Shehar Men Ghoomta Aina (शहर में घूमता आईना) by Upendra Nath Ashk Hindi Novel
e-book name- Shehar Men Ghoomta Aina (शहर में घूमता आईना)
Author name- Upendra Nath Ashk
Language- Hindi
File format- PDF
PDF size- 23mb
Pages- 427
Quality- good, without watermark
शहर में घूमता आईना के पात्र वर्षों से मेरे दिमाग को घेरे थे। कहूँ कि मेरे लिखने के मार्ग की बाधा थे। मैं जब भी कोई नया उपन्यास लिखने की सोचता, ये सदैव मेरा मार्ग अवरुद्ध कर देते। मुझे सन्तोष है कि आज इन्हें कागज पर उतार कर मैं कुछ हल्का हुआ हूँ। उपन्यास मैंने १९५७ में लिखना आरम्भ किया था। उस वर्ष मैं इसी आशा से डलहौजी गया था कि इसे लिख लाऊँगा। पर वहाँ के सौन्दर्य ने मुझे कुछ ऐसा बाँधा कि मैं कविताएँ लिखता रह गया। तो भी, जब वह मूड चुक गया, तो मैंने इसे हाथ लगा दिया। पाँच परिच्छेद मैंने वहाँ लिखे। लेकिन अगले तीन वर्षों तक मैं इसे, चाहने पर भी, ज्यादा आगे नहीं बढ़ा सका। हर साल मैंने कोशिश की, पर केवल सात परिच्छेद और लिख पाया । उपन्यास की इस मन्द गति से मैं इतना परेशान था कि जब मैं १९६१ में ‘प्रसम हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ का अध्यक्ष ही कर तिनसुकिया (असम) गया तो मैं इसकी पाण्डुलिपि साथ लेता गया। सोचा यह था कि असम का दौरा खत्म करके औलिम्पांग में रुक जाऊँगा और उपन्यास पूरा करके ही लौटूँगा। लेकिन असम की जलवायु मुझे रास नहीं आयी। शिलांग ही में मैं बीमार पड़ गया और कैलिम्पांग पहुँचते-न-पहुँचते ज्वरग्रस्त हो गया। मेरी पत्नी चाहती थी कि मैं वापस लौट चलू और स्वस्थ हो कर फिर कहीं दूसरी जगह जा कर इसे लिखं। लेकिन मैं वहीं रह गया और बीमारी के बावजूद मैंने इसे पौने दो महीने में खत्म कर डाला। रात को मुझे खाँसी के मारे नींद न आती थी, इसलिए मैं दिन को सो लेता और रात-रात भर लिखता। मूर्खता-भरे अपने उस हठ से यद्यपि मैं और भी बीमार पड़ गया हूँ और मेरी पुरानी यक्ष्मा की बीमारी फिर कुछ सक्रिय हो गयी है, पर मुझे अफ़सोस नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि मैं इसे खत्म किये बिना वापस आ जाता, तो फिर वर्षों तक इसे न लिख पाता और लगातार मेरा दिमाग परेशान रहता। लेकिन क्या इस हेय, अकिचन, मिडियाकर, निम्न-मध्यवर्गीय जीवन के चित्रण के लिए इतनी बड़ी जोखिम उठाना ठीक था ? हो सकता है मेरे आलोचक इसे पढ़ कर व्यंग्य और विद्रप से मुस्कराते हुए यह प्रश्न करें। मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता। इसे लिखने के लिए अपनी विवशता का उल्लेख भर कर सकता हैं। साथी सुरेन्द्रपाल, वीरेन्द्रनाथ मण्डल तथा कौशल्या का मैं हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने प्रेस-कापी तैयार करने में मेरी बड़ी सहायता की है और अमूल्य सुझाव दिये हैं। मुझे खेद है कि अपनी वर्तमान अस्वस्थता के कारण मैं इस पर उतना श्रम नहीं कर सका, जितना मैं प्राय: करता हैं। निश्चय ही इसमें कुछ त्रुटियाँ रह गयी हैं। आशा है, सहृदय पाठक मेरी विवशता को देखते हुए छोटी-मोटी त्रुटियों को खातिर में न लायेंगे। सदा की तरह उनके सुझावों का मैं स्वागत करूंगा। – Upendra Nath Ashk
Hindi Novel Shehar Men Ghoomta Aina