साधना और सिद्धि (Yoga and Perfection)- Swami Purnananda ebook pdf file
e-book name- साधना और सिद्धि (Yoga and Perfection)
Author- Swami Purnananda (स्वामी पूर्णानंद)
अनुवादक: जयप्रकाश अग्रवाल
Language- Hindi, and English
Book genre- Hindi Religion
File format- PDF
PDF size- 1mb
Pages- 274
Quality- HQ, no watermark
स्वामी पूर्णानंद जी महाराज रचित साधना और सिद्धि (Yoga and Perfection) मूल अंग्रेजी सहित ।
साक्षात भगवान शिव द्वारा प्रत्यक्ष दीक्षा प्राप्त स्वामी पर्णानन्दजी महाराज द्वारा अंग्रेजी में रचित गेय काव्य Yoga and Perfection हर मानव को ऐसा जीवन जीने का उपाय बताता है। जिसकी उसको चाह होती है। आनंद, संतोष और शांति जो सभी के सच्चे अभीष्ट हैं, पाने के लिए परमानंद स्वप्रकाश से योग ही राह है, लक्ष्य है। समभाव, इंद्रिय निग्रह, अनुशासित पवित्र दिनचर्या के साथ सात्विक आहार, विचार द्वारा ही सद्गुरु के निर्देशन में योग संभव है। भय, “मैं” और “मेरा” को नष्टकर पर्ण समर्पण के द्वारा ही योग की पूर्णता और लक्ष्य की प्राप्ति होती है । हरेक मनुष्य की लक्षित अभिलाषा आनंद और शांति उसके अंदर ही है, फिर भी कस्तुरी मृग की तरह वह भागता रहता है। परमात्मा ही जाता, पालन कर्ता एवं संहारक है। वही सभी कार्यों का कर्ता, कारक और कारण है। इसी सत्य को । आत्मसात करना योग है। सब चराचर में परमात्म को देखते हुए आनंद बाँटकर ही आनंद प्राप्त किया जा सकता है । सुख शांति मांग कर नहीं मिलते, बाँट कर मिलते हैं। अधिकांश बातें अधिकांश जानते हैं परंतु अनुसरण नहीं करने से सारी समस्या है। सरल भाषा में विस्तार के साथ स्वामीजी ने क्या करना और क्या नहीं करना समझाया है।
स्वामीजी का महान संदेश अंग्रेजी में है. अगर हिन्दी में भी यह उपलब्ध हो तो आज के संदर्भ में मानवता के लिए अति उपयोगी होगा इसी भाव से साधना और सिद्धि नाम से हिन्दी में पदानुवाद प्रभु कृपा तथा गुरु और संतों के असीम अनुग्रह से । संपन्न हुआ है। मेरी पुत्री रचना तथा जमाता नीलेश केडिया को । पूजनीया सुशीला बहिनजी ने कृपा कर Yoga and Perfection के
पुनर्मुद्रण का कार्य सौंपा और उन दोनों ने जब इसका जिक्र मुझसे किया तो मैंने पुनर्मुद्रण का काम सम्हाल लिया। कार्य प्रारंभ हुआ Yoga and Perfection के पुनर्मद्रण से और उस कार्य के दौरान जागृत स्वप्रेरणा प्रभुकृपा ही थी जिसका फल यह अनुवाद है। प्रभुकपा से मैं निमित्त बना है। निमित्त से अधिक मैं कुछ नहीं हैं। क्योंकि मुझमें न वह सामथ्य ही है और न ही योग्यता जो । संतवाणी पर कुछ लिख सके। मूलकृति के स्वामीजी के संदेश को यथाशक्ति मूलभाव में ही रखा गया है। फिर भी यह भावानुवाद ही है, शब्दानुवाद नहीं। अंग्रेजी और हिन्दी दोनों पाठ साथ-साथ होने से मूलभाव और स्पष्टता के साथ उभरेगा यही विश्वास पुस्तक को द्विभाषी बनाने की प्रेरणा है। मुझपर तथा मेरे परिवार पर हुई इस महती प्रभु कृपा और सत्संत अनुग्रह के प्रति मैं अति कृतार्थ हुँ । विशेष रुप से अति उदारमना पूजनीया सुशीला बहिनजी और उनके ठाकुर जी के प्रति जिन्होंने यह अवसर हमें दिया और इतना ही नहीं इसे पूर्ण करने की प्रेरणा तथा निरंतर आशीर्वाद जिसके बिना यह निमित्त अनुवाद कभी भी संभव नहीं होता । इस सत्य को मैने बार-बार अनुवाद कार्य के दौरान अनुभूत किया है। उषा ने भी इन पदों को गाना ईश्वर अनुकंपा से शुरु किया। शब्दों का मोल स्वर से कई गुणा हो गया ऐसा पूजनीया सुशीला बहिनजी ने हमें बताया।
मूल अंग्रेजी में तथा हिन्दी अनुवाद में प्रयुक्त कुछ संस्कृत । शब्दों का अर्थ तथा कुछ संदर्भो को दो परिशिष्टों में देकर स्पष्ट करने के प्रयास के साथ मूल अंग्रेजी पुस्तक के प्रकाशकीय तथा पुस्तक सार को भी अंग्रेजी में ही परिशिष्टों में रखा गया है। प्रभु से प्रार्थना है कि कृपा जनित यह अनुवाद पाठकों को अर्थपूर्ण लगे और स्वामी जी का मूल संदेश उन्हें मिले । -जयप्रकाश अग्रवाल ।
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