वर्गीकरण। लेखकों के सम्मुख निम्नलिखित शैक्षणिक उद्देश्य हैं- (क) संरचना, वासस्थान, जीवन-स्थिति , जनन और परिवर्द्धन की दृष्टि से प्राणियों की विविधताओं से छात्रों को परिचित कराना; (ख) क्रम-विकास के सिद्धान्त के आधार पर प्राणि-जीवन विषयक भौतिक विचार का विवेचन करना ; (ग) मनुष्य की व्यावहारिक गतिविधियों की दृष्टि से प्राणि-शास्त्र का महत्त्व कथन करना; (घ) उपयुक्त प्राणियों का संरक्षण और हानिकर प्राणियों की समाप्ति का तत्त्व स्वीकार करते हुए छात्रों के बीच प्राणियों के प्रति सचेत और तर्कसंगत प्रवृत्ति जागृत, करना। पाठ्यक्रम के बुनियादी तत्त्व हैं प्राणियों का क्रम-विकास ( ऐतिहासिक परिवर्द्धन) और सिद्धान्त तथा व्यवहार का समन्वय । प्राणि-जगत् के क्रम-विकास की कल्पना छात्रों के मन में चढ़ते क्रम से अर्थात् एककोशिकीय प्राणियों से लेकर बहुकोशिकीय प्राणियों तक , निम्न प्रकार के प्राणियों से लेकर उच्च प्रकार के प्राणियों तक के क्रम से प्रविष्ट की गयी है। इससे, क्रमविकास की प्रक्रिया में प्राणियों की संरचना में जो जटिलता बढ़ती गयी उसे समझ लेने में छात्रों को सहायता मिलती है । प्राणियों का परीक्षण उनकी जीवन-स्थितियों पर ध्यान देते हुए किया गया है। प्रत्येक प्राणी के वर्णन के साथ साथ उसके वासस्थान , आवश्यक जीवन-स्थिति और वातावरण के अनुसार उसकी संरचना और वर्ताव के अनुकूलन का विवरण दिया गया है। अंगों की संरचना का परीक्षण उनके कार्यों पर ध्यान देते हुए किया गया है। विशिष्ट समह के लिए असाधारण जीवन-स्थितियों में विशिष्ट अनकलन दिखानेवाले प्राणियों ( उदाहरणार्थ, स्तनधारियों में से चमगादड़, सील और ह्वेल ) और विभिन्न अंगों के व्यवहार तथा व्यवहाराभाव ( उदाहरणार्थ , दौड़ता हुआ शुतुर्मुर्ग ) के प्रभाव के अन्तर्गत परिवर्तनों का वर्णन काफ़ी विस्तार के साथ दिया गया है। कुछ फ़ौमिल प्राणियों का भी वर्णन दिया गया है। इनका परिचय प्राप्त कर लेने से छात्र को प्राणि-जगत् (लुप्त उरग, प्रारकिोप्टेरिक्स ) का ऐतिहासिक परिवर्द्धन समझ लेने में सहायता मिलेगी। पाठ्य पुस्तक में जल-स्थलचर, उरग , पक्षी और स्तनधारी प्राणियों की उत्पत्ति से सम्बन्धित तथ्य इस प्रकार दिये गये हैं कि छात्र उन्हें सुगमता से समझ सकें। उपसंहार में प्राणि-जगत् के क्रम-विकास सम्बन्धी सामग्री संकलित की गयी है। इसमें प्राणि-जगत् के ऐतिहासिक परिवर्द्धन तथा वर्गीकरण का सारांश , डार्विन के सिद्धान्त की साधारण कल्पना और मनुष्य की उत्पत्ति की समस्या से सम्बन्धित चर्चा संगृहीत है।
पूरे पाठ्यक्रम में सिद्धांत तथा व्यवहार के समन्वय के तत्त्व का भी पालन किया गया है।
उदाहरणार्थ :
(क) प्राकृतिक स्रोतों ( मछलियों, व्यापारिक पक्षियों और फ़रदार जानवरों का शिकार , उपयुक्त पक्षियों का संरक्षण एवं आकर्षण , रक्षित उपवन ) के तर्कसंगत उपयोग और सुरक्षा का परिचय कराते समय ;
(ख) रोग के उत्पादकों तथा वाहकों की बायोलोजी के अध्ययन में, जहां उनके वर्णन के साथ साथ उनके मलेरिया परजीवी , परजीवी कृमि , और कीट विरोधी उपाय भी दिये गये हैं;
(ग) विभिन्न कृषिनाशक जंतुओं ( कीट , कुतरनेवाले तथा मांसाहारी जंतु ) के वर्णन में;
(घ) प्राणि-पालन की-मधुमक्खी-पालन, रेशमी कीट-पालन, मछलियों का शिकार, पोल्ट्री , मवेशी-पालन – विभिन्न शाखाओं के जीव वैज्ञानिक तत्त्वों का परिचय कराते समय । मवेशी आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं अतः एक विशेष अध्याय में उनका परीक्षण किया गया है।
उक्त सारी ‘व्यावहारिक’ सामग्री इस प्रकार प्रस्तुत की गयी है कि छात्र न केवल वैज्ञानिक जानकारी के व्यावहारिक उपयोग से परिचित होंगे बल्कि प्राणियों की संरचना तथा जीवन के सम्बन्ध में अपना ज्ञान और विस्तृत तथा गहरा कर पायेंगे।
