Sadgati (सदगति) by Munshi Prem Chand pdf

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Sadgati (सदगति) by Munshi Prem Chand, Hindi story book pdf
Author- Munshi Prem Chand (मुंशी प्रेमचंद )
Book Type- Hindu Story Book
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 28
Size- 1Mb
Quality- good, without any watermark

Sadgati (सदगति) by Munshi Prem Chand pdf

लेखक के बारे में कुछ शब्द-
31 जुलाई, 1880 को लमही गाँव (वाराणसी) में प्रेमचन्द का जन्म हुआ। उनका नाम धनपत राय था। उनके चाचा ने उन्हें नवाबराय नाम दिया। जब प्रेमचन्द मैट्रिक में पढ़ते थे तभी से लिखने लगे थे। उनका बचपन घनघोर गरीबी और दुःख में कटा। 1901-02 में उनके दो उपन्यास ‘हमखुरमा | और ‘हमसवाब’ छपे । प्रेमचन्द ने पहले उर्दू में लिखना शुरू किया, बाद में वे हिन्दी में लिखने लगे।
उनकी पहली कहानी उर्दू मासिक ‘संसार का सबसे अनमोल रतन’ ‘जमाना’ में प्रकाशित हुई। 1910-11 में उनका ‘सोज़े वतन’ नामक उपन्यास जब्त कर लिया गया। हमीरपुर के कलक्टर द्वारा ‘सोजे वतन’ की 600 प्रतियाँ प्रेमचन्द के सामने जला दी गई। इसीलिए उन्हें अपना नाम नवाबराय बदलना पड़ा। जमाना के सम्पादक दयानारायण निगम ने उन्हें ‘प्रेमचन्द’ नाम दिया। 1913-14 में उनका उपन्यास सेवासदन छपा। 1920 में प्रेमचन्द ने गाँधी जी के आह्वान पर सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 1930 में प्रेमचन्द ने हँस मासिक निकाला । अंग्रेज़ी सरकार बार-बार उसपर प्रतिबन्ध लगा देती थी और प्रेमचन्द बार-बार जमानत भरते थे। प्रेमचन्द ने सरस्वती प्रेस चलाई, घाटे उठाये और स्वाधीनता आन्दोलन की दिशा में काम करते रहे।
1934 में प्रेमचन्द बम्बई गए। उनकी कहानी पर मिल मजदूर’ फिल्म बनी उस पर भी बम्बई सरकार ने पाबन्दी लगा दी। इस फिल्म में एक पंचायत भी थी और पंचायत के प्रधान की भूमिका प्रेमचन्द ने अदा की थी। 1935 में प्रेमचन्द वापिस बनारस लौट आए। 1935 में उनका उपन्यास ‘गोदान’ छपा जिसमें गरीब किसान के कर्जे और दुःखों की गाथा है।
प्रेमचन्द की कहानियों और उपन्यासों में वह गरीब किसान आया है जिसकी जमीन गिरवी रखी गयी या बिक गई.या जो कर्जे से दबा है और मजदूरी तलाश करता है।
प्रेमचन्द ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। समकालीन विषयों पर अनेक सामाजिक, राजनीतिक टिप्पणियाँ लिखी हैं । सेवासदन, निर्मला, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान उनके उपन्यास हैं। उनका उपन्यास मंगलसूत्र अधूरा ही रह गया। प्रेमचन्द ने आम बोलचाल की भाषा में लिखा है। उन्होंने हिन्दी कहानी को, दुनिया की बेहतरीन कहानियों में जगह दिलाई। उन्हें हिन्दुस्तान का मैक्सिम गोर्की कहा जाता है। सभी देशप्रेमियों को प्रेमचन्द का साहित्य ज़रूर पढ़ना चाहिये। उन्हें पढ़े बिना हिन्दुस्तान के ग्रामीण समाज को नहीं समझा जा सकता।
उनका देहान्त 8 अक्तूबर, 1936 को हुआ। गरीबी, संघर्ष और तनावों ने 56 वर्ष की आयु में ही प्रेमचन्द की जान ले ली।

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दो शब्द-
प्रेमचन्द आज़ादी के आन्दोलन के दौर के लेखक हैं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लोहा लेने के लिए उस दौर में यह महसूस किया गया कि अपने समाज में फैली बुराइयों को दूर किया जाए, क्योंकि अपने समाज के अन्यायमूलक ढाँचों की निर्मम समीक्षा करते हुए ही आज़ादी और न्याय की लड़ाई लड़ी जा सकती है। समाज सुधार, नवजागरण या नए शिक्षित जागरूक समाज की तस्वीर बनाने के लिए एक आत्मसंघर्ष ज़रूरी है। हमें अपने समाज की कमजोरियों को दूर करना ही होगा।
इसी आत्मसंघर्ष से गुज़रते हुए प्रेमचन्द ने सद्गति जैसी कहानियाँ लिखी हैं। ये कहानियाँ दुनिया की बेहतरीन कहानियों में बहुत ऊँचा स्थान रखती हैं। ‘सद्गति’ पर सत्यजित रे जैसे महान फिल्म निर्देशक फिल्म बना चुके हैं । फिल्म में दुखी चमार की भूमिका ओमपुरी ने और झुरिया की भूमिका स्मिता पाटिल ने निभाई थी।
इस कहानी में सबसे ज्यादा विडम्बना की बात यह है कि दुखी चमार का मन अत्याचारी के प्रति विभाजित है। वह स्वयं पंडितजी को तेजस्वी मूर्ति’ की तरह देखता है। वह स्वयं सोचता है कि उसने ब्राह्मण का घर ‘अपवित्तर’ कर दिया है। इस विडम्बना को, इस विभाजन को दूर करके हम न्याय और अन्याय के पक्षों को साफ-साफ देखना और समझना सीखें, यह हमारा इस दौर का मुख्य काम है। नवपाठक और पढ़े-लिखे समझदार, दोनों के हिस्से में यह काम आता है। यह किताब छापकर हम स्वयं भी इस सम्मिलित जिम्मेदारी में शामिल हो रहे हैं।- प्रमोद गौरी,
निदेशक, ‘सर्च’ – राज्य संसाधन केन्द्र. हरियाणा।

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