Swatantrata Sangram Ka Itihas (स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास) by Gobardhanlal Purohit pdf
eBook name- ‘Swatantrata Sangram Ka Itihas (स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास) [1857 से 1947 तक]’
Author- Gobardhanlal Purohit (गोवर्धनलाल पुरोहित)
Book Type- Hindi historical eBook
File Format- PDF
Language- Hindi
Pages- 444
Size- 34 Mb
Quality- good, without any watermark
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम पर अब तक छोटी बड़ी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, परन्तु 1857 से लेकर 1947 ई. तक के स्वतन्त्रता संग्राम पर एकीकृत पुस्तक अभी देखने में नहीं आयी। अतः दिल्ली प्रशासन ने इस कमी को पूरा करने के लिये स्वतन्त्रता संग्राम पर सांगोपांग पुस्तक लिखने के लिए देश के लेखकों को प्रेरित किया, परिणामस्वरूप प्रस्तुत पुस्तक इसी सन्दर्भ में लिखी गई है।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम विदेशी शासन के विरुद्ध एक व्यापक जन-विद्रोह था, न कि केवल सैनिक विद्रोह। इस तथ्य को पुस्तक में ठोस प्रमाणों द्वारा उभारा गया है। 1857 की क्रान्ति में हिन्दू व मुसलमानों ने एक जुट होकर विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने का एक सबल प्रयास किया था। मुगल बादशाह व हिन्दू पेशवाओं की एकता तो इस क्रान्ति में देखते ही बनती है। प्रारम्भिक शानदार विजय के बाद क्रान्ति के पराभव के मुख्य कारण सबल केन्द्रीय शक्ति का अभाव एवं अनुशासन की कमी थी। कोई भी शक्ति बिना संगठन के उपयोगी नहीं है, तो कोई भी संगठन बिना अनुशासन के स्थायी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इस निर्विवाद सत्य का ज्ञान हमें इस क्रान्ति में हुआ।
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विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने में तो क्रान्ति को सफलता नहीं मिली, परन्तु क्रान्ति में अन्तर्निहित उद्देश्यों को प्राप्त करने में कुछ सफलता अवश्य मिली। कम्पनी का क्रूर शासन समाप्त हुआ। देशी राजाओं को गोद लेने का अधिकार वापिस मिल गया। महारानी विक्टोरिया की घोषणा से भारतीयों के साथ अपेक्षाकृत न्याय की आशा बंधने लगी, परन्तु मुख्य उपलब्धि यह रही है कि इस क्रान्ति से हमारी आजादी की लड़ाई का संगठित शुभारम्भ हो गया जिसकी अन्तिम परिणति देश की स्वतन्त्रता में हुई। भावी स्वातन्त्र्य समर के लिये क्रान्ति प्रेरणा का स्रोत बन गई।
स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष निरन्तर जारी रहा। वासुदेव बलवन्त फड़के व गुरु रामसिंह जी के नेतृत्व में कूका क्रान्ति-वीरों ने ब्रिटिश शासन को चैन से नहीं बैठने दिया। चारों ओर विदेशी शासन के विरुद्ध घृणा का भयंकर दावानल दहकने लगा। केवल सबल नेतृत्व की कमी थी। इधर अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से लोगों में राष्ट्रीय भावना जोर पकड़ रही थी। अतः ब्रिटिश शासन को यह भय सताने लगा कि कहीं क्रान्ति का नेतृत्व बुद्धिजीवियों के हाथ में न पड़ जाये। यदि ऐसा हुआ तो ऐसी हिंसक क्रान्ति जन्म लेगी, जिसमें ब्रिटिश शासन का भस्म होना निश्चित है। अत: शिक्षित भारतीयों का एक ऐसा वैध संगठन बनाया जाये, जिसके माध्यम से रोष का वातावरण शान्तिपूर्ण वार्ता में बदल जाये और संगठन सेफ्टी बाल्व का काम करे। इसके लिये वायसराय लॉर्ड डफरिन ने एक सेवा निवृत्त अंग्रेज सज्जन ए.ओ. हम साहब को तैयार किया। उन्हीं के प्रयास से 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई के तेजपाल हाई स्कूल भवन में अखिल भारतीय कांग्रेस ने जन्म लिया। प्रारम्भ में कांग्रेस शिक्षित भारतीयों की एक सभा थी, जिसके द्वारा पढ़े लिखे भारतीयों के हितों की रक्षा की जाने लगी।…..
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