पाठ्यक्रम की आधारभूत कल्पनाएं क्रमशः और धीरे धीरे विकसित की गयी हैं। इस प्रकार शरीर के परमावश्यक कार्यों का वर्णन (पोषाहार, श्वसन , उत्सर्जन ) आरंभिक अध्यायों में दिया गया है जबकि उपापचय (metabolism) की प्रारंभिक साधारण कल्पना पहली बार आरथ्योपोडा विषयक अध्याय में ही दी गयी है। बाद में मछलियों तथा रीढ़धारियों के अनुगामी वर्गों की विशेषता बताते समय यह कल्पना अधिक गहराई के साथ स्पष्ट की गयी है।
प्राणियों और वातावरण के बीच के संबंधों के स्वरूप पर भी क्रमशः ध्यान दिया गया है। हाइड्रा का वर्णन करते समय अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं समझायी गयी हैं और केंचुए तथा उसके अनुगामी प्राणियों के वर्णनों में उनके प्रमाण दिये गये हैं। सहज प्रवृत्तियां एक प्रकार की जटिल अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं होती हैं यह दिखाने के लिए कीटों का उपयोग किया गया है। केवल रीढ़धारियों वाले अध्यायों में ही यह पाठ्य पुस्तक नियमित प्रतिवर्ती क्रियाओं को अस्थायी संबंधों के रूप में प्रस्तुत करती है।
प्राणियों के वर्गीकरण की कल्पना भी धीरे धीरे समझायी गयी है। आरोपोडा वाले अध्याय से पहले वर्गीकरण की समस्या का विवेचन नहीं किया गया है। आरोपोडा का वर्णन करते समय समूह और वर्ग के अभिप्राय समझाये गये हैं। रीढ़धारियों का वर्णन वर्गानुसार दिया गया है। श्रेणी, कुल , जाति और प्रकार का स्पष्टीकरण , कुतरनेवाले जंतुओं के उदाहरण से सम्बन्धित एक विशेष परिच्छेद में दिया गया है।
इस पाठ्य पुस्तक की रचना में लेखकों ने जो प्रणाली अपनायी है उससे प्राणि-शास्त्र विषयक पाठ्यक्रम की आधारभूत धारणाओं का क्रमिक विकास संभव है। इसी लिए अनुवाद का रूप वही रखा गया है जो रूसी में प्रकाशित मूल पुस्तक का है। फिर भी भारतीय छात्रों के लिए अधिक रोचक बनाने की दृष्टि से पुस्तक को परिवर्द्धित किया गया है और उसमें भारतीय प्राणि-समूह के विशिष्ट प्राणियों का समावेश किया गया है। इनका वर्णन भी उसी प्रकार दिया गया है जिस प्रकार वाक़ी प्राणियों का। इसलिए नये परिच्छेदों का उपयोग या तो मुख्य पाठ्यक्रम की पूर्ति के रूप में किया जा सकता है और या तो पाठ्यक्रम के मुख्य भाग में वर्णन किये गये प्राणियों के स्थान में।
आम तौर पर इस पाठ्यक्रम का उपयोग करते समय किसी विशेष समूह के प्रतिनिधि प्राणियों के स्थान में ऐसे दूसरे प्राणी लिये जा सकते हैं जो स्कूलवाले इलाक़े की स्थितियों में पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ , मछलियों की संरचना का अध्ययन करते समय यह किसी प्रकार अनिवार्य नहीं है कि पर्च-मछली को ही लिया जाये। उसके स्थान में दूसरी कोई भी अस्थिल मछली ली जा सकती है। कीटों के प्रतिनिधि के रूप में काकचेफ़र जैसे कीट के स्थान में अन्य बड़े कीट ( उदाहरणार्थ तिलचटे) को और रूक के स्थान में कौए , कबूतर इत्यादि को लिया जा सकता है।
पाठ्य पुस्तक की रचना संक्षिप्त रूप में की गयी है ताकि अध्यापक द्वारा क्लास में दी गयी जानकारी का अनुशीलन करने में उसका उपयोग हो सके । अध्ययन-सामग्री के साथ छात्रों का परिचय केवल अध्यापक के कथन और पाठ्य पुस्तक के पठन तक ही सीमित न रहे बल्कि उसे जिन्दा प्राणियों के प्रदर्शन , शिक्षा के भिन्न भिन्न दर्शनीय साधनों ( संग्रह, उपकरण, मसाला भरे हुए प्राणी , सारणियां ) , फ़िल्मों, प्रयोगशाला के पाठों , सैर-सपाटों और स्कूल के बाहर प्राणियों के निरीक्षणों का साथ दिया जाये।
इस पाठ्य पुस्तक का उपयोग करनेवाले सभी लोगों से लेखकों की प्रार्थना है कि वे निम्नलिखित पते पर पुस्तक के संबंध में अपनी सम्मतियां और परामर्श भेज दें-विदेशी भाषा प्रकाशन गृह , २१, जूबोव्स्की बुलवार, मास्को, सोवियत संघ । – व० शलायेव न रीकोव

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